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संदर्भ:
चीन की बांध परियोजना: तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी (यारलुंग त्सांगपो) पर दुनिया के सबसे बड़े हाइड्रोपावर डैम के निर्माण की चीन की योजना ने निचले प्रवाह वाले देशों, खासकर भारत और बांग्लादेश, में गंभीर चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
चीन की बांध परियोजना:
- परियोजना की मुख्य विशेषताएँ:
- क्षमता: 60 GW (चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना, 2021-2025)
- यह तीन गॉर्ज डैम (Three Gorges Dam) की तुलना में तीन गुना अधिक शक्तिशाली होगी।
- लक्ष्य:
- जैविक ईंधन (Fossil Fuels) पर निर्भरता कम करना।
- 2060 तक कार्बन न्यूट्रल बनने का लक्ष्य।
- लागत: लगभग $137 बिलियन।
- स्थान: “ग्रेट बेंड” (Great Bend), जहां ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत के मेडोग (Medog) क्षेत्र में एक बड़ा मोड़ लेती है।
- पूर्व में निर्मित प्रमुख बाँध:
- थ्री गॉर्ज डैम (Yangtze River)
- ज़ंगमु डैम (Yarlung Zangbo River)
- क्षमता: 60 GW (चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना, 2021-2025)
- यारलुंग त्संगपो (Zangbo) नदी और भारत–बांग्लादेश पर प्रभाव:
- तिब्बत से निकलती है, अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करने पर इसे “Siang” कहा जाता है।
- असम में, दिबांग (Dibang) और लोहित (Lohit) नदियों से मिलने के बाद “ब्रह्मपुत्र” कहलाती है।
- इसके बाद यह बांग्लादेश में प्रवेश कर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
- हालांकि, यह नदी भूटान से नहीं गुजरती, लेकिन भूटान का 96% क्षेत्र इसके जलग्रहण क्षेत्र में आता है।
- संभावित भू–राजनीतिक प्रभाव:
- चीन का यह डैम भारत और बांग्लादेश के लिए जल प्रवाह को बाधित कर सकता है।
- सूखे के मौसम में जल रोककर और मानसून में अचानक पानी छोड़कर बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है।
- भारत को जल कूटनीति, वैकल्पिक जल स्रोतों और बहुपक्षीय वार्ताओं के माध्यम से समाधान तलाशने की आवश्यकता है।
चीन द्वारा जल संसाधनों का रणनीतिक उपयोग:
- चीन अपने पड़ोसी देशों पर दबाव बनाने के लिए सीमापार नदियों (Transboundary Rivers) का उपयोग एक भू-राजनीतिक उपकरण के रूप में करता रहा है।
- 2017 डोकलाम गतिरोध के दौरान, चीन ने भारत को जल प्रवाह से जुड़ा हाइड्रोलॉजिकल डेटा देना बंद कर दिया था।
- चीन यदि ब्रह्मपुत्र के प्रवाह को नियंत्रित करता है, तो वह इसे भारत पर कूटनीतिक दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल कर सकता है।
कानूनी और कूटनीतिक चुनौतियाँ:
- कानूनी ढांचे की कमी (Lack of Legal Framework):
- 1997 UN Watercourses Convention जल के न्यायसंगत उपयोग, सहयोग और हानि रोकथाम पर ज़ोर देता है, लेकिन भारत और चीन दोनों इसके हस्ताक्षरकर्ता नहीं हैं।
- इससे कोई कानूनी बाध्यता नहीं बनती, जिससे चीन को पानी के नियंत्रण में एकतरफा निर्णय लेने की छूट मिलती है।
- चीन की जल नीतियाँ (China’s Water Policies): चीन सिद्धांततः निष्पक्ष जल-वितरण की बात करता है, लेकिन निचले तटीय देशों (Lower Riparian States), विशेष रूप से भारत, पर जल संसाधनों का दबाव बनाने का आरोप लगाया जाता है।
- समाप्त हुए समझौते (Expired Agreements):
- भारत और चीन के बीच ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों के जल डेटा साझा करने पर किए गए समझौते (MoUs) समाप्त हो चुके हैं।
- इससे जल प्रबंधन को लेकर अनिश्चितता बढ़ गई है।
- विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र (Expert Level Mechanism – ELM):
- भारत और चीन के बीच जल वार्ता का एकमात्र मंच है।
- लेकिन, यह कोई बाध्यकारी (Binding) समझौता नहीं है, जिससे चीन पर कोई कानूनी दायित्व नहीं बनता।
- राजनीतिक तनाव और क्षेत्रीय असहमति (Political Tensions & Regional Disputes):
- बांग्लादेश ने चीन के इस डैम पर कोई कड़ा विरोध नहीं जताया है, क्योंकि उसके चीन के साथ संबंध मजबूत हो रहे हैं।
- भारत-बांग्लादेश संबंधों में गिरावट आई, खासकर अगस्त 2024 में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद।
- नेपाल, भूटान और पाकिस्तान जैसे अन्य निचले तटीय देशों पर भी प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन क्षेत्रीय जल सहयोग की स्थिति कमजोर है।