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सीओपी-16 में जैव विविधता पर 16वीं बैठक

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सीओपी-16 में जैव विविधता पर 16वीं बैठक के दौरान महत्वपूर्ण निष्कर्ष और प्रतिबद्धताएँ सामने आईं। कैली, कोलंबिया में आयोजित इस सम्मेलन में लगभग 190 देशों ने भाग लिया, जिसमें मुख्य फोकस 2022 के मॉन्ट्रियल सम्मेलन में तय किए गए कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता ढांचे (केएमजीबीएफ) को आगे बढ़ाने और 2030 तक के जैव विविधता लक्ष्यों के कार्यान्वयन पर था।

सीओपी-16 के मुख्य निष्कर्ष:

  1. 30-बाई-30 समझौता: इसका उद्देश्य 2030 तक विश्व की 30% भूमि और समुद्री क्षेत्रों को संरक्षित करना है। वर्तमान में, केवल 17% भूमि और 10% समुद्री क्षेत्र संरक्षित हैं।
  2. जैव विविधता संरक्षण के 23 कार्य-उन्मुख लक्ष्य:
    • आक्रामक प्रजातियों का नियंत्रण: 2030 तक आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रसार को आधा करना और उनके प्रभावों को न्यूनतम करना।
    • प्रदूषण में कमी: 2030 तक सभी स्रोतों से होने वाले प्रदूषण को सहनीय स्तर तक लाना।
    • लाभ-साझाकरण तंत्र: आनुवंशिक संसाधनों और डिजिटल अनुक्रम जानकारी (DSI) के उपयोग से होने वाले लाभों को साझा करने के लिए एक प्रणाली का निर्माण करना।
    • विकास नीतियों में जैव विविधता का समावेश: यह सुनिश्चित करना कि जैव विविधता संबंधी दृष्टिकोण राष्ट्रीय नीतियों, नियामक ढाँचों, और विकास योजनाओं में शामिल हों।
  3. वित्तीय प्रतिबद्धता: इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए लगभग $200 बिलियन की वार्षिक वित्तीय आवश्यकता है। हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय हितधारकों ने इस राशि का एक छोटा हिस्सा ही देने का वादा किया है, जिससे लक्ष्यों को प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

प्रमुख निर्णय और चर्चाएँ:

  1. स्वदेशी समुदायों का समावेशन: स्वदेशी समूहों के अद्वितीय ज्ञान और भूमिका को मान्यता देते हुए, एक सहायक निकाय की स्थापना की गई ताकि जैव विविधता संरक्षण में उनके योगदान को सुनिश्चित किया जा सके। इसका उद्देश्य संरक्षण प्रयासों में स्थानीय और स्वदेशी समुदायों की भागीदारी को बढ़ाना है।
  2. डिजिटल अनुक्रम सूचना (डीएसआई) समझौता: डीएसआई से उत्पन्न उत्पादों से लाभ-साझाकरण की एक प्रणाली विकसित करने पर चर्चा हुई। इसके तहत आनुवंशिक सामग्री से विकसित उत्पादों जैसे दवाओं से होने वाले लाभों को न्यायसंगत रूप से वितरित करने पर जोर दिया गया। इस पर अभी अंतिम सहमति नहीं बनी है, लेकिन इसमें बहुपक्षीय समाधान की दिशा में प्रगति हुई है।
  3. अपनाए गए समझौते: जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंधों को मजबूत करना, जैव विविधता को मुख्यधारा में लाना, आक्रामक प्रजातियों का प्रबंधन, तथा कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ढांचे (केएमजीबीएफ) के कार्यान्वयन के लिए तकनीकी सहायता जैसे मुद्दों पर समझौते किए गए।

भारत का योगदान:

भारत ने सीओपी-16 में सक्रिय रूप से भाग लिया और पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह के नेतृत्व में जैव विविधता संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत किया। भारत के योगदान के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

  1. बजट प्रतिबद्धता: भारत ने 2025 से 2030 तक जैव विविधता और संरक्षण प्रयासों के लिए लगभग ₹81,664 करोड़ का बजट आवंटित करने की योजना बनाई है। 2018 से 2022 तक, भारत ने केंद्र सरकार के वित्तपोषण के माध्यम से 32,207 करोड़ रुपये संरक्षण प्रयासों पर खर्च किए।
  2. अंतर्राष्ट्रीय वित्त हेतु आह्वान: भारत ने वैश्विक वित्तीय सहायता की आवश्यकता पर बल दिया ताकि केएमजीबीएफ के लक्ष्य 19 के अंतर्गत प्रतिवर्ष $200 बिलियन जुटाने में सहायता मिल सके। इसमें अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण के माध्यम से $30 बिलियन का योगदान भी शामिल है।
  3. जैव विविधता पहल:
    • भारत ने वैश्विक जैव विविधता संरक्षण में अपने योगदान को रेखांकित किया, जैसे अंतर्राष्ट्रीय बड़ी बिल्ली गठबंधन की स्थापना, जो पारिस्थितिकी तंत्र के स्वस्थ होने के संकेतक के रूप में कार्य करता है।
    • इसके अलावा, भारत ने अपने रामसर स्थलों की संख्या को 2014 में 26 से बढ़ाकर 85 कर दिया है और इसे 100 तक बढ़ाने की योजना है।

महत्व और भविष्य के निहितार्थ:

  • सीओपी-16 में जैव विविधता संरक्षण के प्रति वैश्विक प्रतिबद्धता को मजबूती मिली है, जिसमें मुख्य मुद्दे जैसे आवास क्षति, प्रदूषण, और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं। स्व
  • देशी समुदायों को संरक्षण में शामिल करना और आनुवंशिक संसाधनों के लिए लाभ-साझाकरण तंत्र स्थापित करना समतामूलक और समावेशी संरक्षण की दिशा में कदम हैं।
  • हालाँकि, इन पहलों की सफलता के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन आवश्यक हैं, जो वर्तमान में एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। भारत की सक्रिय भागीदारी, बजट प्रतिबद्धताएं, और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की अपील, 2030 तक केएमजीबीएफ लक्ष्यों को प्राप्त करने में उसकी गंभीरता और योगदान को दर्शाती हैं।

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