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संदर्भ:
179 समुदायों को SC, ST और OBC सूची में शामिल करने की सिफारिश: Anthropological Survey of India (AnSI) ने ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट्स (TRIs) के साथ मिलकर 268 विमुक्त, अर्ध-घुमंतू और घुमंतू जनजातियों पर एक व्यापक अध्ययन किया है। इसका उद्देश्य उन समूहों को वर्गीकृत करना है जो पहले की समितियों द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं थे।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- समावेशन की सिफारिशें:
- 179 समुदायों को SC (29), ST (10), और OBC (46) श्रेणियों में शामिल करने की सिफारिश की गई।
- इनमें से 85 नए समुदाय हैं, और उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 19 समुदायों की सिफारिश की गई।
- वर्गीकरण:
- नौ समुदायों का वर्गीकरण सुधारा गया।
- 63 समुदायों (20%) को “नहीं मिल सकने वाला” माना गया, जो समाहित होने या प्रवास करने के कारण ट्रेस नहीं हो सके।
- अध्यान अध्ययन: यह अध्ययन ओडिशा, गुजरात और अरुणाचल प्रदेश में किया गया, जिसमें प्रत्येक समुदाय पर तीन महीने तक फील्ड अध्ययन, संसाधन पहचान और परामर्श किए गए।
- मंजूरी का इंतजार: इसे राज्य/संघ शासित प्रदेश सरकारों की प्रस्तावों की आवश्यकता है, उसके बाद भारत के रजिस्ट्रार जनरल और संबंधित राष्ट्रीय आयोगों से मंजूरी प्राप्त करनी होगी।
SC, ST, और OBC सूचियों के लिए प्रावधान
- केंद्र सरकार की भूमिका: केंद्र सरकार SC, ST, और OBC सूचियों में समुदायों को शामिल करने या बाहर करने का कानून बनाती है।
- राज्य सरकारों की भूमिका:
- राज्य/संघ शासित प्रदेश सरकारें समुदायों को शामिल करने के लिए पहचान करती हैं और सिफारिश करती हैं।
- इन सरकारों को समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन भी करना होता है।
- राज्य अपने OBC समुदायों की सूची भी बनाए रख सकते हैं।
सूचियों का महत्व:
- सामाजिक न्याय:
- शिक्षा, रोजगार और कल्याण योजनाओं जैसे लक्षित लाभ प्रदान करता है।
- हाशिये पर पड़ी समुदायों द्वारा सामना किए गए ऐतिहासिक नुकसान को कम करता है।
- संस्कृतिक मान्यता:
- अद्वितीय सांस्कृतिक पहचानों को मान्यता देता है और संरक्षित करता है।
- निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है।
- आर्थिक उन्नति: अवसरों तक पहुँच को बढ़ाता है, जिससे सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
नीति पर संभावित प्रभाव:
- कोटा प्रणाली का पुनः निर्धारण: इन समुदायों को शामिल करने से जाति आधारित आरक्षण प्रणाली में बदलाव हो सकता है, जो शिक्षा, रोजगार और कल्याण कार्यक्रमों को प्रभावित करेगा।
- शासन की जटिलता: सामाजिक न्याय मंत्रालय सिफारिशों की समीक्षा कर रहा है, और अंतिम मंजूरी नीति आयोग से प्राप्त होनी बाकी है।
चुनौतियाँ:
- वर्गीकरण में अस्पष्टता: कई समुदाय राज्य और केंद्रीय सूचियों में अनिश्चित या आंशिक रूप से वर्गीकृत हैं।
- “नहीं मिल सकने वाले” समुदाय: 63 समुदायों को स्थानांतरित नहीं किया जा सका, जो ऐतिहासिक रिकॉर्ड या प्रवास पैटर्न में अंतर को दर्शाता है।
- प्रशासनिक जटिलता: बहु-स्तरीय मंजूरी प्रक्रियाएँ लागू होने में देरी का कारण बनती हैं।
- अलग कोटे की मांग: DNTs, NTs, और SNTs के लिए अलग श्रेणी बनाने की मांग की जा रही है, ताकि उनकी विशेष चुनौतियों को संबोधित किया जा सके।