Mains ● GS I- आधुनिक भारतीय इतिहास, स्वतंत्रता के बाद देश। ● GS II – भारतीय संविधान, विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, शासन |
चर्चा में क्यों?
कंगना रनौत की फिल्म “इमरजेंसी” (Emergency) फिर से चर्चा में है क्योंकि इसकी रिलीज डेट एक बार फिर टाल दी गई है। यह फिल्म भारत के इतिहास में घटित वास्तविक घटना से जुड़ी हुई हैं। भारत में लगी “इमरजेंसी” के 21 महीनों की कहानी को इसमें प्रस्तुत किया गया है। जिसमें अभिनेत्री ने खुद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का किरदार निभाया है। रिलीज डेट को लेकर फिल्म की चर्चा लगातार बनी हुई है।
आइए जानते हैं कि भारत में इमरजेंसी का विस्तृत विवरण।
इमरजेंसी (Emergency)का परिचय
- आपातकाल की परिभाषा: आपातकाल वह स्थिति है जब सरकार असाधारण परिस्थितियों—जैसे युद्ध, विद्रोह, या अन्य संकटों—का प्रभावी ढंग से सामना करने के लिए अतिरिक्त शक्तियाँ प्राप्त करती है।
- भारत में इमरजेंसी, जिसे “आपातकाल” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय लोकतंत्र का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अध्याय है।
- यह 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक लागू रहा, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने संविधान के अनुच्छेद 352 का उपयोग करते हुए देश में आपातकाल की घोषणा की।
- यह कदम देश की आंतरिक सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के खतरे के रूप में प्रस्तुत किया गया था। इस अवधि में सरकार ने कई योजनाएं और निर्णय लिए।
- विशेष: 12 जुलाई 2024 को, नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने यह घोषणा की कि 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा।
अनुच्छेद 352 भारतीय संविधान का वह प्रावधान है जो राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा से संबंधित है। ● इसे संविधान के भाग XVIII के अंतर्गत रखा गया है, जो आपातकालीन प्रावधानों के विषय में है। ● इस अनुच्छेद के तहत, राष्ट्रपति को राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति घोषित करने का अधिकार दिया गया है यदि उन्हें लगता है कि देश की सुरक्षा को बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से खतरा है। ● अनुच्छेद 352 के तहत घोषित आपातकाल की घोषणा को न्यायिक समीक्षा से पूरी तरह मुक्त किया गया था, लेकिन 44वें संविधान संशोधन द्वारा यह प्रावधान बदल दिया गया और न्यायपालिका को इसकी समीक्षा करने की शक्ति बहाल की गई। भारतीय संविधान में आपातकालीन प्रावधान: भारतीय संविधान के भाग XVIII (अनुच्छेद 352 से 360) में आपातकाल के विभिन्न प्रकार और उनके प्रावधान शामिल हैं: 1. राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352): यह बाहरी आक्रमण या आंतरिक विद्रोह के समय घोषित किया जा सकता है। 2. राज्य आपातकाल (अनुच्छेद 356): यह राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता की स्थिति में लागू होता है। 3. वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360): यह वित्तीय संकट के समय घोषित किया जाता है। संवैधानिक संशोधन: 39वां, 42वां, और 44वां संशोधन अधिनियम इसके प्रमुख परिणाम थे, जो आपातकाल के दौरान किए गए संवैधानिक परिवर्तन को दर्शाते हैं। राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की प्रक्रिया निम्नलिखित है:● राष्ट्रपति को आपातकाल की घोषणा करने का अधिकार है यदि वे यह मानते हैं कि देश की सुरक्षा को बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से खतरा है। राष्ट्रपति की यह घोषणा आमतौर पर गृह मंत्रालय या अन्य संबंधित सरकारी अधिकारियों की रिपोर्ट के आधार पर की जाती है। ● राष्ट्रपति की घोषणा को भारतीय संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) को