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संदर्भ:
भोजन का अधिकार और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के साथ संघर्ष: उत्तर, मध्य और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में, नौकरशाही की जटिलताओं के कारण बड़ी संख्या में परिवारों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की सूची से बाहर कर दिया गया है।
भोजन का अधिकार और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में हालिया समस्याएं:
- लाभार्थियों का बाहर होना: झारखंड और ओडिशा (2023) की रिपोर्ट में बताया गया कि बड़ी संख्या में परिवारों को PDS सूची से हटा दिया गया, जिससे कमजोर वर्ग खाद्यान्न से वंचित हो गए।
- बिहार में संकट: बिहार भी PDS से संबंधित गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है, जिससे हाशिए पर बसे समुदायों को किफायती खाद्यान्न की उपलब्धता में बाधा आ रही है।
बिहार में मुसहर समुदाय को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के साथ कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें:
- आपूर्ति संकट: कोविड-19 महामारी के कारण राशन की आपूर्ति स्थिर नहीं रही।
- राशन कार्ड समस्याएं: कई मुसहर परिवारों के पास सक्रिय राशन कार्ड नहीं हैं या कार्ड अधूरे हैं।
- बायोमेट्रिक सत्यापन समस्याएं: तकनीकी गलतियों के कारण कई लोग PDS सूची से हटा दिए जाते हैं, जिससे उन्हें नए राशन कार्ड के लिए आवेदन करना पड़ता है।
- राशन की गुणवत्ता और मात्रा: FPS डीलर अक्सर निर्धारित राशन से कम मात्रा प्रदान करते हैं, और चावल की गुणवत्ता बहुत खराब होती है, जो अक्सर सबसे निचली श्रेणी का होता है।
PDS नामांकन के लिए दस्तावेज़ीकरण से संबंधित चुनौतियाँ:
- आवेदन प्रक्रिया:
- बिहार में कागजी रूपों में आवेदन करते समय आधार विवरण की आवश्यकता होती है।
- ऑनलाइन आवेदन में जाति, आय और निवास प्रमाणपत्र जैसे अतिरिक्त दस्तावेज़ों की आवश्यकता होती है।
- कानूनी आधार:
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (2013) या PDS नियंत्रण आदेश (2015) के तहत इन प्रमाणपत्रों की आवश्यकता का कोई कानूनी आधार नहीं है।
- अधिकारियों द्वारा इस दस्तावेज़ीकरण को डिजिटाइज्ड सिस्टम में एक oversight माना जाता है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में प्रभावशीलता:
- खाद्य पहुंच और कवरेज:
- PDS लगभग 57% आबादी को कवर करता है और रियायती दरों पर चावल और गेहूं जैसे मुख्य खाद्य पदार्थ प्रदान करता है।
- यह आर्थिक संकटों के दौरान एक सुरक्षा कवच की तरह कार्य करता है। COVID-19 महामारी के दौरान इसने करोड़ों लोगों को मुफ्त अनाज उपलब्ध कराया।
- रिसाव और भ्रष्टाचार:
- लगभग 28% आवंटित खाद्यान्न लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाता, जिससे भारी नुकसान होता है।
- भ्रष्टाचार और खाद्यान्न की अवैध हेराफेरी व्यापक है। पॉइंट-ऑफ-सेल (POS) मशीन जैसे तकनीकी उपायों के बावजूद रिसाव की समस्या बनी हुई है।
- पोषण सुरक्षा:
- PDS मुख्य रूप से चावल और गेहूं जैसे बुनियादी खाद्य पदार्थों पर केंद्रित है, लेकिन व्यापक पोषण संबंधी आवश्यकताओं को नजरअंदाज करता है।
- दाल और फोर्टिफाइड फूड्स जैसे आवश्यक पोषण तत्वों की कमी कुपोषण से निपटने में इसकी प्रभावशीलता को सीमित करती है।
PDS सुधार के लिए आवश्यक कदम:
- दस्तावेज़ीकरण में सरलता: अनावश्यक दस्तावेज़ हटाकर पात्र परिवारों तक पहुंच बेहतर बनाना।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: नियमित ऑडिट और सामुदायिक निगरानी से भ्रष्टाचार पर काबू पाना।
- पोषक तत्वों की आपूर्ति: खाद्य विविधता बढ़ाकर पोषण सुधारना, जैसे तमिलनाडु का मॉडल।
- डिजिटलीकरण और शिकायत निवारण: डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और मजबूत शिकायत प्रणाली से दक्षता बढ़ाना।