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संदर्भ:
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उसके अधिकार क्षेत्र में शामिल करने की बात कही गई थी। न्यायालय ने इसे “बेहद चिंताजनक” व्याख्या करार दिया।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा लोकपाल आदेश पर रोक लगाने के कारण:
- न्यायिक स्वतंत्रता का उल्लंघन:
- सुप्रीम कोर्ट ने माना कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में लाना न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर करता है, जो मूल संरचना सिद्धांत (Basic Structure Doctrine) का हिस्सा है।
- अनुच्छेद 50: न्यायपालिका और कार्यपालिका के पृथक्करण को अनिवार्य करता है, जिससे न्यायिक कार्यों में बाहरी हस्तक्षेप न हो।
- अनुच्छेद 121: संसद को न्यायाधीशों के आचरण पर चर्चा करने से रोकता है, जब तक कि वह महाभियोग (Impeachment) से संबंधित न हो, जिससे न्यायपालिका की स्वायत्तता बनी रहती है।
- न्यायाधीशों की नियुक्ति संविधान के तहत होती है:
- सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल की इस दलील को खारिज कर दिया कि उच्च न्यायालय ब्रिटिश कानूनों के तहत बने थे, यह बताते हुए कि सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति संविधान के तहत होती है।
- अनुच्छेद 124: सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) की स्थापना करता है।
- अनुच्छेद 217: उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति को नियंत्रित करता है, जिससे वे कार्यपालिका के नियंत्रण से स्वतंत्र रहते हैं।
- न्यायिक निगरानी एक आंतरिक प्रक्रिया है
- सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि न्यायिक दुराचार (Judicial Misconduct) की जांच आंतरिक रूप से ही होनी चाहिए, या तो इन-हाउस प्रक्रिया के माध्यम से या फिर महाभियोग प्रक्रिया के तहत।
- अनुच्छेद 124(4): सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को केवल संसदीय महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है।
- अनुच्छेद 217(1)(b): उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया भी केवल महाभियोग के माध्यम से ही संभव है।
- इसलिए, लोकपाल द्वारा न्यायाधीशों की जांच असंवैधानिक मानी गई।
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013:
- इस अधिनियम को भारत में उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार से निपटने के लिए लागू किया गया था।
- केंद्रीय स्तर पर लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की स्थापना का प्रावधान किया गया है।
- यह अधिनियम प्रधानमंत्री, मंत्री, सांसदों और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करने की शक्ति प्रदान करता है।
- इसका मुख्य उद्देश्य शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है।
मुख्य विशेषताएँ:
- लोकपाल की स्थापना: अध्यक्ष सहित अधिकतम 8 सदस्य, जिनमेंन्यायिक और गैर-न्यायिक सदस्यशामिल होते हैं।
- क्षेत्राधिकार (Jurisdiction): प्रधानमंत्री (कुछ अपवादों के साथ), मंत्री, सांसद, और केंद्र सरकार के ग्रुप A और B अधिकारी इसके दायरे में आते हैं।
- राज्यों में लोकायुक्त की स्थापना: प्रत्येक राज्य को अपना लोकायुक्त नियुक्त करने का निर्देश दिया गया है।
- जाँच और अभियोजन की शक्ति: लोकपाल स्वतंत्र जांच, अभियोजन की सिफारिश, और अनुशासनात्मक कार्रवाई का निर्देश दे सकता है।
- व्हिसलब्लोअर सुरक्षा: अधिनियम भ्रष्टाचार की रिपोर्ट करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा का प्रावधान करता है।
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम का महत्व:
- भ्रष्टाचार विरोधी उपायों को मजबूत करना: यह अधिनियम स्वतंत्र निगरानी तंत्र प्रदान करता है, जो केंद्र और राज्यों में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
- सार्वजनिक जवाबदेही बढ़ाना: प्रधानमंत्री और सांसदों को भी जांच के दायरे में लाकर सरकार में जनता का विश्वास मजबूत किया गया है।
- लोकपाल को स्वतंत्र जांच की शक्ति: लोकपाल स्वतंत्र रूप से जांच कर सकता है और अभियोजन की सिफारिश कर सकता है, जिसके लिए उसे सरकार की पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती।
- राज्य स्तर पर सतर्कता सुनिश्चित करना: सभी राज्यों मेंलोकायुक्त की अनिवार्य स्थापनासे राज्य सरकारों में भी पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
निष्कर्ष: लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013, भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक प्रभावी तंत्र है, जो शासन को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है