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हेमा कमेटी रिपोर्ट (Hema Committee Report)

चर्चा मे क्यों ?

  • हाल ही में, मलयालम फिल्म उद्योग (Malayalam film industry) पर हेमा समिति की रिपोर्ट (Hema Committee report) जारी हुई है, जिसमें महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (sexual harassment), लैंगिक भेदभाव (gender discrimination), और अमानवीय व्यवहार (inhumane treatment) की चौंकाने वाली घटनाओं का खुलासा हुआ है।
  • इस समिति की अध्यक्षता केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) की सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति के हेमा (Justice K Hema) ने की, जबकि इसके अन्य सदस्य दिग्गज अभिनेत्री शारदा और सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी के बी वालसला कुमारी (K B Valsala Kumari) थे।
  • न्यायमूर्ति हेमा आयोग द्वारा मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं को झेलनी पड़ रही समस्याओं पर रिपोर्ट सौंपे हुए लगभग साढ़े चार साल बीत चुके हैं। हेमा समिति की रिपोर्ट अगस्त 2024 में उस समय चर्चा में आई जब इसे आखिरकार जारी किया गया।
  • समिति द्वारा उजागर किए गए मुद्दों ने #MeToo आंदोलन और कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (sexual harassment) के मामलों को फिर से चर्चा में ला दिया है।

 हेमा समिति की रिपोर्ट क्या है (What is the Hema Committee Report) ?

  • 2017 में एक हाई-प्रोफाइल यौन उत्पीड़न (sexual harassment) की घटना के बाद, केरल सरकार ने मलयालम सिनेमा में लैंगिक मुद्दों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया।
  • हेमा समिति रिपोर्ट का नाम न्यायमूर्ति के. हेमा के नाम पर रखा गया है, जो केरल उच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं और इस समिति की अध्यक्षता की।
  • हेमा आयोग के सदस्यों में पूर्व अभिनेत्री टी. शारदा और पूर्व नौकरशाह के.बी. वालसला कुमारी ( Sharada and former bureaucrat K.B. Valsala Kumari) शामिल थीं। इस समिति को मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं की कार्य स्थितियों और सुरक्षा में सुधार के लिए जांच करने और सिफारिशें देने का कार्य सौंपा गया था।
  • यह रिपोर्ट दिसंबर 2019 में प्रस्तुत की गई थी, जिसे अंततः अगस्त 2024 में जारी किया गया। इस रिपोर्ट में उद्योग में यौन उत्पीड़न, लैंगिक भेदभाव और शोषण के चौंकाने वाले मामले सामने आए।

रिपोर्ट में प्रमुख मुद्दे क्या हैं (What are the key issues in the report) ?

  • यौन शोषण (Sexual abuse): रिपोर्ट में काम शुरू होने से पहले ही महिलाओं के साथ अनचाही शारीरिक हरकतें, बलात्कार की धमकियाँ, और समझौतों के लिए कोड नामों का इस्तेमाल जैसी घटनाओं का खुलासा हुआ है।
  • कास्टिंग काउच (Casting couch): महिलाओं को नौकरी के अवसरों के लिए यौन समझौते करने पर मजबूर किया जाता है। “सहयोगी कलाकार” (co-actors) के रूप में पहचान पाने के लिए, उन्हें शोषकों के साथ काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे मानसिक आघात (mental trauma) होता है।
  • फिल्म सेट पर सुरक्षा (Safety on film sets): यौन उत्पीड़न (sexual harassment) और अनुचित मांगों के डर से महिला फिल्मकर्मी अक्सर सेट पर अपने माता-पिता या रिश्तेदारों को लाने के लिए मजबूर होती हैं।
  • आपराधिक प्रभाव (Criminal influence): शराब या नशे के प्रभाव में कई पुरुष कलाकारों के होटल के दरवाजे पर दस्तक देते हैं, जिससे महिला कलाकारों को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है।
  • शिकायत करने का डर (Fear of complaining): यौन उत्पीड़न (sexual harassment) से जुड़ी सामाजिक कलंक और इसके परिणामों के डर से महिलाएँ शिकायत दर्ज करने से हिचकती हैं।
  • साइबर धमकियाँ (Cyber ​​threats): महिला कलाकारों को ऑनलाइन उत्पीड़न (online harassment), साइबर बुलिंग (cyber bullying) और अश्लील टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी छवि पर असर पड़ता है।
  • रात को दरवाजा पीटते हैं पुरुष अभिनेता (Male actors knock on the door at night): रिपोर्ट में सामने आया है कि कई पुरुष, शराब या नशे की स्थिति में, महिला कलाकारों के होटल के दरवाजे पर रात को बार-बार दस्तक देते हैं।
  • अपर्याप्त सुविधाएँ (Inadequate facilities): महिला कलाकारों को सेट पर पानी पीने और मासिक धर्म के दौरान शौचालय की कमी के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  • अमानवीय कार्य स्थितियाँ (Inhuman working conditions): जूनियर कलाकारों को न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता और उन्हें 19 घंटे तक काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे उनका शोषण होता है।

