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संदर्भ:
नदी जोड़ो परियोजना: 25 दिसंबर 2024 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना की आधारशिला रखी। यह परियोजना उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के हिस्सों में फैले बुंदेलखंड क्षेत्र में जल संकट को दूर करने के उद्देश्य से शुरू की गई है।
केन–बेतवा नदी जोड़ परियोजना:
- परियोजना का उद्देश्य:
- इस परियोजना में “पन्ना टाइगर रिजर्व” के भीतर एक बांध का निर्माण शामिल है, जिससे पर्यावरणीय डूब क्षेत्र को लेकर चिंताएँ उठ रही हैं।
- यह परियोजना केन नदी (जिसे अधिशेष जल वाली माना जाता है) को जल-सम्पन्नता की कमी वाली बेतवा नदी से जोड़ेगी।
नदियों को जोड़ने का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
- शुरुआत: 130 वर्ष पहले सर आर्थर कॉटन ने पहली बार बेसिन-आधारित जल हस्तांतरण की परिकल्पना की।
- विस्तार: इसे आगे एम. विश्वेश्वरैया द्वारा परिष्कृत किया गया।
- 1970 और 1980 के दशक में के.एल. राव और कैप्टन दिनशॉ जे. दस्तूर ने इस अवधारणा को “नेशनल वाटर ग्रिड” नाम दिया।
राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA):
- 1982 में राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य 30 पहचाने गए नदी प्रणालियों की व्यवहार्यता का अध्ययन करना था।
- परियोजनाओं की अनुमानित लागत: ₹5.5 लाख करोड़ (सामाजिक, पर्यावरणीय और परिचालन लागत को छोड़कर)।
नदी जोड़ो परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव:
- पारिस्थितिक तंत्र का विघटन:
- बांधों और नहरों के निर्माण से संवेदनशील क्षेत्रों, जैसे पन्ना टाइगर रिजर्व, के जलमग्न होने और जैव विविधता पर खतरे की संभावना।
- स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र और प्राकृतिक जल प्रवाह बाधित।
- जल विज्ञान में परिवर्तन:
- नदियों का प्रवाह मोड़ने से भूजल पुनर्भरण घटता और डेल्टा क्षेत्रों में लवणता बढ़ती है।
- उदाहरण: सिंधु डेल्टा में ऐसी समस्याओं से कृषि और आजीविका प्रभावित।
- पारिस्थितिक सेवाओं का नुकसान:
- नदियाँ तट पर गाद लाने, पोषक तत्वों के चक्रण और आवास समर्थन जैसी सेवाओं पर नकारात्मक प्रभाव।
- नदियों की जैव विविधता और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने की भूमिका की उपेक्षा।
वैश्विक उदाहरणों से सीख:
- सिंधु डेल्टा (पाकिस्तान): जल प्रवाह मोड़ने से जैव विविधता में गिरावट और पारिस्थितिक क्षति।
- सरदार सरोवर बांध (नर्मदा नदी): आधुनिक भारतीय उदाहरण जो पर्यावरणीय क्षरण का संकेत देता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मामले:
- किसिमी नदी (फ्लोरिडा): नदी के चैनलाइजेशन से पर्यावरणीय नुकसान।
- अराल सागर: जल प्रबंधन की विफलता के कारण जल स्रोत का विनाश।
सामाजिक–आर्थिक प्रभाव:
- विस्थापन और आजीविका का नुकसान: परियोजनाओं से भूमि और घरों का डूबना, जैसे कि दाऊधन बांध से 9,000 हेक्टेयर भूमि का डूबना, कई गांवों को प्रभावित करेगा।
- पानी की असमानता: सूखा-प्रभावित क्षेत्रों में पानी पहुंचाने के उद्देश्य के बावजूद, कुछ क्षेत्रों को प्राथमिकता देने से असमानता बढ़ सकती है।
- आर्थिक निर्भरता: स्थानीय अर्थव्यवस्थाएं इन बड़ी परियोजनाओं पर अत्यधिक निर्भर हो सकती हैं, जो पर्यावरणीय क्षरण या परियोजना विफलता की स्थिति में टिकाऊ लाभ नहीं दे पाएंगी।
आगे का रास्ता:
- सतत जल प्रबंधन को बढ़ावा:
- सामुदायिक भागीदारी के साथएकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) लागू करें।
- ड्रिप सिंचाई जैसे आधुनिक सिंचाई तकनीकों का उपयोग करें।
- वर्षा जल संचयन जैसी स्थानीय विधियों को अपनाएं।
- पारिस्थितिक और सामाजिक प्रभाव अध्ययन को प्राथमिकता:
- नदी जोड़ो परियोजनाओं के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों का व्यापक अध्ययन करें।
- जैव विविधता, आजीविका और डेल्टाई पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा सुनिश्चित करें।