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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने “एक राष्ट्र, एक निर्वाचन” (ONOE) के मुद्दे पर पूर्व-राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। इस प्रस्ताव के तहत लोकसभा, सभी राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनावों को एक साथ कराने की योजना बनाई गई है।
एक देश, एक चुनाव (ONOE):
एक देश, एक चुनाव (ONOE) का मतलब लोकसभा, सभी राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों जैसे नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनावों को एक साथ करवाने की अवधारणा है। इसका उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाना और विभिन्न स्तरों पर बार-बार होने वाले चुनावों को कम करना है।
एक साथ निर्वाचन: उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशें
- 1951 से1967 के बीच एक साथ निर्वाचन संपन्न हुए हैं।
- विधि आयोग: 170वीं रिपोर्ट(1999): पांच वर्षों में एक लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए एक निर्वाचन।
- संसदीय समिति की79वीं रिपोर्ट(2015): दो चरणों में एक साथ निर्वाचन कराने के तरीके सुझाए गए।
- श्री रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों सहित व्यापक तौर पर हितधारकों से विस्तृत परामर्श किया।
ONOE के फायदे:
- सरकारी खर्च में कमी: एक साथ चुनाव कराने से सरकार के खर्च में भारी कमी हो सकती है। उदाहरण के लिए, 2019 के लोकसभा चुनावों की लागत लगभग 60,000 करोड़ रुपये थी, और बार-बार चुनावों में बार-बार खर्च करना पड़ता है।
- मतदान प्रतिशत में वृद्धि: लगातार चुनावों के कारण होने वाली ‘मतदाता थकान’ को दूर किया जा सकता है, जिससे मतदाता भागीदारी में वृद्धि हो सकती है।
- नीतियों में स्थिरता और विकास: अलग-अलग चुनावों के दौरान बार-बार लागू होने वाले आदर्श आचार संहिता के कारण नीति-निर्माण में रुकावट आती है, जिससे लंबी अवधि की नीतियों के कार्यान्वयन, सप्लाई चेन, व्यापार निवेश और आर्थिक विकास पर असर पड़ता है।
- सार्वजनिक सेवाओं का कुशल वितरण: चुनावों में सरकारी अधिकारियों और सुरक्षा बलों का व्यापक उपयोग किया जाता है, जिससे उनकी नियमित ड्यूटी बाधित होती है। एक साथ चुनाव होने से यह रुकावटें कम हो जाएंगी।
ONOE से संबंधित चुनौतियाँ/प्रमुख मुद्दे:
- क्षेत्रीय दलों का हाशिए पर आना: एक साथ चुनाव क्षेत्रीय दलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, क्योंकि राष्ट्रीय मुद्दे क्षेत्रीय चिंताओं पर हावी हो सकते हैं, जिससे उनके चुनावी परिणाम प्रभावित हो सकते हैं।
- जवाबदेही में कमी: लंबे अंतराल पर चुनाव होने से राजनीतिक नेताओं की जवाबदेही कम हो सकती है, क्योंकि उन्हें बार-बार मतदाताओं का सामना करने की आवश्यकता नहीं होगी।
- संघवाद पर असर: राज्यों में चुनावों को समन्वयित करने के लिए अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) का बार-बार उपयोग संघीय ढांचे और स्थानीय शासन को कमजोर कर सकता है।
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव पर प्रभाव: समन्वित चुनावों से राष्ट्रीय और राज्य स्तर के मुद्दों के बीच अंतर धुंधला हो सकता है, जिससे मतदाता राष्ट्रीय कथानक के आधार पर मतदान कर सकते हैं, बजाय राज्य या स्थानीय मुद्दों पर ध्यान देने के।
उच्च-स्तरीय समिति द्वारा सुझाए गए रोडमैप:
- संविधान में संशोधन:
- पहला कदम: लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनावों को एक साथ कराना, जिसमें राज्यों की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी।
- दूसरा कदम: स्थानीय चुनावों के साथ समन्वय, जिसमें नगर पालिकाओं और पंचायत चुनावों को आम चुनाव के 100 दिनों के भीतर कराया जाएगा, जिसके लिए राज्यों में से कम से कम आधे की मंजूरी आवश्यक होगी।
- अविश्वास प्रस्ताव या त्रिशंकु सदन की स्थिति में समाधान: अगर अविश्वास प्रस्ताव या त्रिशंकु सदन की स्थिति बनती है, तो लोकसभा या राज्य विधानसभा की शेष अवधि के लिए नए चुनाव कराए जा सकते हैं, ताकि एक साथ चुनाव प्रणाली को बरकरार रखा जा सके।
- समान मतदाता सूची: राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर एक ही मतदाता सूची रखने का प्रस्ताव, जिससे मतदान प्रक्रिया को सरल बनाया जा सके।
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