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अपतटीय खनन के बारे में : Offshore Mining

संदर्भ:

अपतटीय खनन: केंद्र सरकार द्वारा केरल के कोल्लम तट समेत कई अपतटीय खनन ब्लॉकों की नीलामी के फैसले का व्यापक विरोध हो रहा है। केरल सरकार और मछुआरा समुदाय इस कदम का विरोध कर रहे हैं, इसे पर्यावरण और आजीविका के लिए खतरा बता रहे हैं।

  • केरल विधानसभा ने पर्यावरण, आर्थिक और सुरक्षा संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए प्रस्ताव का विरोध किया।

केरल की आपत्तियाँ: अपतटीय खनन विवाद

  1. पर्यावरणीय प्रभाव:
    • समुद्र तल की खुदाई से तलछट का प्रसार होगा, जिससे समुद्री जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचेगा।
    • मछलियों के प्रजनन स्थल और प्रवाल भित्तियां नष्ट होने का खतरा।
    • जहरीले तत्वों का रिसाव समुद्री जीवों और मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
  2. आजीविका पर प्रभाव:
    • 11 लाख से अधिक मछुआरों की आजीविका खतरे में।
    • मछलियों की संख्या में कमी से मत्स्य उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव।
    • पारंपरिक मछुआरा समुदाय के सांस्कृतिक और आर्थिक अस्तित्व का संकट।
  3. आर्थिक सामाजिक प्रभाव:
    • मत्स्य और पर्यटन उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को नुकसान।
    • तटीय क्षरण और समुद्र के बढ़ते स्तर से बस्तियों को खतरा।
    • स्थानीय समुदायों से परामर्श के बिना लिया गया फैसला, जिससे जन असंतोष बढ़ा।

स्थानीय विरोध और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ:

  1. मछुआरों और स्थानीय निवासियों का विरोध:
    • केरल में मछुआरे अपतटीय खनन के खिलाफ संगठित हड़तालें और प्रदर्शन कर रहे हैं।
    • उनका मानना है कि समुद्री खुदाई से मछली की आबादी घटेगी, जिससे उनकी आजीविका खतरे में पड़ जाएगी।
    • पर्यावरणविदों और मछुआरा संघों ने मिलकर इस परियोजना को रद्द करने की मांग की है।
  2. राजनीतिक प्रतिक्रिया:
    • केरल विधानसभा ने केंद्र सरकार से इस योजना की समीक्षा की मांग की।
    • राज्य सरकार और विपक्षी दलों ने इस योजना की कड़ी आलोचना की और तटीय समुदायों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने को कहा।
    • कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दल इस विरोध में शामिल हुए और केंद्र सरकार पर स्थानीय हितों की अनदेखी का आरोप लगाया।

अपतटीय खनन (Offshore Mining):

  • परिचय: ऑफशोर माइनिंग में समुद्र तल से खनिज या कीमती पत्थरों का निष्कर्षण शामिल है।
  • भारत में ऑफशोर माइनिंग की संभावनाएं:
    • भारत का विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) दो मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला है।
    • जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) ने अपतटीय क्षेत्रों में विभिन्न खनिज संसाधनों की पहचान की है।
      • लाइम मड (Lime mud): 1,53,996 मिलियन टन (गुजरात और महाराष्ट्र के तटों से दूर)।
      • निर्माणग्रेड रेत (Construction-grade Sand): 745 मिलियन टन (केरल तट से दूर)।
      • हेवी मिनरल प्लेसर्स (Heavy Mineral Placers): 79 मिलियन टन (ओडिशा, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र के तटों से दूर)।
      • पॉलीमेटालिक नोड्यूल्स: अंडमान सागर और लक्षद्वीप सागर में।

ऑफशोर क्रिटिकल मिनरल नीलामी:

  • भारत ने 2024 में OAMDR अधिनियम, 2002 के तहत पहली ऑफशोर क्रिटिकल मिनरल नीलामी शुरू की।
  • इस नीलामी में अरब सागर और अंडमान सागर में फैले 13 ब्लॉक्स को पेश किया गया।
  • नीलामी का उद्देश्य लिथियम, कोबाल्ट, निकेल तांबा जैसे महत्वपूर्ण खनिजों की खोज करना जो बुनियादी ढांचे, नवीकरणीय ऊर्जा, उन्नत तकनीकों के लिए आवश्यक हैं।
  • इस पहल का उद्देश्यआयात पर निर्भरता कम करना, संसाधनों की उपलब्धता बढ़ाना और वैश्विक खनिज बाजार में भारत की स्थिति को मजबूत करना है।

कानून और नियम:

भारत में अपतटीय खनन ऑफशोर एरिया मिनरल (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) अधिनियम, 2002″ के तहत नियंत्रित किया जाता है। इसमें संशोधन किया गया है, जिसके साथ दो नए नियम लागू किए गए हैं:

  • Offshore Area Operating Right Rules, 2024
  • Offshore Area Mineral (Auction) Rules, 2024

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