Apni Pathshala

विधेयकों को मंजूरी देने में राज्यपाल की भूमिका

Download Today Current Affairs PDF

संदर्भ:

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल से उन 12 विधेयकों पर स्पष्टीकरण मांगा है, जो उनके पास तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं। यह मामला राज्यपाल की विधायी शक्तियों और उनकी संवैधानिक भूमिका से जुड़ा है।

तमिलनाडु में राज्यपाल द्वारा विधेयकों को रोके जाने का मामला:

  • तमिलनाडु के राज्यपाल ने 12 विधेयकों को लंबित रखा, जिनमें से अधिकांश उच्च शिक्षा और राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़े हैं।
  • ये विधेयक जनवरी 2020 से अप्रैल 2023 के बीच संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की सहमति के लिए भेजे गए थे।
  • राज्यपाल ने अनिश्चितकाल तक इन पर कोई निर्णय नहीं लिया।
  • जब राज्य सरकार ने नवंबर 2023 में न्यायालय का रुख किया, तो राज्यपाल ने दो विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया और शेष 10 विधेयकों पर सहमति देने से इनकार कर दिया।

संवैधानिक प्रावधान:

अनुच्छेद 200: राज्यपाल की भूमिका

राज्य विधानसभा द्वारा पारित किसी विधेयक पर राज्यपाल के पास चार विकल्प होते हैं:

  1. मंजूरी देना – राज्यपाल विधेयक को स्वीकृति देकर उसे कानून बना सकते हैं।
  2. स्वीकृति रोकना – राज्यपाल विधेयक को अस्वीकार कर सकते हैं, जिससे वह कानून नहीं बन सकेगा।
  3. पुनर्विचार के लिए लौटाना
    • राज्यपाल विधेयक को विधानसभा में संशोधन के सुझाव के साथ वापस भेज सकते हैं।
    • यदि विधानसभा बिना संशोधन दोबारा पारित करती है, तो राज्यपाल को अनिवार्य रूप से मंजूरी देनी होगी
  4. राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित करना – यदि विधेयक संविधान के विरुद्ध हो, उच्च न्यायालय की शक्तियों को प्रभावित करता हो, या केंद्र के कानूनों से टकराता हो, तो राज्यपाल इसे राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।

अनुच्छेद 201: राष्ट्रपति की भूमिका

यदि राज्यपाल किसी विधेयक को अनुच्छेद 200 के तहत राष्ट्रपति के पास भेजते हैं, तो राष्ट्रपति के पास दो विकल्प होते हैं:

  1. स्वीकृति देना – विधेयक कानून बन जाता है।
  2. स्वीकृति रोकना या पुनर्विचार के लिए भेजना
    • राष्ट्रपति विधेयक को राज्य विधानसभा में दोबारा विचार के लिए लौटा सकते हैं।
    • यदि विधानसभा इसे फिर से पारित करती है, तब भी राष्ट्रपति स्वीकृति देने के लिए बाध्य नहीं होते

सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन:

  • 2024 के पंजाब राज्य बनाम पंजाब के राज्यपाल के प्रधान सचिव मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल विधेयकों पर अनिश्चितकाल तक निर्णय नहीं टाल सकते।
  • यदि कोई विधेयक विधानसभा द्वारा दोबारा पारित किया जाता है, तो राज्यपाल के पास उसे रोकने का कोई विवेकाधिकार (Discretion) नहीं होता।
  • यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की भूमिका को स्पष्ट करता है और विधानमंडल की सर्वोच्चता को बरकरार रखता है

आगे की राह:

  • विवेकाधिकार पर स्पष्टता:राज्यपाल की शक्तियों की सीमा तय करने के लिए संविधान या न्यायिक दिशा-निर्देश आवश्यक हैं।
  • समयबद्ध निर्णय:सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि राज्यपाल को अनुमोदन (assent) अनिश्चितकाल तक नहीं रोकना चाहिए।
  • न्यायिक निगरानी:राज्यपाल की शक्ति के दुरुपयोग को रोकने और संवैधानिक सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित करने के लिए न्यायपालिका की भूमिका मजबूत होनी चाहिए।
  • स्पष्ट संचार:राज्यपाल को विधेयक रोकने या राष्ट्रपति के पास भेजने के कारणों को तत्काल राज्य विधानसभा को बताना चाहिए।
  • जवाबदेही बढ़ाना:यदि राज्यपाल की कार्रवाई राजनीतिक रूप से प्रेरित लगती है, तो उस पर संसदीय या न्यायिक समीक्षा होनी चाहिए।

Share Now ➤

क्या आपको Apni Pathshala के Courses, RNA PDF, Current Affairs, Test Series और Books से सम्बंधित कोई जानकारी चाहिए? तो हमारी विशेषज्ञ काउंसलर टीम आपकी सिर्फ समस्याओं के समाधान में ही मदद नहीं करेगीं, बल्कि आपको व्यक्तिगत अध्ययन योजना बनाने, समय का प्रबंधन करने और परीक्षा के तनाव को कम करने में भी मार्गदर्शन देगी।

Apni Pathshala के साथ अपनी तैयारी को मजबूत बनाएं और अपने सपनों को साकार करें। आज ही हमारी विशेषज्ञ टीम से संपर्क करें और अपनी सफलता की यात्रा शुरू करें

📞 +91 7878158882

Related Posts

Scroll to Top