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हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने केरल के 10 तटीय जिलों के तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना (Coastal Zone Management Plan – CZMP) को मंजूरी दी है, जिसमें कासरगोड, कन्नूर, कोझीकोड, मलप्पुरम, त्रिशूर, और एर्नाकुलम जैसे जिले शामिल हैं। इस योजना का उद्देश्य तटीय क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियों को सुनियोजित ढंग से प्रबंधित करना और उनकी पारिस्थितिकी को संरक्षित रखना है।
तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना (CZMP) के प्रमुख घटक:
- ज़ोनिंग: CZMP तटीय क्षेत्रों को विभिन्न ज़ोनों में विभाजित करता है, जैसे नो डेवलपमेंट ज़ोन (NDZ) और तटीय विनियमन ज़ोन (CRZ)।
- जन भागीदारी: इसमें स्थानीय समुदायों की राय और चिंताओं का ध्यान रखा जाता है ताकि योजना को अधिक प्रभावी बनाया जा सके।
- तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) अधिसूचना 2019: इस अधिसूचना को लागू करने के लिए राज्यों को CZMP की मंजूरी अनिवार्य होती है, ताकि इसके तहत रियायती मानदंडों का लाभ उठाया जा सके।
तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) के प्रकार:
CRZ क्षेत्र को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
- CRZ-I: पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र, जैसे मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियाँ, रेत के टीले।
- CRZ-IA: संवेदनशील क्षेत्र (मैंग्रोव, नमक के टीले)।
- CRZ-IB: अंतरज्वारीय क्षेत्र, जो निम्न ज्वार रेखा और उच्च ज्वार रेखा के बीच स्थित है।
- CRZ-II: शहरी क्षेत्रों में विकसित भूमि, जो तटरेखा के निकट या नगरपालिका सीमाओं के भीतर आती है।
- CRZ-III: ग्रामीण क्षेत्र, जिन्हें आबादी घनत्व के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
- CRZ-III A: 2161 से अधिक जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्र। इन क्षेत्रों में HTL (High Tide Line) से 50 मीटर तक के क्षेत्र को NDZ के रूप में चिह्नित किया जाएगा।
- CRZ-III B: 2161 से कम जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्र। इनमें HTL से 200 मीटर तक का क्षेत्र NDZ के रूप में निर्धारित होगा।
- CRZ-IV: जल क्षेत्र, जिसमें समुद्री क्षेत्र शामिल हैं।
- CRZ-IVA: समुद्री जल क्षेत्र।
- CRZ-IVB: स्थानीय समुद्री जल क्षेत्र।
यह प्रबंधन योजना तटीय पारिस्थितिकी की सुरक्षा के साथ-साथ स्थानीय निवासियों के आजीविका और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने का उद्देश्य रखती है। CZMP के तहत इन क्षेत्रों में निर्माण, औद्योगिक गतिविधियाँ, और अन्य विकास कार्यों के लिए नियमन बनाए रखे जाते हैं, जिससे तटीय क्षेत्रों की जैव विविधता सुरक्षित रह सके और सतत विकास सुनिश्चित हो।
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