चर्चा में क्यों?
कुर्द-तुर्की संघर्ष चर्चा में है क्योंकि हाल ही में तुर्की ने कुर्दों पर अपने हमले तेज कर दिए हैं। इससे तुर्की में मानवाधिकार उल्लंघन संबंधी मामलों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता बढ़ गई है। इसके साथ ही, कुर्दों का अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी तुर्की पर दबाव बना रहा है।
कुर्द-तुर्की संघर्ष (Kurdish–Turkish conflict) का परिचय
कुर्द-तुर्की संघर्ष दशकों से जारी एक विवादित और लंबा संघर्ष है, जो तुर्की सरकार और कुर्द समुदाय के बीच राजनीतिक, सांस्कृतिक, और क्षेत्रीय विवादों के कारण पनपा है। कुर्द लोग अपने अधिकारों और सांस्कृतिक पहचान के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। तुर्की ने इस संघर्ष को रोकने के लिए सैन्य बल का प्रयोग किया है, जिसके परिणामस्वरूप कई सशस्त्र झड़पें और हिंसक घटनाएं हुई हैं।
कुर्द-तुर्की संघर्ष की शुरुआत और इतिहास
कुर्द-तुर्की संघर्ष की जड़ें तुर्की गणराज्य की स्थापना और उसके बाद की राजनीति में गहराई से निहित हैं। यह संघर्ष कुर्दों की राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान की मान्यता के लिए तुर्की सरकार के साथ दशकों से चल रहा है।
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ओटोमन साम्राज्य के अंत के बाद कुर्दों की स्थिति
ओटोमन साम्राज्य के अंत के बाद, कुर्दों की स्थिति कमजोर हो गई। पहले वे ओटोमन साम्राज्य के अधीन रहते थे, जहां उन्हें कुछ हद तक स्वायत्तता प्राप्त थी। 1920 के सेव्रेस संधि ने कुर्दों के लिए एक संभावित कुर्द राज्य की स्थापना की बात कही, लेकिन यह संधि कभी पूरी तरह लागू नहीं हुई। इसके बाद, 1923 की लुसाने संधि ने तुर्की गणराज्य की सीमाएं निर्धारित कीं और कुर्दों को एक अलग पहचान देने की संभावनाओं को समाप्त कर दिया। इस संधि के बाद, कुर्द समुदाय तुर्की की सीमाओं के भीतर रह गया, लेकिन उन्हें वहां पूर्ण नागरिक अधिकार और स्वायत्तता प्राप्त नहीं हुई।
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तुर्की गणराज्य की स्थापना और कुर्दों के साथ संबंध
1923 में मुस्तफा कमाल अतातुर्क द्वारा तुर्की गणराज्य की स्थापना के बाद, सरकार ने एक सख्त राष्ट्रवादी नीति अपनाई। तुर्की ने एकल राष्ट्रीयता और एकल भाषा पर जोर दिया, जिसमें कुर्दों की अलग पहचान को नकार दिया गया। तुर्की सरकार ने कुर्दों के अस्तित्व को मानने से इंकार कर दिया और उन्हें ‘पहाड़ी तुर्क’ कहा, ताकि उनकी सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान को मिटाया जा सके। 1930 और 1940 के दशक में तुर्की सरकार ने कुर्द विद्रोहों को रोकने के लिए सैन्य कार्रवाई की और कुर्द भाषा और संस्कृति पर प्रतिबंध लगा दिया। इस अवधि में कुर्दों पर कई दमनकारी नीतियां लागू की गईं।
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कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK) का उदय और तुर्की सरकार के साथ संघर्ष
1970 के दशक में कुर्दों की असंतोष की भावना बढ़ने लगी, जिसके परिणामस्वरूप 1978 में कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK) की स्थापना हुई। PKK ने तुर्की सरकार के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया और संघर्ष की शुरुआत 1984 से हुई जब PKK ने तुर्की के सैन्य ठिकानों और पुलिस पर हमले शुरू किए। तुर्की सरकार ने PKK को आतंकवादी संगठन घोषित किया और इसे रोकने के लिए व्यापक सैन्य अभियान चलाए।
PKK के संघर्ष ने तुर्की के अंदरूनी हिस्सों में बड़े पैमाने पर अस्थिरता पैदा की, और 1990 के दशक में यह संघर्ष तीव्र हो गया। तुर्की ने कुर्द विद्रोहियों को दबाने के लिए कई सैन्य अभियान चलाए, जिसमें हजारों कुर्द मारे गए और लाखों विस्थापित हुए। इस संघर्ष में PKK ने भी तुर्की के नागरिक ठिकानों पर हमले किए, जिससे हिंसा और आतंकवाद बढ़ा।
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हाल के वर्षों में संघर्ष की तीव्रता
