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मोरंड-गंजाल सिंचाई परियोजना

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संदर्भ:

मोरंड-गंजाल सिंचाई परियोजना: राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने चेतावनी दी है कि मध्य प्रदेश में मोरंडगंजाल सिंचाई परियोजना से सतपुड़ा और मेलघाट टाइगर रिजर्व के महत्वपूर्ण बाघ आवास जलमग्न हो सकते हैं, जिससे वहां के वन्यजीवों को गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।

मोरंड-गंजाल सिंचाई परियोजना :

  • स्वीकृति और प्रस्तावना: 1972 में प्रस्तावित, लेकिन 2017 में सरकार से मंजूरी मिली।
  • परियोजना का उद्देश्य: मध्य प्रदेश में कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए एक बांध आधारित सिंचाई परियोजना।
  • संबंधित नदियाँ:
    • मोरंड और गंजाल नदियाँ।
    • दोनों नर्मदा नदी की सहायक नदियाँ हैं।
    • गंजाल – नर्मदा की बाएँ किनारे (Left Bank) की सहायक नदी।
    • मोरंड – गंजाल की एक प्रमुख सहायक नदी।
  • भौगोलिक विस्तार: मध्य प्रदेश के होशंगाबाद, बैतूल, हरदा और खंडवा जिले शामिल।

बाघ आवास पर प्रभाव:

  • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के विश्लेषण के अनुसार, परियोजना स्थल बाघों के लिए महत्वपूर्ण आवास है।
  • वन क्षेत्र के जलमग्न होने से अभ्यारण्यों के बीच बाघों की आवाजाही बाधित होगी।
  • यह बाधा बाघों के आनुवंशिक आदानप्रदान और जनसंख्या स्थिरता के लिए खतरा बन सकती है।
  • NTCA ने चेतावनी दी है कि यह पारिस्थितिकीय व्यवधान बाघों और अन्य वन्यजीवों पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
  • परियोजना का आदिवासी समुदायों पर प्रभाव:
    • 600 से अधिक कोरकू जनजाति के लोग सीधे विस्थापित होंगे।
    • कोरकू जनजाति जंगलों पर अपनी आजीविका, भोजन, औषधीय पौधों और सांस्कृतिक परंपराओं के लिए निर्भर करती है।
  • आजीविका का नुकसान:
    • पारंपरिक खेती के तरीकों का अंत होगा।
    • अजनबी क्षेत्रों में विस्थापन से सांस्कृतिक क्षरण होगा।
  • सामाजिक अशांति: विस्थापन से विरोध प्रदर्शन और सामाजिक अस्थिरता की आशंका।
  • सामाजिकआर्थिक चिंताएँ: NTCA ने कहा कि डूबने वाले क्षेत्र न केवल बाघों के लिए बल्कि विविध वन्यजीवों और जैव विविधता के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
  • परियोजना के लिए सिफारिशें
  • विकल्पों की खोज: NTCA ने मध्य प्रदेश सरकार को वैकल्पिक स्थल तलाशने की सिफारिश की, ताकि वन्यजीवों पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
  • बाघ गलियारों का निर्माण: बाघों की आवाजाही बनाए रखने के लिए वैकल्पिक गलियारे विकसित किए जाएं।
  • परियोजना का पुनः डिज़ाइन: जलाशय का आकार कम करने या सुरंग-आधारित सिंचाई प्रणाली अपनाने पर विचार किया जाए।
  • सरकारी समीक्षा और वन भूमि हस्तांतरण: 2025 में वन सलाहकार समिति (FAC) ने 2,250 हेक्टेयर वन भूमि को परियोजना के लिए डायवर्ट करने का प्रस्ताव दिया।
  • आदिवासियों का पुनर्वास: उचित मुआवजा, वैकल्पिक आवास और आजीविका प्रशिक्षण प्रदान कर कोरकू जनजाति के पुनर्वास की व्यवस्था हो।
  • दीर्घकालिक समाधान: पर्यावरण-अनुकूल उपाय जैसे माइक्रो इरिगेशन, शुष्क कृषि (Dry Land Agriculture) और कृषि वानिकी (Agroforestry) को बढ़ावा देकर पानी की मांग कम की जाए।

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