Prelims GS – आर्थिक और सामाजिक विकास। Mains GS II – विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप , केंद्र और राज्यों द्वारा आबादी के कमजोर वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं। |
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाभियान पीएम-जनमन (PM-Janman) के अंतर्गत 23 अगस्त से 10 सितंबर, 2024 तक एक विशेष आईईसी (सूचना, शिक्षा और संचार) अभियान चलाया जाएगा। यह अभियान जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा संचालित किया जा रहा है, और इस अभियान की शुरुआत आज़ादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में की गई है। इस अभियान का मुख्य फोकस उन आदिवासी क्षेत्रों में योजनाओं की संतृप्ति सुनिश्चित करना है, जहाँ कुछ विशेष समुदाय विशेष रूप से प्रभावित हैं।
प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाभियान पीएम-जनमन (PM-Janman) के मुख्य बिंदु
- पीवीटीजी (विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह) बहुल जनजातीय क्षेत्रों में जागरूकता बढ़ाना और सरकारी योजनाओं की 100% संतृप्ति सुनिश्चित करना इस अभियान का लक्ष्य है।
- इसमें 28,700 पीवीटीजी बस्तियों में लगभग 44.6 लाख व्यक्तियों (10.7 लाख परिवारों) तक पहुंचने का लक्ष्य रखा गया है।
- देश भर के 194 जिलों के 16,500 गांवों, 15,000 ग्राम पंचायतों और 1,000 तालुकाओं को शामिल किया जाएगा।
- पिछले वर्ष, देश के 100 जिलों में एक अभूतपूर्व जन जागरूकता अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान ने 18 राज्यों और अंडमान निकोबार द्वीप समूह के लगभग 500 ब्लॉकों तथा 15,000 आदिवासी बस्तियों को अपने दायरे में लाया।
- लाभार्थी संतृप्ति शिविर और स्वास्थ्य शिविर लगाकर योजनाओं के तत्काल लाभ प्रदान किया जाएगा।
- जागरूकता सामग्री जैसे पर्चे, वीडियो, इन्फोग्राफिक्स आदि का स्थानीय और आदिवासी भाषाओं में वितरण किया जाएगा जिससे लोग जागरूक हो।
पीएम-जनमन (PM-Janman) योजना क्या है?
- यह योजना एक सरकारी केंद्रीय योजना है, जो जनजातीय समुदायों के उत्थान के लिए शुरू की गई है।
- इस योजना की शुरुआत 15 नवंबर, 2023 को झारखंड के खूंटी जिले से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने की थी।
- इसी दिन झारखंड में जनजातीय गौरव दिवस भी मनाया गया था।
- इस योजना में 9 केंद्रीय मंत्रालय शामिल हैं। जिनकी देख-रेख में यह क्रियान्वित की जाती है।
- इसमें 11 महत्त्वपूर्ण कार्यप्रणालियों पर ध्यान केंद्रित किया जाता हैं।
- इसमें मुख्य रूप से जनजातीय कार्य मंत्रालय मुख्य भूमिका निभाती है, जो विभिन्न राज्य सरकारों और PVTG समुदायों की मदद से इसका संचालन करती हैं।
प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाभियान (पीएम-जनमन) के पात्र लाभार्थी
- विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) के अंतर्गत आने वाले सभी व्यक्ति और परिवार इस अभियान के लाभार्थी होते हैं।
विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG (Particularly Vulnerable Tribal Group) की जानकारी
विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) वे जनजातीय समुदाय हैं जिन्हें आदिम जनजातीय समूहों के रूप में सबसे कम विकसित और कमजोर माना जाता है।
