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शेल गैस (Shale Gas)

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हाल ही में झारखंड के रामगढ़ जिले में दक्षिण कर्णपुरा कोलफील्ड के पूर्वी क्षेत्र में कार्बनिक अवशेषों और भू-रासायनिक आकलन के माध्यम से हाइड्रोकार्बन उत्पादन की महत्वपूर्ण संभावनाओं का संकेत मिला है। विशेषकर, पूर्वी सिरका कोयला क्षेत्र ने उत्तर में गिद्दी कोयला क्षेत्र की तुलना में उच्च हाइड्रोकार्बन उत्पादन क्षमता प्रदर्शित की है।

Shale Gas: एक संक्षिप्त परिचय

परिभाषा: Shale Gas प्राकृतिक गैस का एक रूप है, जिसमें ज्यादातर मीथेन होता है। यह गैस भूमिगत शेल चट्टान में पाई जाती है।

निकासी प्रक्रिया: Shale Gas को निकालने के लिए हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग या फ्रैकिंग नामक प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में:

  • शेल संरचना को तोड़ने के लिए उसमें उच्च दबाव वाले पानी, रेत, और रसायनों को इंजेक्ट किया जाता है।
  • यह प्रक्रिया Shale Gas को मुक्त करने में सहायक होती है, जिससे इसे सतह पर लाना संभव होता है।

गोंद का उपयोग: Shale Gas के निष्कर्षण में ग्वार के बीज से बने गोंद का उपयोग किया जाता है। यह गोंद उच्च दबाव में स्थिरता और प्रभावशीलता बनाए रखने में मदद करती है।

शेल की संरचना:

  • शेल एक महीन दाने वाली अवसादी चट्टान है, जो समय के साथ मिट्टी, गाद, कीचड़, और कार्बनिक पदार्थों के संघनन के परिणामस्वरूप बनती है।
  • ये शेल्स प्राचीन समुद्रों, नदी डेल्टाओं, झीलों, और लैगूनों में जमा होते थे और पृथ्वी की सतह और भूमिगत गहराई में पाए जाते हैं।

महत्व:

  • Shale Gas ऊर्जा उत्पादन के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो पारंपरिक जीवाश्म ईंधनों के विकल्प के रूप में उभरी है।
  • इसकी उपलब्धता ने कई देशों को ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ने में मदद की है, लेकिन इसके पर्यावरणीय प्रभावों पर भी चर्चा हो रही है।

दक्षिण कर्णपुरा कोलफील्ड:

  • कोयला ब्लॉकों की संख्या: 28 प्रमुख कोयला ब्लॉक।
  • उपयोग योग्य कोयले का भंडार: इस क्षेत्र में पर्याप्त भंडार उपलब्ध है।
  • ऊर्जा की मांग: बढ़ती ऊर्जा मांग और हाइड्रोकार्बन अन्वेषण में रुचि के चलते अब कोल बेड मीथेन और Shale Gas जैसे अपरंपरागत संसाधनों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

हाइड्रोकार्बन उत्पादन की संभावनाएँ:

  • कार्बनिक पदार्थ की सांद्रता: स्रोत चट्टान में हाइड्रोकार्बन उत्पादन की संभावनाएँ कार्बनिक पदार्थ की सांद्रता पर निर्भर करती हैं, जो विशेष पर्यावरणीय परिस्थितियों से प्रभावित होती हैं।
  • विश्लेषण के लिए अध्ययन: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (बीएसआईपी) के वैज्ञानिकों ने पराग, बीजाणुओं, और सूक्ष्म अवशेषों का विश्लेषण किया। इसमें रॉक-इवल पायरोलिसिस नामक प्रयोगशाला प्रक्रिया का उपयोग किया गया।

नमूने और विश्लेषण:

  • नमूनों का संग्रहण: झारखंड के हजारीबाग जिले के अरगडा क्षेत्र से सिरका और गिद्दी-सी कोलियरी की खदानों से नमूने एकत्र किए गए।
  • मापदंड: इन नमूनों में पैलिनोफेसीज, मुक्त हाइड्रोकार्बन (एस1), भारी हाइड्रोकार्बन (एस2), पायरोलाइज़ेबल कार्बन (पीसी), और अवशिष्ट हाइड्रोकार्बन (आरसी) का विश्लेषण किया गया।

पर्मियन (बराकर) निक्षेप: ये तलछट दक्षिण कर्णपुरा कोलफील्ड के पूर्वी क्षेत्र में उच्च हाइड्रोकार्बन संसाधन क्षमता के लिए अनुकूल परिस्थितियों का संकेत देती हैं।

अनुसंधान के निष्कर्ष: जर्नल ऑफ एशियन अर्थ साइंसेज-एक्स में प्रकाशित इस शोध से भविष्य के अन्वेषण प्रयासों के लिए आवश्यक जानकारी मिलती है, जो ऊर्जा संसाधन विकास और राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा में योगदान कर सकती है। हालांकि, आर्थिक अन्वेषण की पुष्टि के लिए और अधिक विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है।

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