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संसदीय बजट कार्यालय (Parliamentary Budget Office – PBO)

संदर्भ:

भारत में कार्यपालिका-प्रधान बजट प्रक्रिया संसद की निगरानी को सीमित करती है, जिससे वित्तीय पारदर्शिता बढ़ाने के लिए संसदीय बजट कार्यालय (Parliamentary Budget Office – PBO) की मांग तेज हो रही है।

बजट (Budget) के बारे में:

भूमिका (Role):

  • बजट किसी देश की प्राथमिकताओं, आर्थिक दृष्टिकोण और शासन के सिद्धांतों को दर्शाता है।
  • लोकतंत्रों में, वित्तीय शक्ति संसद के पास होती है, जिससे वित्तीय अनुशासन और पारदर्शिता सुनिश्चित होती है।

भारत में बजट (Budget in India):

  • भारत में, संसद का प्रभाव सीमित है क्योंकि बजट प्रक्रिया मुख्य रूप से कार्यकारी (Executive) द्वारा संचालित होती है।
  • इस प्रक्रिया में विधायकों की भूमिका को दरकिनार कर दिया जाता है।
  • पूर्व-बजट चर्चा (Pre-Budget Discussions) और संसदीय बजट कार्यालय (Parliamentary Budget Office) जैसे संस्थागत सुधार आवश्यक हैं।
  • लोकतांत्रिक प्रक्रिया: बजट बनाना एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है जो सार्वजनिक संसाधनों का आवंटन करती है और आर्थिक प्राथमिकताओं को परिभाषित करती है।
  • जांचपड़ताल (Scrutiny): विधायी जांच (Legislative Scrutiny) ने ऐतिहासिक रूप से कार्यकारी शक्ति के अतिक्रमण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

भारत में बजट निर्माण में संसद की भूमिका

  1. कार्यपालिकाप्रधान बजट प्रक्रिया:
    • भारत में बजट निर्माण मुख्य रूप से कार्यपालिका द्वारा संचालित होता है।
    • वित्त मंत्रालय बजट तैयार करता है, जिसमें व्यापक मंत्रिस्तरीय चर्चा नहीं होती। यहां तक कि कैबिनेट मंत्रियों को भी इसकी जानकारी बजट पेश होने तक नहीं होती।
  2. सीमित संसदीय निगरानी:
    • बजट पर संसद में चर्चा बिखरी हुई और सतही होती है, जिससे प्रभावी निरीक्षण संभव नहीं हो पाता।
    • उदाहरण: 2016 में ₹500 और ₹1000 के नोटबंदी का फैसला कार्यपालिका ने RBI अधिनियम की धारा 26(2) के तहत किया, बिना संसदीय मंजूरी के।
  3. राज्यसभा की सीमित भूमिका:
    • राज्यसभा, एक लोकतांत्रिक संस्था होने के बावजूद, बजट चर्चा में प्रभावी भूमिका नहीं निभा सकती।
    • विडंबना: राज्यसभा से आने वाले वित्त मंत्री लोकसभा में अपने ही बजट पर मतदान नहीं कर सकते।
    • ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स की तुलना में, जहां कुछ वित्तीय प्रभाव मौजूद है, भारतीय राज्यसभा और भी सीमित है।
  4. कमजोर बहस और शक्ति का अभाव:
    • बजट पर बहस संक्षिप्त और सतही होती है, जिससे प्रभावी संसदीय निगरानी कमजोर पड़ जाती है।
    • संसद के पास बजट प्रस्तावों में संशोधन करने या बड़े बदलाव लाने की शक्ति नहीं होती, जिससे सांसदों की भूमिका केवल अनुमोदन तक सीमित रह जाती है।
  5. लोकतांत्रिक जवाबदेही पर असर:
    • बजट प्रक्रिया में निर्वाचित प्रतिनिधियों की सीमित भागीदारी से लोकतांत्रिक जवाबदेही कमजोर हो जाती है।
    • संसद बजट निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने के बजाय केवल अंतिम स्वीकृति देती है।

सुधार के लिए सुझाव:

  • पूर्वबजट चर्चा: मानसून सत्र में 5-7 दिन की बहस होनी चाहिए।
  • बेहतर समन्वय: विषय समितियों के बीच तालमेल बढ़े।
  • जन भागीदारी: सांसदों को जनता की चिंताओं को उठाने का अवसर मिले।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: अधिक खुलापन, वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित हो।
  • स्वतंत्र बजट विश्लेषण (PBO): अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा की तरह भारत में भी Parliamentary Budget Office (PBO) हो, जो वित्तीय नीतियों का निष्पक्ष आकलन करे।
  • संसदीय निगरानी को मजबूत करें: संसद को बजट निर्माण में अधिक सक्रिय भूमिका दी जाए, जिससे नीति-निर्माण अधिक लोकतांत्रिक और पारदर्शी बने।

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