इतिहास – स्वतंत्रता से पहले, आदिवासी समुदायों को मुख्यधारा से अलग-थलग रखा गया था, जिससे उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हो सका। इन समुदायों का जीवन जंगल और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर था, और इनका संपर्क बाहरी दुनिया से बहुत ही सीमित था। आज़ादी के बाद, सरकार ने इन समुदायों के विकास के लिए प्रयास शुरू किए। आदिवासी समुदायों के विकास के लिए विभिन्न योजनाओं की शुरुआत की गई, लेकिन इन योजनाओं का लाभ हर जगह समान रूप से नहीं पहुंचा। परिणामस्वरूप, कुछ आदिवासी समूह आर्थिक और सामाजिक रूप से बहुत पिछड़े रह गए।
- तब वर्ष 1973 में ढेबर आयोग ने इन समुदायों को एक विशिष्ट श्रेणी के रूप में पहचान दी।
- इस श्रेणी में उन जनजातीय समूहों को शामिल किया गया जिनकी जनसंख्या घट रही थी या स्थिर थी, जिनकी कृषि प्रौद्योगिकी अभी भी प्राचीन स्तर की थी, जिनकी आर्थिक स्थिति अत्यंत पिछड़ी हुई थी, और जिनकी साक्षरता दर बहुत कम थी।
- भारत सरकार ने वर्ष 2006 में आदिम जनजातीय समूहों (PTG) का नाम बदलकर विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) कर दिया।
- ये समूह अक्सर दूरदराज और दुर्गम क्षेत्रों में निवास करते हैं, जहाँ बुनियादी ढांचे की कमी और प्रशासनिक सहायता की असमानता के कारण उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- वर्तमान में, भारत के 18 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 75 PVTG समुदाय निवास करते हैं। इनमें से ओडिशा में सबसे अधिक 15 PVTG समुदाय पाए जाते हैं।
- इसके बाद, आंध्र प्रदेश में 12, बिहार और झारखंड में 9, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 7, तमिलनाडु में 6, और केरल एवं गुजरात में प्रत्येक 5 PVTG समुदाय निवास करते हैं।
- शेष PVTG समुदाय महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, उत्तराखंड, राजस्थान, त्रिपुरा और मणिपुर में फैले हुए हैं।
- इसके अतिरिक्त, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भी PVTG समुदाय निवास करते हैं, जहाँ अंडमान में सभी चार जनजातीय समूह और निकोबार द्वीप समूह में एक जनजातीय समूह को PVTG के रूप में मान्यता प्राप्त है।
पीएम-जनमन योजना का बजट
- पीएम-जनमन मिशन के लिए कुल बजट ₹24,104 करोड़ है।
- इसमें केंद्रीय स्तर का शेयर कुल ₹15,336 करोड़ रूपये और राज्य स्तर का शेयर लगभग ₹8,768 करोड़) है। यह बजट वित्तीय वर्ष 2023-24 से 2025-26 तक के लिए तय किया गया है।
- इसमें करीब 4.90 लाख लोगों को पक्के मकान दिए जाने का प्रावधान है। इन निर्मित मकानों की लागत लगभग 2.39 लाख रुपये (एक मकान) होगी।
पीएम-जनमन (PM-Janman) योजना के उद्देश्य
- सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण: पीएम-जनमन का मुख्य उद्देश्य पीवीटीजी समुदायों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है। इसके लिए, सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से उन्हें आवश्यक संसाधन और सहायता प्रदान की जाती है ताकि वे अपने जीवन स्तर को सुधार सकें। इसके लिए उन्हें आवास उपलब्ध करवाए जाएंगे। PMAY के तहत उन्हें सब्सिडी दी जाएगी।
- शिक्षा और जागरूकता: इस योजना के तहत पीवीटीजी समुदायों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया जाता है। उन्हें शिक्षा के महत्व और सरकारी शैक्षिक योजनाओं के बारे में जागरूक किया जाता है। इसके साथ ही, योजनाओं के बारे में जानकारी स्थानीय भाषाओं में पहुंचाने का प्रयास किया जाता है ताकि ये समूह योजनाओं के बारे में सही जानकारी प्राप्त कर सकें।
- स्वास्थ्य और पोषण: पीएम-जनमन (PM-Janman) योजना का एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य पीवीटीजी समूहों के स्वास्थ्य को सुधारना है। इसके तहत, स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए जाते हैं, जहां सिकल सेल रोग जैसे विशिष्ट स्वास्थ्य समस्याओं की जांच और इलाज की सुविधा प्रदान की जाती है।
