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वन नेशन, वन इलेक्शन विधेयक

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वर्तमान में संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है, जिसमें वन नेशन, वन इलेक्शन (एक देश, एक चुनाव) विधेयक के पेश होने को लेकर चर्चा तेज हो गई है।

  • एक उच्च स्तरीय समिति (high-level committee), जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने की, ने मार्च में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की। इसे “एक राष्ट्र, एक चुनाव” के नाम से जाना जाता है।
  • समिति ने सुझाव दिया कि सबसे पहले लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हों, इसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनावों को समन्वयित किया जाए।

क्या है “वन नेशन, वन इलेक्शन:

“एक देश, एक चुनाव” (One Nation One Election) का मतलब है कि भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव एक ही समय पर आयोजित किए जाएं। इसका मतलब है कि हमें भारत के चुनावी सिस्टम (electoral system) को इस तरह बदलना होगा कि राज्य और केंद्र के चुनाव एक ही समय पर हों।

  • इस व्यवस्था में, लोग एक ही दिन और एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनावों के लिए वोट देंगे, इस प्रणाली का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को सरल और प्रभावी बनाना है।

अगर यह प्रणाली लागू होती है, तो:

  • समान समय पर मतदान: लोकसभा (केंद्र सरकार) और राज्य विधानसभा के चुनाव एक ही दिन या एक ही समय में होंगे।
  • समय की बचत: इससे बार-बार चुनावी प्रक्रिया और चुनावी खर्चे कम होंगे।
  • प्रशासनिक सुविधा: चुनावी कामकाज और चुनावी बंधन के लिए एक ही समय पर व्यवस्था की जाएगी, जिससे प्रशासन को आसानी होगी।

भारत में समानांतर चुनावों का इतिहास:

भारत में समानांतर चुनावों (Simultaneous Elections) का मतलब है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते हैं। यह व्यवस्था स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में 1952, 1957, और 1962 में लागू की गई थी। लेकिन राजनीतिक अस्थिरता, राज्य विधानसभाओं का जल्दी भंग होना, और क्षेत्रीय मुद्दों को संबोधित करने के लिए अलग-अलग चुनाव की ज़रूरत के कारण यह प्रथा धीरे-धीरे समाप्त हो गई।

  • 2019 में, केवल चार राज्यों (आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, और सिक्किम) में राज्य विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ हुए।

एक राष्ट्र, एक चुनाव के पक्ष में तर्क:

  1. वित्तीय बोझ में कमी: एक साथ चुनावों से आयोग का खर्च घटेगा, और ₹4500 करोड़ तक की बचत होगी। एक ही मतदाता सूची से समय और पैसा बचेगा।
  2. राजनीतिक दलों की स्थिति में सुधार: चुनाव एक साथ होने से फंडिंग की डुप्लिकेशन नहीं होगी, छोटे दल बेहतर तरीके से प्रबंधन कर सकेंगे।
  3. नीति स्थिरता: नीतियों में निरंतरता बनी रहेगी, और चुनावों से व्यवधान कम होंगे।
  4. प्रशासनिक दक्षता: चुनावी कामों में व्यस्तता कम होने से प्रशासनिक कार्य बेहतर होंगे।
  5. सुरक्षा बलों का बेहतर उपयोग: एक साथ चुनावों से सुरक्षा बलों का खर्च कम होगा।
  6. मतदाता मतदान में वृद्धि: चुनाव एक साथ होने से मतदान में वृद्धि होगी।
  7. राज्य वित्त में सुधार: मुफ्त योजनाओं की संख्या घटेगी और राज्य की वित्तीय स्थिति सुधरेगी।
  8. पार्टी बदलने की संभावना कम: नियमित चुनावों से पार्टी बदलने का संकट कम होगा, जिससे भ्रष्टाचार में कमी आएगी।

एक राष्ट्र, एक चुनाव के खिलाफ तर्क:

  1. जवाबदेही में कमी: नियमित चुनावों से सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी रहती है, जबकि एक साथ चुनावों से स्वायत्तता बढ़ सकती है।
  2. संघीयता का संकट: सत्ता केंद्रीकृत होगी, जिससे राज्य दलों की भूमिका कम हो सकती है।
  3. लोकतंत्र की भावना: चुनावों का चक्र कृत्रिम रूप से तय होने से मतदाताओं के अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
  4. मतदाता व्यवहार पर असर: एक साथ चुनावों से क्षेत्रीय दलों को नुकसान हो सकता है।
  5. लागत में वृद्धि: ईवीएम और वीवीपीएटी की लागत बढ़ेगी, जिससे चुनाव खर्च में वृद्धि होगी।
  6. विघटन की चुनौती: लोकसभा का जल्दी विघटन होने पर सभी राज्यों में चुनाव कराना कठिन हो सकता है।

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