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पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का निधन हो गया। वे 92 साल के थे।, मनमोहन सिंह, 2004 में देश के 14वें प्रधानमंत्री बने थे। उन्होंने मई 2014 तक इस पद पर दो कार्यकाल पूरे किए थे। वे देश के पहले सिख और सबसे लंबे समय तक रहने वाले चौथे प्रधानमंत्री थे।
डॉ. मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधार में योगदान:
1991 के आर्थिक उदारीकरण (LPG):
- लाइसेंस राज का अंत: उद्योग स्थापित करने के लिए सरकारी मंजूरी की बाध्यता समाप्त की।
- उदाहरण: आईटी क्षेत्र में कंपनियां जैसे इंफोसिस और विप्रो को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली।
- कर सुधार और मुद्रा अवमूल्यन:
- कर कटौती: कॉर्पोरेट कर को 1991 से पहले के 50% से घटाकर 1990 के दशक के मध्य तक लगभग 35% किया गया।
- प्रभाव: व्यापारिक भावना को बढ़ावा मिला।
- मुद्रा अवमूल्यन: भारतीय रुपये का अवमूल्यन किया गया जिससे प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि हुई।
कल्याणकारी योजनाएं:
- ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कल्याण योजनाएं:
- उदाहरण:
- 2005 में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) लागू।
- ग्रामीण ऋण को बढ़ाया, जिससे रोजगार और गरीबी उन्मूलन में मदद मिली।
- परिणाम:
- गरीबी दर 2004-05 के 2% से घटकर 2011-12 में 21.9% हो गई।
- आय में वृद्धि के कारण भारत का मध्यम वर्ग तेजी से बढ़ा।
- उदाहरण:
आर्थिक विकास:
- 1991 के आर्थिक सुधारों का प्रभाव:
- भुगतान संकट का समाधान करने के लिए वित्तीय घाटा 1991 के 4% से घटाकर 1993 में 5.7% किया गया।
- जीडीपी वृद्धि दर 1991-92 के 1% से बढ़कर 1992-93 में 5.3% हो गई।
- औद्योगिक लाइसेंसिंग समाप्त, विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया।
उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण:
- उदारीकरण (Liberalization):
- आर्थिक गतिविधियों पर नीतिगत प्रतिबंधों को कम करना।
- शुल्क में कमी या गैर-शुल्क बाधाओं को समाप्त करना। लाइसेंस राज से मुक्ति करना।
- निजीकरण (Privatization): संपत्ति या व्यवसाय का स्वामित्व सरकार से निजी संस्थाओं को स्थानांतरित करना।
- वैश्वीकरण (Globalization):
- आर्थिक गतिविधियों का राष्ट्रीय सीमाओं से परे विस्तार।
- लक्ष्य: वैश्विक बाजारों में प्रवेश, विदेशी निवेश और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देना।
मनमोहन सिंह की विदेश संबंधों पर स्थायी छाप:
- क्षेत्रीय और आर्थिक एकीकरण पर ध्यान केंद्रित:
- ASEAN, SAARC और अन्य एशियाई पड़ोसी देशों के साथ आर्थिक और कूटनीतिक संबंध गहरे किए।
- योगदान:
- एक्ट ईस्ट पॉलिसी को बढ़ावा।
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के प्रमुख साझेदारों के साथ संबंधों में सुधार।
- भारत–अमेरिका सिविल न्यूक्लियर डील (2008):
- इस समझौते के माध्यम से भारत की परमाणु अलगाव स्थिति समाप्त हुई।
- अमेरिका के साथ रणनीतिक संबंध मजबूत हुए।
- महत्वपूर्ण प्रभाव: भारत को एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में वैश्विक मान्यता मिली।
- वैश्विक शासन में भारत की भूमिका का समर्थन: संयुक्त राष्ट्र (UN), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), और विश्व बैंक में सुधार की वकालत की।
- उद्देश्य: उभरती अर्थव्यवस्थाओं, विशेष रूप से भारत, की बढ़ती प्रतिष्ठा को मान्यता देना।
- भारत की आवाज़ को G20 और ब्रिक्स जैसे वैश्विक मंचों पर प्रमुखता दी।
- रणनीतिक साझेदारियों को मजबूत करना: अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान और रूस जैसे प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ संबंध गहरे किए।