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हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक

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IIT मद्रास ने भारत का पहला हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक शुरू किया है, जिसकी लंबाई 410 मीटर है। यह ट्रैक भारतीय परिस्थितियों में हाइपरलूप तकनीक की संभावनाओं को परखने के लिए एक प्रोटोटाइप के रूप में काम करेगा। भारत में पहला पूर्ण हाइपरलूप सिस्टम मुंबई-पुणे मार्ग पर बनाया जाएगा।

हाइपरलूप क्या है?

हाइपरलूप एक ऐसी तकनीक है जिसकी मदद से दुनिया में कहीं भी लोगों को या वस्तुओं को तीव्रता के साथ सुरक्षित एवं कुशलतापूर्वक स्थानांतरित किया जा सकेगा और इससे पर्यावरण पर भी न्यूनतम प्रभाव पड़ेगा। एलन मस्क ने हाइपरलूप तकनीक का पहली बार विचार 2012 या 2013 में रखा था। इस तकनीक के माध्यम से लगभग 1000 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से पॉड दौड़ सकेगी। अगर यह हाइपरलूप तकनीक भारत में आजाती है, तो संभवतः मुम्बई से पुणे के बीच की दूरी को 25 मिनट के समय में तय किया जा सकेगा जिसमें पहले 2.5 घंटे का समय लगता था।

हाइपरलूप कैसे काम करता है?

  • सवारी या समान के परिवहन के लिए लो-प्रेशर ट्यूब और इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन का उपयोग किया जाएगा।
  • पैसेंजर कैप्सूल वैक्यूम ट्यूबों की तरह हवा के दवाब से नहीं चलता है, बल्कि यह दो विद्युत चुम्बकीय मोटर द्वारा चलता है। इसकी सहायता से लगभग 760 मील प्रति घंटा की गति से यात्रा की जा सकती है।
  • विशेष प्रकार से डिज़ाइन किये गए कैप्सूल या पॉड्स का इस तकनीक में प्रयोग किया जाता है। इनमें यात्रियों को बिठाकर या फिर कार्गो लोड कर के इन कैप्सूल्स या पॉड्स को जमीन के ऊपर पारदर्शी पाइप जो कि काफी बड़े हैं में इलेक्ट्रिकल चुम्बक पर चलाया जाएगा। चुंबकीय प्रभाव से ये पॉड्स ट्रैक से कुछ ऊपर उठ जाएंगे इसी कारण गति ज्यादा हो जाएगी और घर्षण कम होगा।
  • यात्रियों के पॉड्स को हाइपरलूप वाहन में एक कम दबाव वाली ट्यूब के अंदर उत्तरोत्तर विद्युत प्रणोदन (Electric Propulsion) के माध्यम से उच्च गति प्रदान की जाती है। जो अल्ट्रा-लो एयरोडायनामिक ड्रैग के परिणामस्वरूप लंबी दूरी तक हवाई जहाज की गति से दौड़ेंगे।

मुख्य घटक और कार्य तंत्र:

  1. ट्यूब: नीर-वैक्यूम ट्यूबें हवा का प्रतिरोध कम करती हैं, जिससे उच्च गति पर यात्रा संभव होती है।
  2. कैप्सूल/पॉड्स: यात्रियों/कार्गो को ले जाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। पॉड्स चुंबकीय अविलंबन का उपयोग करते हैं जिससे वे ट्रैक से ऊपर उठ जाते हैं और जमीन के साथ घर्षण समाप्त हो जाता है।
  3. कंप्रेसर: यह हवा को खींचता है और कैप्सूल को कम दबाव वाली ट्यूब के माध्यम से चलाने की अनुमति देता है।
  4. स्पेंशन: हवा बियरिंग्स सस्पेंशन स्थिरता प्रदान करता है और ड्रैग को कम करता है।
  5. प्रोपल्शन: पॉड्स को लाइनियर इंडक्शन मोटर्स का उपयोग करके आगे बढ़ाया जाता है।

लाभ (Benefits):

  1. ऊर्जा दक्षता: हाइपरलूप सिस्टम्स कम हवा का प्रतिरोध और घर्षण के कारण अत्यधिक ऊर्जा-कुशल माने जाते हैं।
  2. सततता: कई हाइपरलूप अवधारणाओं को सौर ऊर्जा जैसी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों द्वारा संचालित करने के लिए डिजाइन किया गया है, जिससे यह पर्यावरण के अनुकूल होता है।
  3. यात्रा समय में कमी: हाइपरलूप संभवतः शहरों के बीच यात्रा के समय को कम कर सकता है, जिससे लंबी दूरी की यात्राएं अधिक व्यवहार्य होती हैं।

चुनौतियां (Challenges):

  1. अधिनिर्माण लागतें: आवश्यक बुनियादी ढांचे, ट्यूबों, स्टेशनों और समर्थन प्रणालियों को बनाना अत्यधिक महंगा होता है।
  2. भूमि अधिग्रहण: हाइपरलूप मार्गों के लिए आवश्यक भूमि को हासिल करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर घनी जनसंख्या वाले क्षेत्रों में।
  3. प्रौद्योगिकी संबंधित चुनौतियां: मैग्लेव सिस्टम्स, वैक्यूम सील और सुरक्षा तंत्र सहित तकनीक को विकसित और परिपूर्ण करना महत्वपूर्ण शोध और विकास की आवश्यकता होती है।

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