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सशस्त्र बलों द्वारा औपनिवेशिक प्रथाओं को त्यागने का प्रस्ताव

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हाल ही में रक्षा मंत्री द्वारा जारी प्रकाशन में औपनिवेशिक प्रथाओं को त्यागने और सशस्त्र बलों में स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने का प्रस्ताव रखा गया है। इसमें समकालीन सैन्य प्रथाओं के साथ प्राचीन भारतीय ज्ञान के संश्लेषण के लिए प्रोजेक्ट उद्भव की शुरुआत की गई है।

सशस्त्र बलों का प्रमुख संशोधन और प्रस्ताव

  1. स्वदेशी रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना:
    • प्राचीन भारतीय रणनीतिकारों के कार्यों को सैन्य नेतृत्व पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाएगा।
    • यह प्रयास युवा सैन्य अधिकारियों को भारत केंद्रित रणनीतिक सोच को अपनाने के लिए प्रेरित करेगा।
    • उदाहरण के लिए, मराठों, सिखों और चंद्रगुप्त मौर्य के प्रशासनिक मॉडल का अध्ययन किया जाएगा।
  2. स्वदेशी ग्रंथों को शामिल करना:
    • सेना प्रशिक्षण कमान ने सैन्य कर्मियों के लिए प्राचीन भारतीय अवधारणाओं पर आधारित पठन सामग्री तैयार की है।
    • इसमें गीता, पंचतंत्र, अर्थशास्त्र, चाणक्य नीति और तिरुक्कुरल जैसे ग्रंथों से उद्धरण शामिल हैं, जिन्हें ‘प्राचीन भारतीय ज्ञान के मोती’ कहा गया है।
  3. इन्फेंट्री रेजीमेंटों का अखिल भारतीय चरित्र:
    • सेना अपने इन्फेंट्री रेजीमेंटों को अखिल भारतीय स्वरूप देने पर विचार कर रही है।
    • इससे विभिन्न इकाइयों में विविधता और प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिलेगा।
  4. भारतीय सांस्कृतिक तत्त्वों का उन्नत उपयोग:
    • सैन्य प्रशिक्षण सुविधाओं में औपनिवेशिक युग की साहित्यिक कृतियों, जैसे रुडयार्ड किपलिंग की “IF” और NDA में मौजूदा अंग्रेजी प्रार्थना को भारतीय कविताओं, प्रार्थनाओं और धुनों से प्रतिस्थापित किया जाएगा।
    • यह भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने का एक प्रयास है।
  5. त्रि-सेवा अधिनियम का प्रारूप तैयार करना:
    • सेना, नौसेना और वायु सेना में प्रशासन को सरल बनाने के लिए एकीकृत त्रि-सेवा अधिनियम पर विचार किया जा रहा है।
    • यह तीन अलग-अलग सेवा अधिनियमों के लिए एक महत्वपूर्ण संरचनात्मक प्रतिस्थापन के रूप में कार्य करेगा।

प्रोजेक्ट उद्भव:

प्रोजेक्ट उद्भव भारतीय सेना और यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया (USI) के बीच एक संयुक्त पहल है। इसका मुख्य उद्देश्य भारत के समृद्ध ऐतिहासिक सैन्य ज्ञान को आधुनिक सैन्य प्रथाओं के साथ एकीकृत करना है। यह प्रोजेक्ट भारतीय सैन्य रणनीति में प्राचीन भारतीय ग्रंथों और विचारधाराओं को शामिल करके रणनीतिक सोच को पुनः संजीवनी प्रदान करना चाहता है।

प्राचीन ग्रंथों एवं दर्शनशास्त्र को शामिल करना:

  1. चाणक्य का अर्थशास्त्र: यह ग्रंथ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, सॉफ्ट पावर और कूटनीति के महत्व पर जोर देता है। इसे आधुनिक सैन्य प्रथाओं के साथ जोड़ा गया है, जिसमें रणनीतिक साझेदारी और गठबंधन शामिल हैं।
  2. तिरुवल्लुवर द्वारा तिरुक्कुरल: यह ग्रंथ न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांतों और आधुनिक सैन्य नैतिकता जैसे जिनेवा कन्वेंशन के साथ संरेखित होता है। यह युद्ध सहित सभी स्थितियों में नैतिक आचरण को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
  3. पूर्व नेतृत्वकर्त्ताओं के सैन्य अभियान: चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक, और चोल जैसे भारतीय नेतृत्वकर्त्ताओं के शासन और उनकी सैन्य सफलताएँ महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं।

प्रमुख सैन्य अभियान:

  • सरायघाट का नौसैनिक युद्ध (1671): लचित बोड़फुकन की अगुवाई में हुई इस लड़ाई में कूटनीति, मनोवैज्ञानिक युद्ध, और सैन्य खुफिया जानकारी का उपयोग करते हुए मुगलों की कमजोरियों का लाभ उठाया गया।
  • छत्रपति शिवाजी एवं महाराजा रणजीत सिंह: इन दोनों महान नेताओं ने असममित युद्ध और नौसैनिक रक्षा के सबक सीखे और अपने समय में संख्या में श्रेष्ठ मुगल और अफगान सेनाओं पर विजय प्राप्त की।

रक्षा संस्थानों में इंडिक अध्ययन:

  • भारतीय संस्कृति और रणनीतिक सोच को जोड़ने वाला अनुसंधान, जैसे कि रक्षा प्रबंधन महाविद्यालय (CDM) द्वारा किया गया है, जिसने प्रोजेक्ट उद्भव को महत्वपूर्ण सामग्री प्रदान की है।

औपनिवेशिक विरासत को समाप्त करने के लिए अतीत में किए गए प्रयास:

  1. ध्वज: भारतीय नौसेना ने ‘जैक’ का नाम बदलकर ‘राष्ट्रीय ध्वज’ और ‘जैकस्टाफ’ का नाम बदलकर ‘राष्ट्रीय ध्वज स्टाफ’ कर दिया है।
  2. प्रतीक चिन्ह: सितंबर 2022 में, सेंट जॉर्ज के औपनिवेशिक क्रॉस को शिवाजी के अष्टकोणीय चिह्न से बदल दिया गया।
  3. रैंक: पारंपरिक रूप से नेल्सन की अंगूठी से सुसज्जित एपोलेट्स (पद का प्रतीक चिन्ह) पर अब छत्रपति शिवाजी की छाप है।
  4. पारंपरिक पोशाक: नौसेना के मेस में कुर्ता-पायजामा को अपनाया गया है।
  5. औपचारिक प्रथाएँ: भारतीय सेना ने घोड़ा-बग्गी जैसी पारंपरिक प्रथाओं को समाप्त करना शुरू कर दिया है।

निष्कर्ष:  प्रोजेक्ट उद्भव और औपनिवेशिक विरासत को समाप्त करने के प्रयास भारतीय सेना की रणनीति में समकालीनता और स्वदेशी तत्वों को एकीकृत करने का एक महत्वपूर्ण कदम हैं। यह न केवल भारत की सैन्य प्रभावशीलता को बढ़ाने का प्रयास है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और इतिहास को भी सम्मानित करता है।

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