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संयुक्त राष्ट्र महासभा की कानूनी समिति ने मानवता के खिलाफ अपराधों को रोकने और दंडित करने के लिए पहली बार एक ऐतिहासिक संधि की बातचीत शुरू करने के लिए एक प्रस्ताव को मंजूरी दी।
- यह कदम लंबे समय तक चली कड़ी बातचीत के बाद उठाया गया, जिसमें रूस ने उन संशोधनों को वापस ले लिया, जो इस प्रक्रिया को बाधित कर सकते थे।
- इस प्रस्ताव से एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है ताकि मानवता के खिलाफ अपराधों को प्रभावी तरीके से रोका जा सके और अपराधियों को सजा दिलाई जा सके।
U.N. प्रस्ताव: मानवता के खिलाफ अपराध:
- समर्थन: इस प्रस्ताव को 98 देशों, जिनमें मेक्सिको और गाम्बिया शामिल हैं, का समर्थन प्राप्त हुआ है।
- यह प्रस्ताव मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून में मौजूद कमी को दूर करने की आवश्यकता को दर्शाता है, क्योंकि वर्तमान संधियाँ युद्ध अपराध, जातीय सफाया और यातना को ही कवर करती हैं।
- ICC की भूमिका: अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय (ICC) युद्ध अपराध, जातीय सफाया और मानवता के खिलाफ अपराधों की सुनवाई करता है, लेकिन इसके पास कई देशों में न्यायिक अधिकार (jurisdiction) नहीं है।
- नई संधि का उद्देश्य: इस प्रस्तावित संधि का उद्देश्य उन देशों में मानवता के खिलाफ अपराधों को दंडित करना है जो ICC के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।
- महत्व: इस प्रस्ताव को अंतरराष्ट्रीय कानून के लिए एक अहम कदम माना जा रहा है, क्योंकि यह इथियोपिया, सूडान, यूक्रेन, गाजा और म्यांमार जैसे देशों में मानवता के खिलाफ अपराधों के खिलाफ कार्रवाई की दिशा में एक मजबूत पहल है।
मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए अलग संधि:
- वैश्विक अत्याचार: संघर्षों और अत्याचारों के बढ़ने के कारण एक अंतर्राष्ट्रीय संधि की आवश्यकता है।
- ICC की सीमाएँ: ICC कई देशों में कार्यवाही नहीं कर सकता, एक संधि इसे वैश्विक स्तर पर लागू करेगी।
- कानूनी अंतराल: मौजूदा संधियाँ मानवता के खिलाफ अपराधों को कवर नहीं करतीं, जिससे अपराधी सजा से बच जाते हैं।
- व्यापक दायरा: मानवता के खिलाफ अपराधों में हत्या, बलात्कार, यातना, निर्वासन जैसे अपराध शामिल हैं।
- सार्वभौमिक जिम्मेदारी: संधि से अपराधियों के लिए कोई सुरक्षित स्थान नहीं रहेगा, और न्याय सुनिश्चित होगा।
संघर्षों को नियंत्रित करने वाले प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय कानून:
- 1949 जिनेवा कन्वेंशन:
- यह चार अंतरराष्ट्रीय संधियाँ सशस्त्र संघर्षों के दौरान मानवीय सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा करती हैं।
- ये घायल सैनिकों, युद्ध बंदियों, और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं, और मानवीय व्यवहार और गैर-लड़ाई करने वालों के अधिकारों को बनाए रखती हैं।
- 196 देशों द्वारा अनुमोदित, यह अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून की नींव बनाती हैं और युद्ध के खतरों को सीमित करती हैं।
- जिनेवा कन्वेंशन के अतिरिक्त प्रोटोकॉल (1977):
- ये दो प्रोटोकॉल नागरिक संघर्षों और गैर-अंतरराष्ट्रीय संघर्षों में सुरक्षा बढ़ाने के लिए बनाए गए।
- इन प्रोटोकॉल का उद्देश्य मानवीय सिद्धांतों को मजबूत करना और युद्ध के दौरान अधिक व्यापक सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
- अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून (IHL):
- इसे युद्ध कानून (LOAC) भी कहा जाता है, जो सशस्त्र संघर्षों में युद्ध की कार्यविधि को नियंत्रित करता है।
- इसका उद्देश्य उन लोगों की सुरक्षा करना है जो युद्ध में सक्रिय रूप से भाग नहीं ले रहे हैं, जैसे नागरिक, चिकित्सा कर्मी, और युद्ध बंदी।
- यह कानून युद्ध के तरीकों और साधनों को सीमित करता है, ताकि मानवीय सुरक्षा सुनिश्चित हो और पीड़ाओं को कम किया जा सके।
- जिनेवा कन्वेंशन और हेग नियम इसके मुख्य आधार हैं।
- हेग कन्वेंशन (1899, 1907):
- ये कन्वेंशन युद्ध के नियमों और युद्ध अपराधों से संबंधित हैं।
- इसका ध्यान युद्ध संचालन, बंदियों के उपचार, और नागरिकों तथा सांस्कृतिक संपत्तियों की सुरक्षा पर है।
- अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) का विधेयक (1998):
- ICC युद्ध अपराधों, मानवता के खिलाफ अपराधों, और जातीय सफाया जैसे गंभीर अपराधों के लिए व्यक्तियों को न्याय दिलाने हेतु स्थापित किया गया था।
- इसका उद्देश्य IHL के उल्लंघन करने वालों के खिलाफ जवाबदेही सुनिश्चित करना है।
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर (1945)
- यह चार्टर अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बल के प्रयोग को नियंत्रित करता है।
- इसमें आक्रामक युद्ध पर प्रतिबंध और आत्मरक्षा के अधिकार की पुष्टि की गई है, जिससे अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखा जा सके।