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भारत में चुनाव सुधार

सामान्य अध्ययन पेपर II: निर्णय एवं मामले, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, संसद

चर्चा में क्यों? 

भारत में चुनाव सुधार: हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में मतदाता सूची में हेरफेर और अलग-अलग राज्यों में समान मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) संख्या के मामलों को लेकर चिंताएँ बढ़ी हैं। इन मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने राजनीतिक दलों को आमंत्रित कर चुनावी प्रक्रिया को अधिक मजबूत बनाने की पहल की है।

चुनावों को नियंत्रित करने वाले प्रमुख विधिक प्रावधान

भारतीय चुनावी प्रक्रिया को सुचारू और निष्पक्ष रूप से संचालित करने के लिए कई कानूनी प्रावधान मौजूद हैं।

  • संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को चुनावों की संपूर्ण निगरानी, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्राप्त है। इसमें संसद और राज्य विधानसभाओं के लिए निर्वाचन क्षेत्रों की मतदाता सूची तैयार करने तथा चुनाव संचालन से संबंधित समस्त प्रक्रियाएँ शामिल हैं। 
  • 1950 का जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act, 1950) चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति, जैसे मुख्य निर्वाचन अधिकारी, जिला निर्वाचन अधिकारी और मतदाता पंजीकरण अधिकारियों की जिम्मेदारियों को स्पष्ट करता है। यह अधिनियम संसदीय, विधानसभा और विधान परिषद निर्वाचन क्षेत्रों की मतदाता सूचियों के रखरखाव से भी संबंधित है।
  • 1951 का जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act, 1951) चुनावी प्रक्रिया के पहले चरणों को नियंत्रित करता है, जिसमें मतदाता सूची की तैयारी और रखरखाव से जुड़े प्रावधान शामिल हैं। इसके क्रियान्वयन को प्रभावी बनाने के लिए 1960 के मतदाता पंजीकरण नियम (Registration of Electors Rules, 1960) लागू किए गए, जो मतदाता सूची में नाम जोड़ने, हटाने या सुधार करने की प्रक्रियाओं को स्पष्ट करते हैं। 

भारत में चुनाव सुधार: प्रमुख सुधार 

  • 1996 से पहले:
    • आदर्श आचार संहिता (1969): चुनावी माहौल को स्वच्छ बनाए रखने के लिए राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए, जिससे धनबल, जातिवाद, सांप्रदायिकता और भ्रष्ट आचरण पर नियंत्रण रखा जा सके।
    • राजनीतिक दल-बदल पर नियंत्रण (1985): भारत में राजनीतिक अस्थिरता और दल-बदल की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए 52वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 के तहत दसवीं अनुसूची (Anti-Defection Law) जोड़ी गई।   
    • मतदान आयु में संशोधन (1988): युवाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए 61वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1988 के तहत मतदान की न्यूनतम आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।  
    • स्थानीय शासन को सशक्त बनाना (1992): लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को मजबूती देने के लिए 73वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 लागू किया गया। इसके तहत ग्राम पंचायतों को संवैधानिक दर्जा दिया गया और स्थानीय स्तर पर प्रत्यक्ष चुनावों की व्यवस्था की गई। 
    • इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का प्रयोग (1989): चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का प्रयोग शुरू किया गया। इससे मतदान की प्रक्रिया तेज़, सुरक्षित और धोखाधड़ी मुक्त बनी। समय के साथ, मतदाता सत्यापन पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) को भी जोड़ा गया, जिससे मतदाता अपने डाले गए वोट की पुष्टि कर सकते हैं। 
    • इसी के साथ यदि किसी मतदान केंद्र पर बूथ कैप्चरिंग (Booth Capturing) होती है, तो चुनाव आयोग को मतदान को स्थगित करने या चुनाव रद्द करने का अधिकार दिया गया। 
    • मतदाता पहचान पत्र (EPIC) की शुरुआत (1993): मतदाता सूची को अधिक प्रमाणिक बनाने और फर्जी मतदान को रोकने के लिए मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) जारी करने की प्रक्रिया शुरू की गई।
    • इसी के साथ 1993 में तीन चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की गई, जिससे निर्णय प्रक्रिया को अधिक संतुलित बनाया गया।
  • 1996 के बाद
    • सेवा मतदाताओं के लिए प्रॉक्सी वोटिंग (2003): सशस्त्र बलों और सेना अधिनियम के तहत आने वाले मतदाताओं को प्रॉक्सी द्वारा मतदान करने की सुविधा दी गई, जिससे वे दूर रहकर भी अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग कर सकें।
      • टीवी और रेडियो पर सभी राजनीतिक दलों को प्रचार के लिए समान समय आवंटित करने की व्यवस्था लागू की गई, जिससे चुनाव प्रचार में निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके।
    • प्रवासी भारतीयों को मतदान अधिकार (2010): पहली बार विदेशों में रहने वाले भारतीय नागरिकों (NRI) को मतदान करने का अधिकार दिया गया, जिससे उनकी राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित हुई।
    • “कोई नहीं” (NOTA) का विकल्प: 2013 में पहली बार “None of the Above” (NOTA) विकल्प पेश किया गया, जिससे मतदाताओं को यह अधिकार मिला कि वे यदि किसी भी उम्मीदवार को योग्य नहीं समझते हैं, तो सभी को अस्वीकार कर सकते हैं। 
      • मतदाताओं की सुविधा के लिए इंटरनेट के माध्यम से मतदाता सूची में नाम दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू की गई, जिससे पंजीकरण आसान और तेज़ हो गया।
    • चुनावी बॉन्ड (2017) का प्रावधान: राजनीतिक दलों को चंदा देने की पारदर्शिता बढ़ाने के लिए चुनावी बॉन्ड की शुरुआत की गई, लेकिन 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया। 
    • “एक राष्ट्र, एक चुनाव” (One Nation, One Election): चुनाव प्रणाली को अधिक कुशल और लागत प्रभावी बनाने के लिए “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की अवधारणा 2024 में प्रस्तावित की गई। इसका उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराना है, जिससे बार-बार होने वाले चुनावों पर खर्च कम हो और प्रशासनिक गतिविधियों में व्यवधान न आए। 
      • जो मतदाता शारीरिक रूप से मतदान केंद्र नहीं जा सकते, उनके लिए घर से मतदान (Home Voting) की सुविधा 2024 में प्रदान की गई।

