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निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण

संदर्भ:

निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण: हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों के चलते, निजी उच्च शिक्षण संस्थानों (PHEIs) में आरक्षण देने की मांग को फिर से हवा मिल गई है। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाते हुए सामाजिक न्याय की दिशा में इसे अहम कदम बताया है।

निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण को समर्थन देने वाला विधिक ढाँचा:

  • संवैधानिक प्रावधान:
  • अनुच्छेद 15(5) – 93वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2005 के माध्यम से जोड़ा गया।
  • यह राज्य को अनुसूचित जातियों (SCs), अनुसूचित जनजातियों (STs) और सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBCs/OBCs) की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान करने की शक्ति देता है।
  • यह प्रावधान निजी शैक्षणिक संस्थानों में (चाहे सहायता प्राप्त हों या बिना सहायता के) आरक्षण की अनुमति देता है।
  • अल्पसंख्यक संस्थानों को इससे बाहर रखा गया है।

निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण संबंधित न्यायिक निर्णय:

  1. अशोक कुमार ठाकुर बनाम भारत संघ (2008)
    • केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में OBC के लिए 27% आरक्षण को वैध ठहराया गया।
    • हालांकि, यह फैसला निजी स्ववित्तपोषित (unaided) संस्थानों पर लागू नहीं था, लेकिन सामाजिक न्याय के सिद्धांत को मान्यता दी गई।
  2. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2011): निजी स्ववित्तपोषित व्यावसायिक कॉलेजों में आरक्षण को वैध ठहराया गया।
  3. प्रामती एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट बनाम भारत संघ (2014)
    • अनुच्छेद 15(5) की वैधता को बरकरार रखा गया।
    • इस निर्णय ने यह स्पष्ट किया कि बिना सहायता प्राप्त निजी संस्थानों में भी आरक्षण लागू किया जा सकता है

निजी उच्च शिक्षा और सामाजिक असमानता: आज की उच्च शिक्षा प्रणाली में एक प्रवृत्ति देखी जा रही है जिसे विद्वान “प्रभावी रूप से बनाए रखी गई असमानता” (Effectively Maintained Inequality) कहते हैं। इसका अर्थ यह है कि भले ही वंचित वर्गों (SC, ST, OBC) की शिक्षा में भागीदारी बढ़ी हो, लेकिन श्रेष्ठ संसाधनों वाले निजी संस्थान उनके लिए आज भी दूर की चीज बने हुए हैं।

निजी बनाम सार्वजनिक संस्थानों में छात्रों की सामाजिक संरचना:

  1. ऊँची जातियों के हिंदू (Upper-caste Hindus):
    • जनसंख्या में हिस्सेदारी लगभग 20% है।
    • लेकिन निजी विश्वविद्यालयों में यह संख्या 60% से भी अधिक है।
  2. अनुसूचित जातियाँ (SCs):
    • जनसंख्या में हिस्सेदारी लगभग 17%।
    • निजी संस्थानों में केवल 8% नामांकन।
    • जबकि सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में 6% नामांकन है।
  3. अनुसूचित जनजातियाँ (STs):
    • जनसंख्या में हिस्सा लगभग 9%।
    • निजी संस्थानों में केवल 6% नामांकन।
    • जबकि सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में 6% भागीदारी है।
  4. अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs):
    • जनसंख्या में हिस्सा लगभग 45–50%।
    • निजी संस्थानों में केवल 9% नामांकन।
    • जबकि सार्वजनिक संस्थानों में 2% नामांकन है।
  5. मुस्लिम समुदाय:
    • जनसंख्या में हिस्सा लगभग 15%।
    • निजी विश्वविद्यालयों में केवल 8% नामांकन।
आगे का रास्ता:
  1. सार्वजनिक संस्थानों को सशक्त बनाना
  2. निजी उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण लागू करना
  3. निःशुल्क शिक्षा और छात्रवृत्तियाँ प्रदान करना
  4. राष्ट्रीय शिक्षा नीति की खामियों को दूर करना
  5. हाशिए के समुदायों के लिए एकजुट सामाजिक न्याय मंच बनाना

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