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संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम सम्मेलन (United Nations Convention to Combat Desertification) की 16वीं बैठक (COP16) रियाद, सऊदी अरब (Riyadh, Saudi Arabia) में शुरू हो रही है।
- यह पहली बार है जब पश्चिम एशिया इस महत्वपूर्ण पर्यावरण सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है।
- इस आयोजन में भारत समेत 197 देशों के प्रतिनिधि भाग लेंगे। यह सम्मेलन UNCCD की 30वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित किया जा रहा है।
परियोजना प्रस्तुति के मुख्य बिंदु–
- भारत की प्रस्तुति:
- 2 दिसंबर को भारत मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे से निपटने के लिए अपनी नवीन पहल प्रस्तुत करेगा।
- इस पहल में स्वदेशी प्रजातियों के वनीकरण, जैव विविधता संरक्षण, और उन्नत जल प्रबंधन रणनीतियों का उपयोग शामिल है।
- सम्मेलन का महत्व:
- यह सम्मेलन 13 दिसंबर तक चलेगा और सऊदी अरब द्वारा आयोजित सबसे बड़ा बहुपक्षीय कार्यक्रम है।
- इसमें सरकारों, व्यवसायों और नागरिक समाज को टिकाऊ भूमि प्रबंधन पर सहयोग के लिए एक वैश्विक मंच मिलेगा।
- भारत का योगदान:
- भारत की पहल AGWP (Afforestation and Green Water Practices) को वैश्विक स्तर पर समान परियोजनाओं के लिए एक मॉडल के रूप में देखा जा रहा है।
- यह भारत की भूमि क्षरण से निपटने की प्रतिबद्धता और पर्यावरण नेतृत्व में बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।
- महत्वपूर्ण चर्चा और उद्देश्य:
- वन विशेषज्ञ, मंत्री और संरक्षण नेताओं के बीच चर्चा होगी।
- हरित रोजगार अवसरों का सृजन और पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम सम्मेलन (UNCCD):
स्थापना: 1994 में स्थापित, यह पर्यावरण और विकास को टिकाऊ भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय समझौता है।
सदस्य: 196 देश और यूरोपीय संघ।
मुख्य उद्देश्य:
- भूमि की रक्षा और पुनर्स्थापना करना।
- एक सुरक्षित, न्यायपूर्ण, और टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करना।
- स्थानीय लोगों की भागीदारी को प्रोत्साहित करते हुए मरुस्थलीकरण से निपटना।
प्रमुख पहलें:
- भूमि क्षरण न्यूट्रैलिटी (LDN) लक्ष्य कार्यक्रम (2015)
- सदस्य देशों को भूमि क्षरण न्यूट्रैलिटी हासिल करने के लिए स्वैच्छिक लक्ष्य तय करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
- LDN: भूमि संसाधनों का टिकाऊ प्रबंधन, जो पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं और खाद्य सुरक्षा का समर्थन करता है।
- भारत का लक्ष्य: 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर भूमि पुनर्स्थापित करना।
- रणनीतिक ढांचा 2018−2030 (2017): मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखा चिंताओं को राष्ट्रीय नीतियों में शामिल करने का आग्रह।
भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण की समस्या
परिभाषा: भूमि क्षरण का मतलब मिट्टी की उत्पादन क्षमता का गिरना या खोना है, जिससे वर्तमान और भविष्य की जरूरतें प्रभावित होती हैं।
- वैश्विक स्थिति:
- दुनिया की 40% भूमि क्षरण से प्रभावित।
- हर साल 100 मिलियन हेक्टेयर उपजाऊ भूमि खत्म हो जाती है।
- भारत की स्थिति:
- 32% भूमि क्षरण का शिकार।
- 25% भूमि मरुस्थलीकरण से प्रभावित।