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भारत के आर्कटिक अभियान के तहत, ग्लेशियोलॉजिस्ट हिमालय में जलवायु परिवर्तन के कारण आपदा जोखिमों का आकलन करने के लिए Permafrost क्षरण पर शोध कर रहे हैं। यह अध्ययन महत्वपूर्ण है, क्योंकि हिमालयी क्षेत्र में Permafrost के पिघलने से प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है।
Permafrost की परिभाषा:
Permafrost या स्थायी तुषार-भूमि वह मृदा है जो कम-से-कम दो वर्षों तक 0°C (32°F) या उससे नीचे जमी रहती है। यह आमतौर पर उच्च अक्षांश और ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। Permafrost एक मिश्रण है जिसमें मृदा, चट्टान, और रेत शामिल होते हैं, जो वर्ष भर बर्फ से जमी हुई एक परत के रूप में होते हैं।
- ग्लोबल वार्मिंग और Permafrost क्षरण: ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप Permafrost का पिघलना एक गंभीर समस्या बन गई है। जब Permafrost पिघलता है, तो यह भूस्खलन जैसी घटनाओं का कारण बन सकता है, जो बुनियादी ढाँचे को प्रभावित कर सकती हैं।
- आपदाओं से संबंध: भारतीय हिमालय में Permafrost और प्राकृतिक आपदाओं के बीच संबंध की जानकारी की कमी एक महत्वपूर्ण अंतर है। हाल ही में, दक्षिण ल्होनक ग्लेशियल झील (सिक्किम) के फटने जैसी घटनाएं इस संबंध की गंभीरता को दर्शाती हैं। इस प्रकार की घटनाएं दिखाती हैं कि Permafrost क्षरण के कारण जल स्तर में वृद्धि और बाढ़ का खतरा बढ़ता है।
- अनुसंधान का उद्देश्य: ग्लेशियोलॉजिस्ट का उद्देश्य आर्कटिक क्षेत्रों में Permafrost का अध्ययन करके आंकड़ों के अंतराल को कम करना है। इसके माध्यम से, वे हिमालयी स्थलाकृति के निष्कर्षों का लाभ उठाकर स्थानीय समुदायों में जागरूकता उत्पन्न करने और पूर्व चेतावनी प्रणालियों को विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं।
निष्कर्ष: Permafrost क्षरण का अध्ययन न केवल जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने में मदद करेगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि स्थानीय समुदायों को आपदाओं से बचाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा सकें। दीर्घकालिक बुनियादी ढाँचे की योजना के लिए जागरूकता उत्पन्न करना और पूर्व चेतावनी प्रणालियों को स्थापित करना अत्यंत आवश्यक है ताकि हिमालयी क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम किया जा सके।
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