भारत में चुनावी प्रणाली से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

  • राजनीति का अपराधीकरण: भारत की चुनावी प्रणाली में एक बड़ी चुनौती राजनीति का अपराधीकरण है। अनेक निर्वाचित प्रतिनिधियों पर गंभीर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं, जिससे राजनीतिक व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होते हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार, संसद और विधानसभाओं में बड़ी संख्या में ऐसे जनप्रतिनिधि हैं जिन पर आपराधिक मामले लंबित हैं। 
  • सीमांकन (Delimitation): जनसंख्या में बदलाव के कारण संसदीय और विधानसभा सीटों के सीमांकन को लेकर विवाद उठते रहे हैं। यह विशेष रूप से दक्षिणी राज्यों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि वे जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में सफल रहे हैं, जबकि अन्य क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि अधिक रही है। यदि संसदीय सीटों का पुनः सीमांकन किया जाता है, तो यह राजनीतिक शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
  • चुनावी प्रचार में अनैतिक आचरण: चुनावी अभियानों के दौरान जातिगत, सांप्रदायिक और विभाजनकारी भाषणों का उपयोग अक्सर किया जाता है, जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों को क्षति पहुंचती है। फर्जी खबरों, मिथ्या दावों और व्यक्तिगत हमलों का बढ़ता प्रचलन चुनावी प्रक्रिया की शुचिता को प्रभावित करता है।
  • डुप्लिकेट EPIC नंबर: कुछ राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, गुजरात, हरियाणा और पंजाब में मतदाताओं को एक जैसे EPIC नंबर मिलने की शिकायतें सामने आई हैं। चुनाव आयोग इस मुद्दे को हल करने के लिए डिजिटल मतदाता सूची प्रबंधन प्रणाली (ERONET) को और अधिक सुदृढ़ करने पर कार्य कर रहा है।
  • पैसे का प्रभाव: भारतीय चुनावों में धनबल का बढ़ता प्रभाव एक गंभीर समस्या बन चुका है। चुनावी अभियानों में बेहिसाब धन का प्रयोग, पारदर्शिता की कमी और राजनीतिक चंदे का स्रोत अज्ञात रहना, लोकतांत्रिक व्यवस्था की निष्पक्षता को बाधित करता है। राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के लिए निर्धारित व्यय सीमा के सख्त क्रियान्वयन, चुनावी बॉन्ड प्रणाली में सुधार और पारदर्शी फंडिंग व्यवस्था की आवश्यकता है।
  • EVM से जुड़ी चिंताएँ: चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और मतदाता सत्यापन पत्रक ऑडिट ट्रेल (VVPAT) का उपयोग मतदान प्रक्रिया को सरल और तेज़ बनाने के लिए किया जाता है, लेकिन समय-समय पर इनकी सुरक्षा और निष्पक्षता को लेकर संदेह व्यक्त किया जाता रहा है। 
  • प्रथम-आगमन-प्रथम-जीत (FPTP) प्रणाली: भारत में पहले-पहले आने वाला विजेता (FPTP) प्रणाली लागू है, जहां सबसे अधिक मत पाने वाला उम्मीदवार चुनाव जीत जाता है, भले ही उसे कुल मतों का 50% से भी कम समर्थन प्राप्त हो। यह व्यवस्था कई बार असंतुलित प्रतिनिधित्व को जन्म देती है, जहां 30-40% मत प्राप्त करने वाला उम्मीदवार पूरे निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।

