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मृत्यु के बाद कोशिकीय कार्यशीलता

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हाल ही में एक शोध में “तीसरी अवस्था” का प्रस्ताव रखा गया है, जो जीवन और मृत्यु की पारंपरिक परिभाषाओं को चुनौती देता है। इस शोध में यह दर्शाया गया है कि (कोशिकीय कार्यशीलता )  कुछ कोशिकाएँ और ऊतक जीव की मृत्यु के बाद भी कार्य करना जारी रख सकते हैं। यह निष्कर्ष जीवन और मृत्यु के बीच के रेखांकन को धुंधला करता है और इससे कई महत्वपूर्ण प्रश्न उत्पन्न होते हैं, विशेषकर कोशिकीय क्षमताओं, जीव विज्ञान और चिकित्सा के संदर्भ में।

“तीसरी अवस्था”: जीवन और मृत्यु की नई परिभाषा

“तीसरी अवस्था” की अवधारणा एक ऐसी स्थिति को दर्शाती है जहाँ कोशिकाएँ और ऊतक जीवन और मृत्यु की पारंपरिक परिभाषाओं को चुनौती देते हैं। इस शोध से पता चलता है कि कुछ कोशिकाएँ जीव की मृत्यु के बाद भी कार्य करना और अनुकूलन करना जारी रख सकती हैं, जिससे जीव विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में नए प्रश्न उत्पन्न होते हैं।

मृत्यु के बाद कोशिकीय कार्यशीलता के उदाहरण:

  1. ज़ेनोबॉट्स:
    • मृत मेंढक के भ्रूणों की त्वचा की कोशिकाएँ स्वतः नई बहुकोशिकीय संरचनाएँ बनाती हैं, जिन्हें ज़ेनोबॉट्स कहा जाता है।
    • ये ज़ेनोबॉट्स अपने मूल जैविक कार्यों से परे व्यवहार प्रदर्शित करते हैं और सिलिया (छोटे बाल जैसे उभार) का उपयोग करके अपने परिवेश में नेविगेट और गति करते हैं। जबकि जीवित मेंढक भ्रूणों में सिलिया का कार्य म्यूकस को गति देना होता है।
    • ज़ेनोबॉट्स में सेल्फ-रेप्लिकेशन की क्षमता होती है, जिससे ये अपने नवीन प्रतिकृति बना सकते हैं, जो परिचित प्रतिकृति विधियों से भिन्न होती है।
  2. एन्थ्रोबॉट्स:
    • अध्ययनों में यह पाया गया है कि मानव फेफड़ों की कोशिकाएँ स्वतः छोटे, बहुकोशिकीय जीवों का निर्माण कर सकती हैं, जिन्हें एन्थ्रोबॉट्स कहा जाता है।
    • ये जैव-रोबोट अद्वितीय व्यवहार प्रदर्शित करते हैं, जैसे कि गतिशील होना, स्वयं की मरम्मत करना और निकटवर्ती क्षतिग्रस्त न्यूरॉन कोशिकाओं को पुनर्स्थापित करना।

तीसरी अवस्था के निहितार्थ:

तीसरी अवस्था की धारणा जीवन और मृत्यु के पुनर्मूल्यांकन को प्रेरित करती है और यह सुझाव देती है कि जैविक प्रणालियाँ रैखिक जीवन चक्रों से बंधी हुई नहीं हो सकती हैं। इससे अंग संरक्षण और प्रत्यारोपण में सफलता मिल सकती है, जो दाता अंगों की व्यवहार्यता के साथ रोगी परिणामों में सुधार कर सकती है।

मृत्यु के बाद कोशिकाएँ किस प्रकार जीवित रहती हैं?

  • कोशिकीय दीर्घायु: विभिन्न कोशिकाओं की जीवित रहने की अवधि अलग-अलग होती है:
    • श्वेत रक्त कोशिकाएँ: आमतौर पर मृत्यु के 60 से 86 घंटों के भीतर नष्ट हो जाती हैं।
    • कंकालीय मांसपेशी कोशिकाएँ: चूहों में इन्हें मृत्यु के 14 दिनों तक पुनर्जीवित किया जा सकता है।
    • फाइब्रोब्लास्ट कोशिकाएँ: भेड़ और बकरी की कोशिकाएँ मृत्यु के लगभग एक महीने बाद तक संवर्धित की जा सकती हैं।
  • प्रभावित करने वाले कारक:
    • पर्यावरणीय परिस्थितियाँ (जैसे तापमान, ऑक्सीजन का स्तर), चयापचय गतिविधि, और संरक्षण तकनीकें (जैसे क्रायोप्रिजर्वेशन) मृत्यु के बाद कोशिकाओं और ऊतकों के अस्तित्व को प्रभावित करती हैं।

निष्कर्ष: यह शोध यह समझने में मदद करता है कि मृत्यु के बाद भी कुछ कोशिकाएँ कार्यशील रह सकती हैं, और यह जैविक प्रणालियों के विकास और चिकित्सा क्षेत्र में नए संभावित दिशा-निर्देश प्रदान करता है। “तीसरी अवस्था” के अध्ययन से जैव विज्ञान में नई खोजों और नैतिक विचारों की दिशा में एक नया मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

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