रिपोर्ट में महिलाओं के 17 तरीकों से शोषण का जिक्र (The report mentions 17 ways of exploitation of women):

  • काम के बदले महिलाओं से सेक्शुअल फेवर की डिमांड।
  • वर्कप्लेस पर सेक्शुअल हैरेसमेंट, एब्यूज।
  • सेक्शुअल फेवर की बात न मानने पर टॉर्चर।
  • टॉयलेट, चेंजिंग रूम्स जैसी बेसिक सुविधाएं नहीं।
  • सुरक्षा का ख्याल नहीं रखा जाता है।
  • काम करने पर मनमाने तरीके से बैन लगा देना।
  • बैन का डर दिखाकर चुप करवा देना।
  • मेल डोमिनेशन, जेंडर के आधार पर भेदभाव।
  • वर्कप्लेस पर ड्रग्स, शराब के नशे में अभद्रता।
  • अमर्यादित और वल्गर कमेंट्स पास करना।
  • कॉन्ट्रैक्ट की शर्ते लिखित न होने पर मनमानी करना।
  • तय की हुई फीस भी न देना।
  • महिला और पुरुष की फीस में भेदभाव।
  • 13 तकनीकी कार्यों में महिलाओं को मौके नहीं देना।
  • 15 ऑनलाइन हैरेसमेंट (साइबर अटैक) करना।
  • 13 अधिकारों को लेकर कानूनी जागरूकता नहीं होना।
  • समस्याओं के निवारण के लिए कोई आधिकारिक कमेटी या संगठन नहीं होना।

 हेमा समिति की रिपोर्ट में सिफारिशें (Recommendations in Hema Committee Report):

  • महिलाओं का समर्थन (Support to women): रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि जिन महिलाओं को उत्पीड़न या भेदभाव (harassment or discrimination) का सामना करना पड़ा है, उनके लिए समर्थन प्रणाली, जिसमें परामर्श सेवाएँ भी शामिल हों, की स्थापना की जानी चाहिए।
  • कानूनों का सख्त कार्यान्वयन (Strict implementation of laws): हेमा समिति (Hema Committee) की रिपोर्ट कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (sexual harassment) और लैंगिक समानता (gender equality) से संबंधित मौजूदा कानूनों के सख्त कार्यान्वयन की मांग करती है। कुछ सदस्यों ने एक स्वतंत्र न्यायाधिकरण की स्थापना का भी समर्थन किया है।
  • शिकायत निवारण तंत्र (Grievance redressal mechanism): रिपोर्ट में यौन उत्पीड़न और अन्य शिकायतों से निपटने के लिए एक समर्पित आंतरिक शिकायत समिति (ICC) की स्थापना का सुझाव दिया गया है।
  • महिलाओं का बढ़ा हुआ प्रतिनिधित्व (Increased representation of women): हेमा समिति की रिपोर्ट में निर्णय लेने की भूमिकाओं में महिलाओं का अधिक प्रतिनिधित्व बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है, जिसमें महिलाओं द्वारा निर्मित फिल्मों के लिए सिंगल-Window System Loans जैसी पहलें शामिल हैं।
  • जागरूकता कार्यक्रम (Awareness programmes): रिपोर्ट में उद्योग में कलाकारों और कर्मचारियों के लिए एक सुरक्षित कार्य वातावरण बनाए रखने के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अनिवार्य जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने की सिफारिश की गई है।

