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लद्दाख में स्थानीय निवासियों के लिए आरक्षण

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केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लद्दाख में स्थानीय निवासियों के लिए 95% आरक्षण, पहाड़ी परिषदों में महिलाओं के लिए आरक्षण और भूमि व संस्कृति संरक्षण हेतु संवैधानिक प्रावधानों का प्रस्ताव दिया है।

मुख्य बिंदु:

  1. स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण:
    • सरकारी नौकरियों में 95% आरक्षण।
    • पर्वतीय परिषदों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण।
  2. संवैधानिक संरक्षण:
    • लद्दाख की भूमि और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए संवैधानिक प्रावधान पर काम।
    • उर्दू और भोटी को लद्दाख की आधिकारिक भाषा घोषित करने का निर्णय।
  3. लंबित कानूनों की समीक्षा: स्थानीय मुद्दों को सुलझाने के लिए 22 लंबित कानूनों की समीक्षा।
  4. पांच वर्षों का विरोध: अनुच्छेद 370 के तहत संवैधानिक संरक्षण खोने के बाद से लद्दाख में विरोध प्रदर्शन।
  5. सार्वजनिक सेवा आयोग: लद्दाख में अलग सार्वजनिक सेवा आयोग स्थापित करना संभव नहीं, क्योंकि यह विधानमंडल के बिना केंद्र शासित प्रदेश है।
  6. भूमि सुरक्षा: लद्दाख के लोगों की जमीन से जुड़ी चिंताओं को हल करने की प्रतिबद्धता।

छठे अनुसूची पर चर्चा: अगली बैठक 15 जनवरी को होगी, जिसमें लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने पर चर्चा की जाएगी।

पिछले पांच वर्षों से लद्दाख की चार प्रमुख मांगें:

  • लद्दाख को राज्य का दर्जा दिया जाए।
  • लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए, जिससे उसे जनजातीय दर्जा मिले।
  • स्थानीय लोगों के लिए नौकरी आरक्षण सुनिश्चित किया जाए।
  • लेह और कारगिल के लिए एक-एक संसदीय सीट आवंटित की जाए।

आर्टिकल 370:

5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 हटाया:

  • जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाकर उसका विशेष दर्जा समाप्त कर दिया गया।
  • इसके बाद जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया।

लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया: लेह और कारगिल को मिलाकर लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया।

आरक्षण के पक्ष में तर्क:

  • क्षेत्रीय असमानताएं दूर करना: पिछड़े क्षेत्रों में रोजगार अवसरों का सृजन।
  • प्रवासन में कमी: स्थानीय रोजगार से शहरी भीड़भाड़ घटती है।
  • स्थानीय प्रतिभा का विकास: कुशल कार्यबल तैयार होता है।
  • आर्थिक विकास: पिछड़े वर्गों के उत्थान से समग्र विकास।
  • संविधानिक समर्थन: सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों का संवैधानिक उत्थान।
  • सरकारी सेवाओं में सुधार: स्थानीय प्रतिनिधित्व से बेहतर सेवा वितरण।

आरक्षण के विरोध में तर्क:

  • मेधावी प्रणाली पर प्रभाव: कम योग्य उम्मीदवारों का चयन हो सकता है।
  • क्षेत्रवाद को बढ़ावा: आरक्षण से क्षेत्रीय द्वेष और असमानता।
  • राष्ट्रीय एकता में विघ्न: राज्यों के बीच भेदभाव और बंटवारा बढ़ सकता है।

लद्दाख की छठी अनुसूची में समावेश की मांग:

  1. राजनीतिक प्रतिनिधित्व और स्वायत्तता
  2. स्थानीय रोजगार की कमी
  3. संस्कृतिक पहचान का संरक्षण
  4. पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण
  5. डोमिसाइल नीति में बदलाव
  6. लोकतांत्रिक संस्थाओं का सुदृढ़ीकरण

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