- आधारभूत आवश्यकता: योजना के अंतर्गत आधार कार्ड, सामुदायिक प्रमाण पत्र, जन धन खाते और वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत पट्टों जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है।
पीएम-जनमन (PM-Janman) योजना के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ
- भिन्नताओं के साथ काम करने की चुनौती: विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में PVTG समुदायों की जरूरतें और क्षमताएँ बहुत जटिल और विविध हैं। ऐसे में अनुकूलित और लचीले दृष्टिकोणों और हस्तक्षेपों की आवश्यकता होती है, जो कि एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। एक ही योजना या दृष्टिकोण सभी PVTG समुदायों के लिए प्रभावी नहीं हो सकता, इसलिए इसे स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार ढालने की आवश्यकता है।
- PVTG पर अद्यतन डेटा की कमी: वर्तमान में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTG) के लिए अद्यतन और सटीक डेटा की कमी है। उपलब्ध अंतिम जनगणना डेटा 2001 का है, जिसमें PVTG जनसंख्या लगभग 27.6 लाख थी। आधारभूत सर्वेक्षण का कार्य जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा शुरू कर दिया गया है, लेकिन PVTG आबादी का एक समकालीन और सटीक डेटासेट अभी भी संकलित नहीं किया जा सका है। इसके परिणामस्वरूप, उनकी जरूरतों और प्रगति का सटीक मूल्यांकन करने में मुश्किलें आती हैं।
- कलंक और भेदभाव: मुख्यधारा के समाज और राज्य में PVTG समुदायों द्वारा सामना किए जाने वाले कलंक और भेदभाव की स्थिति एक गंभीर चुनौती है। इसके चलते इन समुदायों को समाज और सरकारी योजनाओं के मुख्यधारा में शामिल करना कठिन हो जाता है। इस मुद्दे पर हितधारकों और जनता के बीच संवेदनशीलता और जागरूकता बढ़ाने की सख्त जरूरत है।
- जनगणना की अनुपस्थिति: वर्ष 2013 में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद द्वारा PVTG समुदायों के लिए एक विशेष जनगणना की अनुशंसा की गई थी, लेकिन अब तक इसे लागू नहीं किया जा सका है। इस कारण उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य, और आवास संबंधी स्थिति की व्यापक जानकारी एकत्र करना एक चुनौती बना हुआ है। इसके अभाव में, योजना बनाने और प्रभावी ढंग से लक्षित हस्तक्षेप करने में कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं।
- सरकारी योजनाओं का समन्वय: पीएम-जनमन योजना को केंद्र और राज्य सरकारों की मौजूदा योजनाओं और कार्यक्रमों के साथ समन्वित करना आवश्यक है। इसके लिए संसाधनों और सेवाओं का प्रभावी और कुशल वितरण और उपयोग सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है।
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भारत में विशिष्टत: असुरक्षित जनजातीय समूहों पर्टिकुलरली वल्नरेबल ट्राइबल ग्रुप्स (PVTGs)] के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
- PVTGs देश के 18 राज्यों तथा एक संघ राज्यक्षेत्र में निवास करते हैं।
- स्थिर या कम होती जनसंख्या, PVTG स्थिति के निर्धारण के मानदंडों में से एक है।
- देश में अब तक 95 PVTGs आधिकारिक रूप से अधिसूचित हैं।
- PVTGs की सूची में ईरूलार और कोंडा रेड्डी जनजातियाँ शामिल की गई हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 1, 3 और 4
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