21वीं सदी में भी कुर्द-तुर्की संघर्ष कम नहीं हुआ। तुर्की सरकार ने कुर्दों के खिलाफ अपने सैन्य अभियानों को जारी रखा है, विशेष रूप से PKK के खिलाफ। हाल के वर्षों में, संघर्ष की तीव्रता और बढ़ गई है, खासकर तुर्की की सीरिया और इराक में कुर्द बलों के खिलाफ कार्रवाई के बाद। तुर्की की सरकार ने PKK के खिलाफ सीमा पार अभियान चलाए हैं, जिससे क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ी है।
हाल के वर्षों में तुर्की की कुर्दों के खिलाफ नीतियां न केवल PKK के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष तक सीमित रही हैं, बल्कि तुर्की सरकार ने कुर्द राजनीतिक दलों और नेताओं पर भी कड़ी कार्रवाई की है। कुर्द राजनीतिक दलों को कमजोर करने और कुर्द प्रतिनिधियों को गिरफ्तार करने से तुर्की की राजनीतिक प्रणाली में भी तनाव बना हुआ है।
कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK)● कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK) की स्थापना 1978 में अब्दुल्ला ओकालान ने की थी। ● PKK का प्राथमिक उद्देश्य तुर्की में कुर्दों के लिए स्वायत्तता और स्वतंत्रता प्राप्त करना है। ● संगठन का शुरुआती दृष्टिकोण एक समाजवादी और वामपंथी एजेंडा पर आधारित था। ● PKK ने 1984 में तुर्की सरकार के साथ अपना संघर्ष शुरू किया। ● तुर्की सरकार, अमेरिका, और यूरोपीय संघ ने PKK को वर्तमान में आतंकवादी संगठन घोषित किया है। |
कुर्द लोगों की पहचान
कुर्द लोग एक प्राचीन जातीय समूह हैं, जिनकी पहचान मेसोपोटामिया के समय से चली आ रही है।
- ये मुख्य रूप से तुर्की, इराक, ईरान, और सीरिया में बसे हुए हैं।
- कुर्दों की कोई स्वतंत्र राज्य नहीं है, लेकिन वे एक लंबे समय से स्वतंत्रता और स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं।
- अनुमान है कि लगभग 3.5 से 4 करोड़ कुर्द दुनिया भर में रहते हैं, जिनमें से अधिकांश उपर्युक्त देशों में फैले हुए हैं।
- ऐतिहासिक रूप से, कुर्दों का क्षेत्र मेसोपोटामिया, फारस, और असीरिया के प्रभाव में रहा है।
- उनकी भाषा, कुर्दिश, इंडो-यूरोपीय भाषाओं से संबंधित है और इसे दो प्रमुख रूपों में बोला जाता है: कुरमांजी और सोरानी।
- कुर्द समुदाय पारंपरिक रूप से मुस्लिम है, लेकिन उनमें यज़ीदी और ईसाई समुदाय भी पाए जाते हैं।
कुर्द-तुर्की संघर्ष के प्रमुख कारण
- स्वायत्तता की मांग: कुर्दों ने लंबे समय से स्वायत्तता की मांग की है, जिसमें वे अपनी सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान के संरक्षण के लिए एक स्वतंत्र या स्वायत्त क्षेत्र की खोज में हैं। तुर्की के भीतर कुर्द क्षेत्रों में स्वायत्तता और अधिक अधिकार देने की मांग ने संघर्ष को जन्म दिया।
- तुर्की सरकार कुर्दों की स्वायत्तता की मांग को राष्ट्रीय अखंडता के लिए खतरा माना। तुर्की की सरकार को डर है कि स्वायत्तता की मांग अन्य समूहों द्वारा भी उठाई जा सकती है, जिससे देश की एकता पर असर पड़ेगा।
- मध्य पूर्व के क्षेत्रीय शक्तियां जैसे कि ईरान, इराक, और सीरिया ने कुर्दों की राजनीतिक और सैन्य गतिविधियों में हस्तक्षेप किया। ये देश कभी-कभी कुर्द समूहों का समर्थन किया जिससे तुर्की के साथ संघर्ष को और बढ़ावा मिला।
कुर्द-तुर्की संघर्ष के प्रभाव
- कुर्द-तुर्की संघर्ष ने तुर्की के राजनीतिक परिदृश्य को अस्थिर किया। निरंतर संघर्ष और हिंसा के कारण तुर्की में आंतरिक सुरक्षा खतरे में पड़ गई है।
- संघर्ष ने मध्य पूर्व में क्षेत्रीय स्थिरता को भी प्रभावित किया। तुर्की की नीतियों और सैन्य अभियानों ने पड़ोसी देशों, जैसे कि सीरिया और इराक, में भी अस्थिरता बढ़ाई।
- संघर्ष के दौरान, कुर्दों के मानवाधिकारों का उल्लंघन व्यापक रूप से हुआ। सैन्य अभियानों और सुरक्षा बलों के दमन ने कुर्द गांवों और शहरों में व्यापक तबाही मचाई।
- PKK को आतंकवादी संगठन घोषित किए जाने के बाद, संघर्ष के कारण आतंकवाद की घटनाओं में वृद्धि हुई है। PKK के हमलों और तुर्की सरकार के खिलाफ प्रतिशोध की भावना ने आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दिया है।
