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संदर्भ:
विकलांगता अधिकार मौलिक अधिकार: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में विकलांगता के आधार पर भेदभाव के खिलाफ अधिकार को एक मौलिक अधिकार के रूप में मानने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
- सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के अनुसार: “विकलांगता के आधार पर भेदभाव के खिलाफ अधिकार को, जैसा कि ‘विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016′ (RPwD Act) में मान्यता प्राप्त है, एक मौलिक अधिकार के समान दर्जा दिया जाए, ताकि किसी भी उम्मीदवार को केवल उनकी विकलांगता के कारण विचार से वंचित न किया जाए।”
मामले की पृष्ठभूमि:
- यह मामला मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा (भर्ती और सेवा शर्तें) नियम, 1994 और राजस्थान न्यायिक सेवा नियम, 2010 से संबंधित था।
- याचिकाकर्ताओं ने इन नियमों में संशोधन की मांग की ताकि इन्हें विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD Act, 2016) के अनुरूप बनाया जा सके।
- उद्देश्य था कि दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को न्यायिक सेवाओं में समान अवसर मिलें और भेदभाव समाप्त हो।
निर्णय के मुख्य बिंदु:
- विकलांगता–आधारित भेदभाव के विरुद्ध मौलिक अधिकार:
- सर्वोच्च न्यायालय ने विकलांगता के आधार पर भेदभाव के खिलाफ अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी।
- यह विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD Act, 2016) के अनुरूप है।
- निर्णय का प्रभाव:
- संबंधित प्राधिकरणों (authorities) को इस फैसले के अनुसार चयन प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिए गए, जिसे तीन महीने के भीतर पूरा किया जाना है।
- MP नियम, 1994 का नियम 6A रद्द कर दिया गया क्योंकि इसने दृष्टिबाधित व्यक्तियों को शैक्षिक योग्यता के बावजूद न्यायिक सेवा में चयन से बाहर कर दिया था।
- नियम 7 की उपधारा, जिसमें3 साल की प्रैक्टिस या पहले प्रयास में 70% अंकों की शर्त थी, को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया।
विकलांगता अधिकार मौलिक अधिकार पर न्यायालय द्वारा दिए गए औचित्य:
- विकलांग व्यक्तियों के लिए सकारात्मक कार्रवाई:
- न्यायालय ने अधिकार–आधारित दृष्टिकोण (Rights-Based Approach) अपनाने पर जोर दिया।
- विकलांग व्यक्तियों (PwDs) को केवल भेदभाव से मुक्त रखना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उन्हें सकारात्मक सहायता भी दी जानी चाहिए ताकि वे समान अवसर प्राप्त कर सकें।
- उचित सुविधा का सिद्धांत: यह सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय समझौतों से प्रेरित है, जो विकलांग व्यक्तियों को आवश्यक सुविधाएं प्रदान कर निष्पक्ष मूल्यांकन सुनिश्चित करता है।
- समानता का सिद्धांत (Doctrine of Equality):
- न्यायालय ने कहा कि विकलांग उम्मीदवारों पर अतिरिक्त योग्यता थोपना समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है।
- उचित सुविधा के सिद्धांत को लागू करना आवश्यक है ताकि अप्रत्यक्ष भेदभाव को रोका जा सके।
न्यायालय के निर्णय का प्रभाव:
- तात्कालिक प्रभाव (Immediate Effects)
- दृष्टिबाधित उम्मीदवार अब न्यायिक सेवा परीक्षाओं में बिना किसी अतिरिक्त बाधा के भाग ले सकते हैं।
- राज्य सरकारों को नियमों में संशोधन करना होगा ताकि वे RPwD अधिनियम, 2016 के अनुरूप हों।
- दीर्घकालिक प्रभाव (Long-Term Implications)
- यह निर्णय विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देता है।
- अन्य सरकारी क्षेत्रों को भी इसी तरह के कदम उठाने के लिए प्रेरित करेगा।
- न्यायपालिका और अन्य सार्वजनिक सेवा क्षेत्रों में समावेशिता को बढ़ावा मिलेगा।