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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पराली जलाने के मामलों पर पंजाब और हरियाणा राज्यों द्वारा ठोस कदम न उठाए जाने पर चिंता व्यक्त की है, जिसके कारण दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र की वायु गुणवत्ता लगातार खराब हो रही है। न्यायालय ने दोनों राज्यों की आलोचना करते हुए कहा कि वे 2021 में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) द्वारा जारी निर्देशों को प्रभावी रूप से लागू करने में विफल रहे हैं। इन निर्देशों का मुख्य उद्देश्य पराली जलाने की घटनाओं को रोकना और वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना था।
पराली जलाने के प्रमुख कारण:
- फसल अवशेषों का निपटारा: चावल की फसल कटाई के बाद खेत में बचे अवशेषों को हटाने के लिए किसान अक्सर उन्हें जलाते हैं, क्योंकि यह सबसे सस्ता और तेजी से खेत को साफ करने का तरीका माना जाता है। इसके बाद गेहूं की बुवाई के लिए खेत तैयार किए जाते हैं।
- कंबाइन हार्वेस्टर का प्रयोग: इन मशीनों से कटाई के दौरान जमीन के पास ठूंठ रह जाते हैं, जो पराली जलाने की प्रक्रिया का प्रमुख कारण हैं।
- समय की कमी: धान की कटाई और गेहूं की बुवाई के बीच बहुत कम समय होता है, जिससे किसान जल्दबाजी में पराली जलाने का सहारा लेते हैं।
पराली जलाने के प्रभाव:
- वायु प्रदूषण: पराली जलाने से PM2.5, PM10, और NOx जैसे हानिकारक प्रदूषक हवा में मिलते हैं, जो दिल्ली-एनसीआर में गंभीर वायु गुणवत्ता संकट का कारण बनते हैं।
- स्वास्थ्य समस्याएं: वायु प्रदूषण से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों के रोग, और अन्य श्वसन संबंधी समस्याओं में वृद्धि होती है।
- ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन: पराली जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जो जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है।
- मिट्टी की उर्वरता पर प्रभाव: पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता घटती है और दीर्घकालिक कृषि उत्पादन प्रभावित होता है।
पराली प्रबंधन के सुझाव:
- मिट्टी में अवशेष मिलाना: अवशेषों को जलाने के बजाय उन्हें मिट्टी में मिलाकर उर्वरता बढ़ाई जा सकती है।
- कृषि अवशेषों का उपयोग: पराली का उपयोग पशु चारे, जैविक खाद, बायोइथेनॉल, और बायोगैस के उत्पादन के लिए किया जा सकता है।
- फसल अवशेष प्रबंधन (CRM) मशीनरी: किसानों को पराली प्रबंधन के लिए उपलब्ध मशीनरी, जैसे सुपर सीडर और हैप्पी सीडर, के उपयोग के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
पराली जलाने को रोकने के लिए पहल:
- वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM): यह आयोग एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता की निगरानी करता है और सुधार के लिए कदम उठाता है।
- ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP): वायु गुणवत्ता के बिगड़ने पर, यह योजना आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र के रूप में कार्य करती है। जब वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) खतरनाक स्तर पर पहुंचता है, तो यह सक्रिय हो जाती है।
- फसल अवशेष प्रबंधन योजना: सरकार ने फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी की उपलब्धता बढ़ाई है और किसानों को इसे अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया है।
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) के बारे में :वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM), राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और इसके आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण के लिए गठित एक वैधानिक निकाय है। इसे 2021 में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम, 2021 के तहत स्थापित किया गया था। इस आयोग का मुख्य उद्देश्य दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण की समस्याओं से निपटने के लिए समन्वित और प्रभावी समाधान लागू करना है। मुख्य कार्य और अधिदेश:
शक्तियाँ:
संरचना:
जवाबदेही: आयोग सीधे संसद के प्रति जवाबदेह है, जो इसकी कार्यक्षमता, नीतियों और निर्देशों की समीक्षा करता है। महत्व: CAQM का गठन दिल्ली-एनसीआर में गंभीर वायु प्रदूषण के मुद्दों से निपटने के लिए किया गया था, खासकर पराली जलाने और वाहनों से होने वाले उत्सर्जन जैसी समस्याओं से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण के खिलाफ तत्काल कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए। |
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