- संघर्ष के परिणामस्वरूप, लाखों कुर्द नागरिक आंतरिक रूप से विस्थापित हुए। उनके घर, गांव, और शहरों को सैन्य संघर्ष और हिंसा के कारण छोड़ना पड़ा।
- बड़ी संख्या में कुर्द शरणार्थी पड़ोसी देशों और यूरोप की ओर पलायन कर रहे हैं, जिससे वैश्विक शरणार्थी संकट और मानवीय सहायता की जरूरतें बढ़ी हैं।
कुर्द-तुर्की संघर्ष में अंतरराष्ट्रीय समुदाय
- अमेरिका का कुर्दों के प्रति व्यवहार हमेशा से रणनीतिक हितों पर आधारित रहा है। अमेरिका ने इराक और सीरिया में कुर्द लड़ाकों का समर्थन किया। कुर्द लड़ाके, जिन्हें “पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट्स” (YPG) कहा जाता है, ने सीरिया में अमेरिकी सेनाओं के सहयोग से ISIS के खिलाफ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- रूस का कुर्द-तुर्की संघर्ष में हस्तक्षेप मुख्य रूप से सीरिया के युद्ध से जुड़ा हुआ है। रूस ने सीरिया में अपनी सैन्य उपस्थिति के कारण कुर्दों के साथ संबंध बनाए रखे, लेकिन उसने तुर्की के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता दी। रूस ने कुर्दों को सीमित समर्थन दिया। रूस ने कई बार तुर्की और कुर्दों के बीच मध्यस्थता का प्रयास भी किया, लेकिन इसका असर बहुत सीमित रहा।
- यूरोपीय संघ (EU) ने तुर्की के कुर्दों के प्रति व्यवहार की आलोचना की। कई यूरोपीय देशों ने कुर्द नेताओं को समर्थन दिया है और तुर्की की सरकार पर कुर्दों के साथ शांतिपूर्ण वार्ता की अपील की है। हालांकि, तुर्की के साथ यूरोप के राजनैतिक और व्यापारिक संबंधों के चलते EU की प्रतिक्रिया कई बार संयमित रही है।
- कुर्द-तुर्की संघर्ष पर कई मानवाधिकार संगठन, जैसे कि एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच, ने तुर्की सरकार की इन नीतियों की आलोचना की। इन संगठनों ने कुर्द नागरिकों के शोषण को उजागर किया। वे लगातार तुर्की सरकार से मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने की अपील करते आए हैं और कुर्द लोगों के अधिकारों की रक्षा की मांग की है।
शांति वार्ता के प्रयास
- 1990 के दशक में तुर्की और PKK के बीच संघर्ष अपने चरम पर था। इस दौरान, अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण कुछ शांति वार्ताओं की कोशिश की गई, लेकिन दोनों पक्षों की आपसी अविश्वास और तुर्की सरकार की कुर्दों के अधिकारों को लेकर कठोर नीतियों के कारण ये वार्ताएं विफल रहीं।
- 2013 में, तुर्की सरकार ने PKK के नेता अब्दुल्ला ओकालान के साथ सीधी वार्ता शुरू की। यह संघर्ष को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने का सबसे महत्वपूर्ण प्रयास था। शुरुआत में, दोनों पक्षों के बीच संघर्ष विराम की स्थिति बनी, और उम्मीदें थीं कि यह प्रक्रिया सफल होगी। लेकिन 2015 में, वार्ता के दौरान कई घटनाओं ने इस प्रक्रिया को बाधित कर दिया, और तुर्की ने फिर से PKK के खिलाफ सैन्य अभियान शुरू कर दिया। इसके बाद संघर्ष और भड़क उठा, और शांति प्रक्रिया विफल हो गई।
इन संघर्षों को रोकने के संभावित समाधान
- कुर्द-तुर्की संघर्ष का समाधान राजनीतिक वार्ता और स्वायत्तता या संघीय ढांचे के माध्यम से संभव हो सकता है, जिसमें कुर्दों को उनके राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकार दिए जाएं।
- कुर्द समुदाय को तुर्की की एकता के भीतर सांस्कृतिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए, भाषा, शिक्षा और सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण की दिशा में कदम उठाए जा सकते हैं।
- इसके लिए क्षेत्रीय सहयोग महत्वपूर्ण है, जहां तुर्की, सीरिया, इराक, और ईरान जैसे पड़ोसी देश कुर्द मुद्दों को एकजुट होकर हल करें।
- साथ ही, अंतरराष्ट्रीय समुदाय का दखल, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र और अन्य प्रमुख शक्तियां, संघर्ष में मध्यस्थता कर शांति प्रक्रिया को बढ़ावा दे सकती हैं। यह सभी उपाय संघर्ष को शांतिपूर्ण ढंग से समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
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