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संदर्भ:
जर्नल Climate and Atmospheric Science में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, पराली जलाने से दिल्ली–एनसीआर में PM2.5 स्तर में केवल 14% योगदान होता है। यह निष्कर्ष दर्शाता है कि पराली जलाना क्षेत्र में कणीय प्रदूषण (particulate matter) का प्रमुख स्रोत नहीं है, और अन्य कारकों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
दिल्ली–NCR में वायु प्रदूषण पर रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:
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पराली जलाने का सीमित प्रभाव:
- शोधकर्ताओं के अनुसार, पंजाब और हरियाणा में पराली जलाना दिल्ली-एनसीआर के PM2.5 प्रदूषण में केवल 14% योगदान देता है, जो प्रमुख कारण नहीं है।
- 2015 से 2023 तक पराली जलाने की घटनाओं में 50% कमी आई, लेकिन दिल्ली-एनसीआर में PM2.5 का स्तर स्थिर बना रहा, जिससे अन्य स्रोतों की भूमिका स्पष्ट होती है।
- वैज्ञानिक निष्कर्ष:
- क्योटो स्थित रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमैनिटी एंड नेचर (RIHN) के शोधकर्ताओं ने पाया कि दिल्ली-एनसीआर में PM2.5 का स्तर और पंजाब-हरियाणा में आग की घटनाओं के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है।
- नवंबर के बाद पराली जलना बंद हो जाता है, फिर भी 2016 से हर सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता “बहुत खराब” से “गंभीर” श्रेणी में बनी रहती है।
- इसका प्रमुख कारण स्थिर हवाएँ, कम मिश्रण ऊँचाई (mixing height) और इन्वर्ज़न परिस्थितियाँ हैं।
- वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत:
- 2023 में दिल्ली–एनसीआर में रात के समय CO सांद्रता 67% अधिक थी जबकि 2022 में यह अंतर 48% था।
- पंजाब और हरियाणा में दिन-रात के अंतर सिर्फ पराली जलाने के चरम समय (अक्टूबर-नवंबर) में स्पष्ट था।
- अक्टूबर-नवंबर के दौरान भी स्थानीय औद्योगिक और मानवजनित स्रोतों का योगदान PM2.5 में पराली से अधिक रहा।
- GRAP (Graded Response Action Plan) के तहत परिवहन और निर्माण पर प्रतिबंध से PM2.5 में कमी आई, लेकिन प्रतिबंध हटते ही प्रदूषण स्तर फिर बढ़ गया।
- दिल्ली–NCR में PM2.5 के प्रमुख स्रोत (%)
- परिवहन क्षेत्र – 30%
- स्थानीय बायोमास जलना – 23%
- निर्माण और सड़क धूल – 10%
- खाना पकाने और उद्योग – 5-7%
- अन्य अनिर्दिष्ट स्रोत – 10%
- पराली जलाना – 13% (सिर्फ अक्टूबर-नवंबर में)
PM2.5: एक गंभीर वायु प्रदूषक
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PM2.5 क्या है?
- PM2.5 (Fine Particulate Matter) वे सूक्ष्म कण होते हैं जिनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है।
- ये हवा में लंबे समय तक निलंबित रहते हैं और श्वसन प्रणाली में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं।
- प्रमुख स्रोत
- वाहनों से निकलने वाला धुआं
- बायोमास जलाना (लकड़ी, फसल अवशेष, कचरा आदि)
- निर्माण कार्यों से उत्पन्न धूल
- औद्योगिक प्रदूषण और कारखानों से निकलने वाला धुआं
- स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव
- श्वसन संबंधी समस्याएँ
- अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों में संक्रमण को बढ़ावा देता है।
- फेफड़ों की कार्यक्षमता घटाता है, जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है।
- हृदय रोगों का खतरा: दिल का दौरा, स्ट्रोक, हाई ब्लड प्रेशर और अनियमित दिल की धड़कन (Arrhythmia) का खतरा बढ़ाता है।
- मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव: याददाश्त कमजोर करता है, मानसिक क्षमताओं में गिरावट लाता है और डिमेंशिया (स्मृतिभ्रंश) का खतरा बढ़ाता है।
- गर्भवती महिलाओं और बच्चों पर प्रभाव: कम जन्म वजन, समय से पहले जन्म, और बच्चों के फेफड़ों के विकास में बाधा डालता है।
- त्वचा और आँखों की जलन: आँखों में लालिमा, खुजली और एलर्जी का कारण बनता है।
- आयु और जीवन प्रत्याशा में कमी: लंबे समय तक संपर्क में रहने से कैंसर, पुरानी बीमारियाँ और अकाल मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
- श्वसन संबंधी समस्याएँ