 फिल्म उद्योग में यौन शोषण को रोकने के लिए कानूनी ढांचा (Legal framework to prevent sexual exploitation in the film industry):

फिल्म उद्योग में यौन शोषण से निपटने के लिए भारत में कई कानून और दिशानिर्देश लागू किए गए हैं। इनमें मुख्य रूप से निम्नलिखित शामिल हैं:

  1. Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013 (POSH Act): यह कानून कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए बनाया गया है।
  • हर संगठन में एक आंतरिक शिकायत समिति (ICC) होना अनिवार्य है।
  • नियोक्ता (Employers) पर जिम्मेदारी है कि वे कार्यस्थल पर सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करें और शिकायतों का समय पर समाधान करें।
  1. Indian Penal Code (BNS):
  • धारा 354: महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने के लिए बल प्रयोग या हमला।
  • धारा 354A: यौन उत्पीड़न और अवांछित शारीरिक संपर्क।
  • धारा 376: बलात्कार के लिए सजा।
  • धारा 509: महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से की गई हरकतें।
  1. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act): ऑनलाइन यौन उत्पीड़न और साइबर अपराधों (sexual harassment and cyber crimes) से निपटने के लिए।
  • धारा 67: अश्लील सामग्री (obscene material) का इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रकाशन या प्रसारण।
  • धारा 66E: किसी की निजता का उल्लंघन।
  1. महिलाओं के अश्लील चित्रण (निषेध) अधिनियम, 1986 (Indecent Representation of Women (Prohibition) Act, 1986): विज्ञापनों, प्रकाशनों या किसी अन्य माध्यम से महिलाओं का अश्लील चित्रण प्रतिबंधित करता है।
  • सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 (Cinematograph Act, 1952):
  • फिल्मों के प्रदर्शन के लिए प्रमाणन और सेंसरशिप की देखरेख करता है।
  • यह सुनिश्चित करता है कि फिल्मों में अश्लील या महिलाओं का शोषण करने वाला कंटेंट न हो।
  1. राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) (National Commission for Women (NCW): महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उनके हितों की सुरक्षा के लिए कार्य करता है।
  • फिल्म उद्योग में यौन शोषण से संबंधित शिकायतों को संबोधित करता है।
  1. फिल्म संघों और निकायों द्वारा दिशानिर्देश (Guidelines by film associations and bodies): विभिन्न फिल्म संघों और गिल्ड्स ने यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए अपने कोड ऑफ कंडक्ट बनाए हैं।
  • उदाहरण के लिए, Film Employees Federation of South India (FEFSI) और Producers Guild of India ने महिला कार्यकर्ताओं के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं।

हेम समिति रिपोर्ट पर मलयालम फिल्म उद्योग की प्रतिक्रियाएँ (Malayalam film industry reactions to Hem Committee report):

मलयालम फिल्म उद्योग में रिपोर्ट पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ रही हैं।

  • सुपरस्टार मोहनलाल और Mammootty की सार्वजनिक टिप्पणी न करने के लिए आलोचना की गई है।
  • सुपरस्टार ममूटी (Mammootty) ने हेमा कमेटी रिपोर्ट पर अपनी राय रखते हुए कहा है कि मलयालम सिनेमा में कोई पावर ग्रुप नहीं है। जस्टिस हेमा कमेटी का गठन सरकार ने फिल्म इंडस्ट्री की स्टडी करने और समस्याओं के समाधान पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए किया था।
  • कुछ अभिनेताओं ने रिपोर्ट की रिलीज का स्वागत किया है और सरकार से आरोपों की उचित जांच की मांग की है।
  • एक प्रमुख फिल्म कर्मचारियों की फेडरेशन ने सरकार से रिपोर्ट में नामित आरोपियों के नाम सार्वजनिक करने की अपील की है।
  • कुछ लोगों ने चिंता व्यक्त की है कि रिपोर्ट का इस्तेमाल उद्योग के सभी पुरुषों को शोषक के रूप में ब्रांड करने के लिए किया जा रहा है।
  • कई लोगों ने रिपोर्ट और इसके बाद के बदलावों को उद्योग में आवश्यक और सकारात्मक परिवर्तन के रूप में देखा है।
  • अभिनेत्री पार्वती थिरुवोथु ने कहा, “मैं नहीं मानती कि ‘मलयालम उद्योग अंदर से सड़ा हुआ है’। नहीं, हम अंदर से अच्छे हैं, यही कारण है कि हम इसे सुधार रहे हैं।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि वे उद्योगों के बारे में चिंता करनी चाहिए जिनके बारे में कुछ नहीं सुना जाता।

