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भारत अपनी डिजिटल क्रांति के महत्वपूर्ण चरण में है, जहां 1.18 अरब मोबाइल कनेक्शन, 700 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ता और 600 मिलियन स्मार्टफोन देश की तकनीकी प्रगति को दर्शाते हैं।
डिजिटल विभाजन, सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को बढ़ावा:
- शहरी-ग्रामीण असमानता:
- शहरी क्षेत्रों में बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी, तेज गति और डिजिटल बुनियादी ढांचा उपलब्ध है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित डिजिटल पहुंच के कारण लोग डिजिटल अर्थव्यवस्था, ऑनलाइन शिक्षा और आवश्यक सेवाओं से वंचित रह जाते हैं।
- आर्थिक असमानता:
- निम्न-आय वर्ग के लोग डिजिटल उपकरण और इंटरनेट सेवाएं वहन करने में असमर्थ होते हैं।
- डिजिटल पहुंच की कमी उन्हें ऑनलाइन शिक्षा, दूरस्थ कार्य और डिजिटल वित्तीय सेवाओं से वंचित करती है, जिससे आर्थिक अंतर बढ़ता है।
- लैंगिक असमानता:
- पुरुषों की तुलना में महिलाओं की डिजिटल तकनीकों तक पहुंच कम है, खासकर विकासशील क्षेत्रों में।
- यह डिजिटल लैंगिक अंतर महिलाओं के शिक्षा, रोजगार और उद्यमिता के अवसरों को सीमित करता है, जिससे सामाजिक असमानताएं और गहरी हो जाती हैं।
डिजिटल क्रांति के साथ टेक-आधारित लैंगिक हिंसा:
डिजिटल विकास के साथ-साथ टेक-आधारित लैंगिक हिंसा की बढ़ती घटनाएं एक बड़ी चुनौती बनी हुई हैं। इसे संबोधित करने के लिए, केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय ने हाल ही में ‘अब कोई बहाना नहीं’ नामक एक राष्ट्रीय अभियान शुरू किया है।
अब कोई बहाना नहीं” अभियान:
भारत में लैंगिक हिंसा से निपटने के उद्देश्य से “अब कोई बहाना नहीं” अभियान 25 नवंबर, 2024 को शुरू किया गया। यह अभियान सार्वजनिक जवाबदेही और सक्रिय कार्रवाई को बढ़ावा देता है।
अभियान की प्रमुख विशेषताएँ:
- लक्ष्य:
- लैंगिक हिंसा के खिलाफ जागरूकता बढ़ाना और समाज में सकारात्मक बदलाव लाना।
- पीड़ितों को उनके अधिकारों और सुरक्षा तंत्रों के प्रति संवेदनशील बनाना।
- वैश्विक संदर्भ: यह अभियान वैश्विक 16 दिनों की सक्रियता पहल के साथ मेल खाता है, जो संयुक्त राष्ट्र महिला संगठन (UN Women) द्वारा संचालित एक अंतरराष्ट्रीय पहल है।
डिजिटल युग में महिलाओं के लिए जोखिम:
भारत की डिजिटल क्रांति ने सशक्तिकरण के अनगिनत अवसर खोले हैं। प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत खातों की संख्या 2015 से लगभग चार गुना बढ़ गई है, जिसमें 55.6% खाते महिलाओं के हैं। डिजिटल जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) लिंक के माध्यम से नकद लाभ सीधे महिलाओं तक पहुंच रहे हैं। हालांकि, बढ़ती कनेक्टिविटी ने महिलाओं को कई नए खतरों के प्रति भी संवेदनशील बना दिया है।
प्रमुख जोखिम:
- ऑनलाइन उत्पीड़न: शहरी क्षेत्रों में महिला पत्रकारों, राजनेताओं और अन्य सार्वजनिक हस्तियों को साइबर उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता की कमी:
- ग्रामीण भारत में 20% अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता होने के बावजूद, कई महिलाएं डिजिटल साक्षरता और ऑनलाइन सुरक्षा कौशल से वंचित हैं।
- सामाजिक बाधाओं के कारण महिलाएं अपने डिजिटल अधिकारों और साइबर सुरक्षा तंत्रों के बारे में जानकारी नहीं रखती हैं।
- टेक-सक्षम लैंगिक हिंसा (TFGBV):
- साइबरस्टॉकिंग, ऑनलाइन ट्रोलिंग, निजी तस्वीरों की बिना सहमति के साझेदारी, फर्जी प्रोफाइल बनाकर धोखाधड़ी जैसे अपराध आम हैं।
- इन खतरों के कारण कई महिलाएं डिजिटल प्लेटफॉर्म छोड़ने को मजबूर हो जाती हैं।
भारत के उठाए गए कदम:
- कानूनी सुरक्षा: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और भारतीय न्याय संहिता, 2024 जैसे कानून डिजिटल अपराधों से निपटने के लिए मजबूत आधार प्रदान करते हैं।
- रिपोर्टिंग तंत्र: राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल के माध्यम से गुमनाम शिकायतें दर्ज की जा सकती हैं।
- साइबर जागरूकता कार्यक्रम: सूचना सुरक्षा शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम के तहत डिजिटल सुरक्षा पर जागरूकता फैलाई जा रही है।
- महिला-केंद्रित पहल: राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा शुरू की गई ‘डिजिटल शक्ति’ पहल महिलाओं को डिजिटल दुनिया में सुरक्षित रूप से नेविगेट करने के उपकरण प्रदान करती है।