Retrospective Environmental Clearances
संदर्भ:
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की 2017 की अधिसूचना और 2021 के कार्यालय ज्ञापन को खारिज कर दिया है, जो उन परियोजनाओं को पिछली तारीख से पर्यावरणीय स्वीकृति (Retrospective Environmental Clearance) देने की अनुमति देते थे जिन्हें पूर्व अनुमति के बिना शुरू किया गया था। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि “विकास पर्यावरण की कीमत पर नहीं हो सकता।“
Retrospective Environmental Clearances: क्या हैं?
परिभाषा
- क्या हैं ये क्लियरेंस:
- ऐसे औद्योगिक या बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को दी गई स्वीकृति जो परियोजना शुरू होने के बाद प्रदान की जाती है।
- यह पहले से पर्यावरणीय मूल्यांकन (EIA) की आवश्यकता को नजरअंदाज कर देती है।
- कानूनी प्रावधान:
- EIA अधिसूचना, 2006:
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत
- किसी भी परियोजना को शुरू करने से पहले पर्यावरणीय मंजूरी (EC) अनिवार्य।
- EIA अधिसूचना, 2006:
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
- अवैध ठहराया: 2017 की अधिसूचना और 2021 के कार्यालय ज्ञापन को अवैध और असंवैधानिक करार दिया।
- संविधानिक आधार:
- अनुच्छेद 21: प्रदूषण-मुक्त पर्यावरण में जीवन का अधिकार सुनिश्चित करता है।
- अनुच्छेद 48A और 51A(g): राज्य और नागरिकों की पर्यावरण सुरक्षा की जिम्मेदारी को पुनः पुष्टि की।
- निष्कर्ष:
- पिछली मंजूरी की वैधता नहीं:
- पहले से मंजूरी (Prior EC) के बिना परियोजनाएं अवैध मानी जाएंगी।
- पिछली मंजूरी की वैधता नहीं:
विवादास्पद क्यों है रेट्रोस्पेक्टिव पर्यावरण मंजूरी?
विवाद का कारण:
- पर्यावरण कानूनों की मूल भावना का उल्लंघन: कानून का उद्देश्य पर्यावरणीय क्षति को रोकना है, न कि इसे अनदेखा करना।
- अनियंत्रित गतिविधियों को बढ़ावा: बिना मूल्यांकन के संभावित हानिकारक गतिविधियों को शुरू करने की अनुमति।
आलोचनाओं के प्रमुख बिंदु:
- उल्लंघन को बढ़ावा: परियोजनाओं को पहले शुरू करने और बाद में मंजूरी लेने का प्रोत्साहन।
- पर्यावरणीय क्षति: आकलन से पहले पर्यावरण को नुकसान पहुंचने का जोखिम।
- जवाबदेही में कमी: परियोजना प्रबंधक यह जानते हुए भी जोखिम उठाते हैं कि बाद में मंजूरी ली जा सकती है।
न्यायालय का दृष्टिकोण:
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
- रेट्रोस्पेक्टिव मंजूरी को अवैध घोषित किया।
- पर्यावरण संरक्षण और कानून के शासन को बनाए रखने पर जोर।
एहतियाती सिद्धांत का उल्लंघन: सिद्धांत कहता है कि पर्यावरणीय क्षति को रोकना प्राथमिकता होनी चाहिए, न कि बाद में निपटान।
कानूनी खामियों का समाधान: कोर्ट ने साफ किया कि ऐसे क्लियरेंस पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से मेल नहीं खाते।