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संदर्भ:
भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) के एक नए अध्ययन में सौर कोरोना छिद्रों (Solar Coronal Holes) की तापीय और चुंबकीय क्षेत्र संरचनाओं का सटीक अनुमान लगाया गया है।
कोरोनल होल्स (Coronal Holes) के बारे में:
- परिचय: कोरोनल होल्स सूर्य के वायुमंडल में मौजूद अंधेरे क्षेत्र होते हैं, जो एक्स-रे (X-ray) और चरम पराबैंगनी (EUV) प्रकाश में दिखाई देते हैं।
- खोज: इन्हें 1970 के दशक में एक्स-रे उपग्रहों द्वारा खोजा गया था।
- प्रभाव: कोरोनल होल्स का अंतरिक्ष मौसम (Space Weather) पर प्रभाव होता है, लेकिन इनका पृथ्वी के जलवायु और विशेष रूप से भारतीय मानसून पर प्रभाव अभी भी अध्ययन का विषय बना हुआ है।
सौर कोरोनल होल्स की विशेषताएँ:
- अंधेरे दिखाई देते हैं:
- यह ठंडे और कम घने क्षेत्र होते हैं, जो आसपास के प्लाज्मा से अलग दिखते हैं।
- इनमें खुले और एकध्रुवीय (Unipolar) चुम्बकीय क्षेत्र होते हैं।
- अंतरिक्ष मौसम में भूमिका: इनके खुले चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ होती हैं, जो अंतरग्रहीय माध्यम (Interplanetary Medium) और अंतरिक्ष मौसम (Space Weather) को समझने में मदद करती हैं।
- अवधि:
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- कोरोनल होल्स कुछ सप्ताह से लेकर कई महीनों तक बने रह सकते हैं।
- यह सूर्य के लगभग 11-वर्षीय सौर चक्र के दौरान विभिन्न समयों पर दिखाई देते हैं।
- सौर न्यूनतम (Solar Minimum) के दौरान प्रभाव:
- सौर न्यूनतम के दौरान, जब सूर्य की गतिविधि काफी कम होती है, ये होल्स लंबे समय तक बने रह सकते हैं।
- नासा के अनुसार, इस अवधि में कोरोनल होल्स अधिक समय तक मौजूद रहते हैं।
अध्ययन का महत्व और प्रभाव:
- कोरोनल होल्स के निर्माण को समझने में योगदान:
- अध्ययन से तापमान और चुम्बकीय क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों को समझने में मदद मिली है।
- इससे पृथ्वी के वायुमंडल और जलवायु पर दीर्घकालिक प्रभावों का विश्लेषण संभव हुआ है।
- अंतरग्रहीय माध्यम (Interplanetary Medium) पर प्रभाव:
- यह अध्ययन कोरोनल होल्स द्वारा उत्पन्न ऊष्मीय ऊर्जा को समझने में मदद करता है।
- इसके परिणाम सौर घटनाओं की उत्पत्ति और उनके विकास को समझने में सहायक हैं।
- सौर डिस्क पर कोरोनल होल्स की गति का विश्लेषण: अध्ययन ने यह स्पष्ट किया किसौर डिस्क पर यात्रा करते समय ये नज़दीकी-भूमध्यरेखीय (Near-Equatorial) कोरोनल होल्स कैसे विकसित होते हैं।