भारत में महिलाओं की सुरक्षा: अपराध की दर, बलात्कार के मामले (Women Safety in India: Crime Rates, Rape Cases):

  1. बढ़ते अपराध (Rising crimes):
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने 2022 में महिलाओं के खिलाफ 4,45,256 अपराधों के मामले दर्ज किए।
  • 2018 से 2022 के बीच महिलाओं के खिलाफ रिपोर्ट किए गए अपराधों में 9% की वृद्धि हुई है, जो बढ़ते घटनाओं और बेहतर रिपोर्टिंग का संकेत है।
  • “Women and Men in India 2023” रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में 3,59,849 मामलों से बढ़कर 2022 में 4,45,000 से अधिक मामले हो गए, जो औसतन 1,220 मामले प्रतिदिन और 51 प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) प्रति घंटे दर्शाते हैं।
  • नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) के अनुसार, भारत में 15-49 वर्ष की लगभग एक तिहाई महिलाओं ने किसी न किसी रूप में हिंसा का अनुभव किया है।
  1. अपराधों के प्रकार (Types of crimes):
  • सबसे आम अपराधों में पति या ससुराल द्वारा क्रूरता (4%), अपहरण (19.2%), सम्मान को ठेस पहुंचाना (18.7%), और बलात्कार (7.1%) शामिल हैं।
  1. लगातार उच्च बलात्कार के मामले (Persistently high rape cases):
  • रिपोर्ट किए गए बलात्कार के मामले चिंताजनक रूप से अधिक बने हुए हैं, जहां 2012 से हर साल 30,000 से अधिक मामले सामने आए हैं, केवल 2020 के कोविड-19 महामारी के दौरान इनमें गिरावट देखी गई।
  • 2016 में ये मामले लगभग 39,000 तक पहुंच गए। 2018 तक, हर 15 मिनट में एक महिला बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करा रही थी, जो इन अपराधों की भयावहता को दर्शाता है।
  • 2022 में, 31,000 से अधिक बलात्कार के मामले दर्ज किए गए, जो इस समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं।
  • कठोर कानूनों के बावजूद, बलात्कार के लिए सजा की दर 2018 से 2022 के बीच 27%-28% के बीच बनी हुई है।
  1. महामारी का प्रभाव (Pandemic impact):
  • कोविड-19 महामारी ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा को और बढ़ा दिया, जहां 2020 में अपराध दर 5 प्रति 1,00,000 महिलाओं से बढ़कर 2021 में 64.5 हो गई।
  • आर्थिक तनाव, सामाजिक अलगाव, और रिवर्स माइग्रेशन जैसे कारक इस वृद्धि में योगदान करते हैं।
  1. कार्यस्थल पर उत्पीड़न (Workplace harassment):
  • “Protection of Women from Sexual Harassment Act, 2013 (POSH Act)” के लागू होने के बावजूद, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की समस्या बनी हुई है, जहां 2018 में 402 मामलों से बढ़कर 2022 में 422 मामले हो गए।
  • हालांकि, ये आंकड़े सामाजिक पूर्वाग्रहों और दंड के डर के कारण कम रिपोर्ट किए जा सकते हैं।
  1. महिलाओं की सुरक्षा पर सूचकांक (Index on Women’s Safety):
  • जॉर्जटाउन इंस्टीट्यूट के 2023 Women Peace and Security Index के अनुसार, भारत ने 1 अंक में से 595 अंक प्राप्त किए, जो महिलाओं के समावेश, न्याय और सुरक्षा के मामले में 177 देशों में से 128वां स्थान है।
  • इस सूचकांक में यह भी बताया गया कि 2022 में राजनीतिक हिंसा का सामना करने के मामले में भारत दुनिया के 10 सबसे खराब देशों में से एक है।

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