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ई-श्रम की भूमिका

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संदर्भ:

भारत के श्रम और रोजगार मंत्रालय (MoL&E) ने हाल ही में ई-श्रम पोर्टल को वैश्विक स्तर पर असंगठित श्रमिकों का सबसे बड़ा डाटाबेस घोषित किया है, जिसमें 30 करोड़ से अधिक श्रमिक पंजीकृत हैं।

पृष्ठभूमि:
महामारी के दौरान प्रवासी श्रमिकों की दयनीय स्थिति और पलायन को देखते हुए, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को श्रमिकों का राष्ट्रीय डाटाबेस बनाने का निर्देश दिया। इसके परिणामस्वरूप, मई 2021 में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय (MoL&E) द्वारा श्रम पोर्टल शुरू किया गया।

  • इसका उद्देश्य असंगठित श्रमिकों की राष्ट्रीय डाटाबेस तैयार करना है।
  • पंजीकरण आधार सत्यापित और आधार से लिंक होता है।
  • कोई भी असंगठित श्रमिक स्वयं-घोषणा के आधार पर पोर्टल पर पंजीकरण कर सकता है।
  • यह पोर्टल 30 व्यापक व्यवसाय क्षेत्रों में 400 व्यवसायों के तहत पंजीकरण की अनुमति देता है।

ऐतिहासिक संदर्भ और डेटाबेस की आवश्यकता:

प्रवासी और असंगठित श्रमिकों के लिए डेटाबेस बनाए रखने की अवधारणा नई नहीं है।

  • अंतरराज्यीय प्रवासी कार्यकर्ता अधिनियम (1979): ठेकेदारों को श्रमिकों का विस्तृत रिकॉर्ड रखने का प्रावधान किया।
  • असंगठित क्षेत्र में उद्यमों के लिए राष्ट्रीय आयोग (2007): सार्वभौमिक श्रमिक पंजीकरण की सिफारिश की।
  • असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम (2008): श्रमिकों के लिए पहचान पत्र का प्रस्ताव रखा।

हालांकि, ये प्रयास प्रभावी नहीं हो सके, जिससे करोड़ों श्रमिक नीति निर्माताओं और जनता की दृष्टि से अदृश्य रहे।

  • इस ऐतिहासिक उपेक्षा के बीच श्रम पोर्टल एक परिवर्तनकारी पहल के रूप में उभरता है।

ई-श्रम पोर्टल की चुनौतियां:

  1. योग्यता की छूट: प्रवासी श्रमिकों के पास जरूरी दस्तावेज़ (जैसे आधार, राशन कार्ड) नहीं होते, जिससे पंजीकरण में समस्या आती है।
  2. श्रम पोर्टल की कार्यक्षमता: पोर्टल पंजीकरण पर ध्यान देता है, लेकिन लाभों तक पहुंच में कमी है।
  3. प्रवासी श्रमिकों की संवेदनशीलता: उच्च प्रवासन दर के कारण श्रमिकों को वंचन, तस्करी और सार्वजनिक सेवाओं तक सीमित पहुंच का सामना करना पड़ता है।
  4. लिंग असमानताएँ: महिला श्रमिकों को अतिरिक्त चुनौतियाँ मिलती हैं, जिनके लिए लिंग-संवेदनशील योजनाओं की आवश्यकता है।
  5. डेटा पृथक्करण: लिंग, क्षेत्र और प्रवासन पैटर्न के आधार पर डेटा पृथक्करण की कमी है।

ई-श्रम पोर्टल का महत्व:

  1. सामाजिक सुरक्षा: असंगठित श्रमिकों को पेंशन, बीमा, स्वास्थ्य सेवा और अन्य कल्याण योजनाओं का लाभ।
  2. डेटा आधारित योजनाएं: श्रमिकों की ज़रूरतें समझकर लक्षित और प्रभावी नीतियां बनाना।
  3. सशक्तिकरण: विशिष्ट पहचान और सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच देकर श्रमिकों का जीवनस्तर सुधारना।
  4. आपदा राहत: संकट के समय प्रभावित श्रमिकों की पहचान और सहायता में मदद।
  5. नीति निर्माण: न्यूनतम वेतन, कार्य परिस्थितियों और सुरक्षा नीतियों के लिए डेटा का उपयोग।

सिफारिशें:

  1. दस्तावेज़ समाधान: सरल पंजीकरण और बिना दस्तावेज़ वाले श्रमिकों को सहायता।
  2. सामाजिक सुरक्षा: पंजीकरण से आगे बढ़कर सभी श्रमिकों को लाभ सुनिश्चित करें।
  3. डेटा विश्लेषण: प्रवासियों के डेटा का लिंग, क्षेत्र और जरूरतों के आधार पर अध्ययन।
  4. लिंग संवेदनशीलता: महिला श्रमिकों के लिए विशेष नीतियां।
  5. मानव विकास: प्रवासियों को संसाधन मानकर उनके विकास पर ध्यान दें।

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