सूचित किया जाता है। राष्ट्रपति द्वारा जारी की गई अधिसूचना में आपातकाल की अवधि, क्षेत्र और इसके कारणों की जानकारी होती है। ● आपातकाल की घोषणा के बाद, इसे संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक है। लोकसभा और राज्यसभा को एक महीने के भीतर आपातकाल की घोषणा की स्वीकृति देने की आवश्यकता होती है। ● यदि संसद आपातकाल की घोषणा को मंजूरी देती है, तो यह छह महीने के लिए लागू रहती है। ● यदि संसद किसी भी समय आपातकाल की घोषणा को अस्वीकार करती है, तो आपातकाल समाप्त हो जाता है। ● आपातकाल के दौरान, केंद्र सरकार को विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं, जिनके तहत वे सामान्य विधायी प्रक्रियाओं को दरकिनार कर सकते हैं और आपातकालीन स्थिति की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। |
इमरजेंसी लागू करने के कारण
भारत में इमरजेंसी लागू करने के कई कारण थे, जिनमें राजनीतिक, सामाजिक, और कानूनी पहलू शामिल थे। निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से इन कारणों को विस्तार से समझ सकते है:
- राजनीतिक अस्थिरता और विरोध प्रदर्शन: 1970 के दशक की शुरुआत में, भारत में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ रही थी। कई राज्यों में जनता के बीच असंतोष बढ़ रहा था। विभिन्न विपक्षी दल और सामाजिक संगठन सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। खासतौर पर जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में “समग्र क्रांति” आंदोलन ने सरकार पर भारी दबाव बनाया। इस आंदोलन में शामिल लोग भ्रष्टाचार, महंगाई, और बेरोजगारी के खिलाफ आवाज उठा रहे थे, जिसने देश में सरकार विरोधी भावना को बढ़ावा दिया।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला: इमरजेंसी लागू करने का सबसे प्रमुख कारण इलाहाबाद उच्च न्यायालय का वह फैसला था, जिसमें चुनाव प्रक्रिया में अन्नियमतित्ता पाई गई। जिसके चलते इस स्थिति से निपटने के लिए आपातकाल लागू करने का निर्णय लिया गया।
- आंतरिक सुरक्षा और कानून व्यवस्था: सरकार ने यह दावा किया कि देश की आंतरिक सुरक्षा को गंभीर खतरा है। बढ़ते राजनीतिक विरोध, हड़तालों, और सामाजिक अशांति के चलते सरकार ने यह तर्क दिया कि देश में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए आपातकाल आवश्यक है। सरकार का मानना था कि विरोध प्रदर्शनों और अशांति के कारण देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ रही है और राष्ट्रीय एकता पर खतरा मंडरा रहा है।
इमरजेंसी की अवधि (1975-1977) सम्पूर्ण घटनाक्रम
- 1975: इमरजेंसी की घोषणा और प्रारंभिक घटनाएँ
- 12 जून 1975 को, इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनाव में सरकारी संसाधनों और मशीनरी के दुरुपयोग सहित 14 आरोप सिद्ध हुए।
- 24 जून 1975 को, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा, लेकिन इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री के पद पर बने रहने की अनुमति दी। इस बीच, जयप्रकाश नारायण ने 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग की और देशव्यापी प्रदर्शन का आह्वान किया।
- इंदिरा गांधी ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा करवा दी। 25 जून 1975 को आधी रात को आपातकाल लागू कर दिया गया।
- 1976: आपातकाल के दौरान कठोर निर्णय
- 1976 के दौरान, देशभर में कई योजनाएं लागू कीं। जिसमे सरकार का मुख्य उद्देश्य जनसंख्या नियंत्रण था। इस अभियान के विरुद्ध जनता में व्यापक असंतोष और नाराजगी फैल गई।
- 1977: इमरजेंसी का अंत और चुनाव
- 18 जनवरी 1977 को, राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने लोकसभा भंग करने की घोषणा की और मार्च में आम चुनाव कराने की घोषणा की।