चुनावी सुधार से जुड़ी महत्वपूर्ण सिफारिशें

  • वोहरा समिति (1993) – अपराधियों, राजनेताओं और नौकरशाहों के बीच गठजोड़ की जांच की सिफारिश की, साथ ही एक नोडल एजेंसी के गठन का सुझाव दिया।
  • चुनाव आयोग (ECI) – पाँच साल से अधिक सजा वाले मामलों में आरोप तय होते ही चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध की सिफारिश।
  • विधि आयोग (244वीं रिपोर्ट, 2014) – आरोप तय होने पर अयोग्यता, झूठे हलफनामे पर दो साल की न्यूनतम सजा और अयोग्यता की सिफारिश।
  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2nd ARC) – अवैध धन पर रोक लगाने के लिए आंशिक राज्य वित्त पोषण का समर्थन।
  • दिनेश गोस्वामी समिति (1990) – चुनावी खर्च, मतदाता पहचान पत्र और पारदर्शी राजनीतिक वित्त पोषण पर सुझाव।
  • इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998) – चुनावों के लिए राज्य वित्त पोषण की सिफारिश।
  • रामनाथ कोविंद पैनल – चुनावी सुधारों के लिए 15 संशोधनों की सिफारिश, जिसमें अनुच्छेद 82A और अनुच्छेद 327 में संशोधन शामिल।
  • टी.एस. कृष्णमूर्ति समिति – चुनावी धन के लिए ‘राष्ट्रीय चुनाव निधि’ (National Election Fund) बनाने का सुझाव।

कौन कौन से चुनावी सुधार किए जाने आवश्यक हैं?

  • ईवीएम और वीवीपैट से जुड़ी पारदर्शिता: मतदान और मतगणना की सटीकता सुनिश्चित करने के लिए ईवीएम (EVM) और वीवीपैट (VVPAT) से जुड़े सुधारों को लागू करना आवश्यक है। प्रत्येक राज्य को बड़े क्षेत्रों में विभाजित करके वैज्ञानिक आधार पर वीवीपैट पर्चियों और ईवीएम गणना के मिलान का नमूना आकार तय किया जाना चाहिए। यदि किसी भी क्षेत्र में एक भी गलती पाई जाती है, तो संपूर्ण क्षेत्र की वीवीपैट पर्चियों की गिनती अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। इससे मतगणना प्रक्रिया में विश्वास बढ़ेगा। 
  • मतदाता पहचान और फर्जी मतदाताओं की समस्या: मतदाता सूची की शुद्धता बनाए रखने के लिए फर्जी मतदाताओं और डुप्लिकेट EPIC (Electoral Photo Identity Card) को हटाना आवश्यक है। इस दिशा में EPIC को आधार (Aadhaar) से जोड़ने का प्रस्ताव चर्चा में लाया जा सकता है, लेकिन इसे गोपनीयता और डेटा सुरक्षा की चिंताओं को दूर करने के बाद ही लागू किया जाना चाहिए। 
  • चुनावी प्रचार और वित्तीय पारदर्शिता: चुनावी प्रक्रिया में निष्पक्षता बनाए रखने के लिए, चुनाव आयोग को यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि वह आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct – MCC) के गंभीर उल्लंघन की स्थिति में किसी भी नेता के ‘स्टार प्रचारक’ (Star Campaigner) का दर्जा रद्द कर सके। इससे संबंधित पार्टी को प्रचार व्यय में मिलने वाली छूट समाप्त हो जाएगी, जिससे MCC के पालन को मजबूती मिलेगी। इसके अलावा, चुनाव आयोग को ‘चुनाव चिह्न आदेश’ (Symbols Order) के पैरा 16A के प्रावधान को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए ताकि राजनीतिक दल MCC का सही तरीके से पालन करें।
  • आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की पारदर्शिता: चुनावों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के चयन को हतोत्साहित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए। न्यायालय के अनुसार, प्रत्येक उम्मीदवार को अपने आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी चुनाव से कम से कम तीन बार बड़े समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रकाशित करनी चाहिए। 

UPSC पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs) 

प्रश्न (2021): निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. भारत में किसी उम्मीदवार को एक लोकसभा चुनाव में तीन निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने से रोकने वाला कोई कानून नहीं है।
  2. 1991 के लोकसभा चुनाव में श्री देवीलाल ने तीन लोकसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ा।
  3. मौजूदा नियमों के अनुसार, यदि कोई उम्मीदवार एक लोकसभा चुनाव में कई निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है, तो उसकी पार्टी को सभी निर्वाचन क्षेत्रों में जीतने पर उसके द्वारा खाली किए गए निर्वाचन क्षेत्रों के उपचुनावों का खर्च वहन करना चाहिए।

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं? 

(A) केवल 1  

(B) केवल 2 

(C) 1 और 3  

(D) 2 और 3 

उत्तर: (B) 

प्रश्न  (2022): जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत संसद या राज्य विधानमंडल के सदस्य के चुनाव से उत्पन्न विवादों को तय करने की प्रक्रियाओं पर चर्चा करें। वे कौन से आधार हैं जिन पर किसी भी निर्वाचित उम्मीदवार का चुनाव शून्य घोषित किया जा सकता है? निर्णय के विरुद्ध पीड़ित पक्ष के पास क्या उपाय उपलब्ध हैं? केस लॉ देखें। 

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