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हाल ही में सरकार ने अपतटीय क्षेत्र परिचालन अधिकार नियम, 2024 को अधिसूचित किया है, जिसका उद्देश्य अपतटीय क्षेत्रों में खनिजों के अन्वेषण और उत्पादन को विनियमित करना है। इस नियम का महत्व 10 ब्लॉकों की पहली अपतटीय खनिज नीलामी की योजना के संदर्भ में है, जिसमें रेत, चूना मिट्टी, और पॉलीमेटेलिक नोड्यूल शामिल हैं।
अपतटीय क्षेत्र परिचालन अधिकार नियम की मुख्य विशेषताएं:
- प्रयोज्यता: खनिज तेल और हाइड्रोकार्बन तथा निर्दिष्ट परमाणु खनिजों को छोड़कर सभी खनिजों के लिए लागू।
- पट्टा समर्पण: अलाभकारी उत्पादन परिचालन के मामले में 10 वर्ष के बाद पट्टा समर्पण का प्रावधान।
- प्राथमिकता: आरक्षित अपतटीय क्षेत्रों के लिए परिचालन अधिकारों में सरकार और सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों को प्राथमिकता।
अपतटीय खनन और इसका महत्व:
- अपतटीय खनन, जिसे गहरे समुद्र में खनन कहा जाता है, गहरे समुद्र तल से खनिज भंडार को पुनः प्राप्त करने की प्रक्रिया है। यह स्थलीय भंडारों के घटने के संदर्भ में धातुओं की बढ़ती मांग को पूरा करने और खनिज आयात पर निर्भरता को कम करने में मदद करेगा।
अपतटीय खनन के मुद्दे/चुनौतियाँ:
- पर्यावरणीय क्षति: आवास विनाश और प्रदूषण के कारण जैव विविधता को खतरा हो सकता है।
- मछुआरा समुदायों पर प्रभाव: मछली आबादी को नुकसान और मछुआरा समुदायों की आजीविका पर प्रभाव।
- प्रौद्योगिकी: गहरे समुद्र में खनन के लिए पर्याप्त अनुसंधान और तकनीकी विकास की कमी।
उठाए गए कदम:
- अपतटीय क्षेत्र खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 2002: खनिज संसाधनों के विकास एवं विनियमन के लिए।
- डीप ओशन मिशन: पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत गहरे समुद्र में खनिज अन्वेषण के लिए।
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्रतल प्राधिकरण (आईएसए): 2016 में हिंद महासागर में पॉली-मेटालिक नोड्यूल्स के विशेष अन्वेषण के लिए भारत को 10,000 वर्ग किमी क्षेत्र आवंटित किया गया।
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