- मार्च 1977 में, 6वीं लोकसभा के चुनाव हुए, जिसमें जनता पार्टी ने भारी बहुमत से जीत हासिल की। मोरारजी देसाई भारत के प्रधानमंत्री बने, और 30 वर्षों में पहली बार केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी।
- नवनिर्वाचित सरकार ने इमरजेंसी के दौरान लिए गए निर्णयों की जांच के लिए शाह आयोग का गठन किया।
शाह आयोग:● शाह आयोग भारत सरकार द्वारा 28 मई 1977 को नियुक्त एक जाँच आयोग था। ● इसका गठन 1975-76 के आपातकाल की जांच के लिए किया गया था। ● आयोग के अध्यक्ष भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति जे. सी. शाह थे। ● शाह आयोग ने पहली अंतरिम रिपोर्ट 11 मार्च 1978 को और अंतिम रिपोर्ट 6 अगस्त 1978 को सौंपी। |
इमरजेंसी के व्यापक प्रभाव
- राजनीतिक प्रभाव: इमरजेंसी ने भारतीय राजनीति को गहराई से प्रभावित किया। इस दौरान राजनीतिक विपक्ष बहुत प्रभावित हुआ, और कई नेता गिरफ्तार कर लिए गए। राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लग गए और प्रेस की स्वतंत्रता भी बाधित हुई। इस घटना ने भारतीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया।
- आर्थिक प्रभाव: इमरजेंसी के दौरान आर्थिक नीतियों में कुछ सुधार हुए, लेकिन ये नीतियां ज्यादातर अलोकप्रिय रहीं। कुछ योजनाओं ने सामाजिक और आर्थिक स्थिरता पर भी बुरा असर डाला। इसके अलावा, सरकार ने कृषि और औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि के लिए कुछ उपाय किए, जो असफल रहे।
- सामाजिक प्रभाव: इमरजेंसी ने भारतीय समाज में गहरे विभाजन पैदा किए। नागरिकों के मौलिक अधिकार प्रभावित हुए। प्रेस की स्वतंत्रता रोक से सूचना का प्रवाह रुक गया और जन जागरूकता पर असर पड़ा। इस अवधि में उत्पन्न सामाजिक प्रभाव ने इमरजेंसी के बाद भारतीय समाज में असंतोष महसूस किया गया।
इमरजेंसी के खिलाफ प्रमुख विरोध और विद्रोह: RSS ने कानूनी चुनौती दी और हजारों स्वयंसेवकों ने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सत्याग्रह किया। अमृतसर में आयोजित बैठकों में सिख नेताओं ने उस समय की सरकार का विरोध करने का संकल्प लिया। अकाली दल ने 9 जुलाई 1975 को अमृतसर में “लोकतंत्र की रक्षा का अभियान” शुरू किया। यह अभियान सिख समुदाय द्वारा लोकतांत्रिक अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए चलाया गया एक प्रमुख जनविरोध था।
भारत में अब तक आपातकाल
भारत में वर्ष 2024 तक तीन प्रमुख मौकों पर आपातकाल लागू की गई थी:
- 1962 – भारत-चीन युद्ध के दौरान: भारत-चीन युद्ध के समय, 26 अक्टूबर 1962 को राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने भारत में आपातकाल की घोषणा की। यह आपातकाल 10 जनवरी 1968 तक लागू रहा और इसके दौरान अधिकांश मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे।
- 1971 – भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान: 3 दिसंबर 1971 को भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय, आपातकाल की स्थिति लागू की गई।
- 1975-77 – इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल: यह सबसे प्रभावकारी रहा यह आपातकाल भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए सबसे विवादास्पद था।
UPSC पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रश्न: यदि भारत का राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 356 के अधीन यथा उपबंधित अपनी शक्तियों का किसी विशेष राज्य के संबंध में प्रयोग करता है, तो (2018)
(a) उस राज्य की विधानसभा स्वतः भंग हो जाती है।
(b) उस राज्य के विधानमंडल की शक्तियाँ संसद द्वारा या उसके प्राधिकार के अधीन प्रयोज्य होंगी।
(c) उस राज्य में अनुच्छेद 19 निलंबित हो जाता है।
(d) राष्ट्रपति उस राज्य से संबंधित विधियाँ बना सकता है।
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