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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अंजुम कादरी बनाम भारत संघ और अन्य मामले में उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले को पलट दिया जिसमें मार्च 2024 में मदरसा अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया गया था। उच्च न्यायालय ने इसे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत और अनुच्छेद 14, 21, 21-ए के उल्लंघन तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) अधिनियम, 1956 की धारा 22 के विपरीत माना था।
निर्णय की मुख्य बातें:
- उच्च न्यायालय के आदेश को पलटना: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किसी कानून को रद्द करने का आधार केवल तभी हो सकता है जब वह संविधान के भाग III के अंतर्गत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो, न कि केवल संविधान के मूल ढांचे का।
- मदरसा अधिनियम का औचित्य: न्यायालय ने मदरसा अधिनियम के औचित्य को स्वीकार किया। इस अधिनियम का उद्देश्य मदरसों में शिक्षा के मानकों को विनियमित करना है ताकि छात्रों को योग्यता के स्तर तक पहुँचाया जा सके और वे समाज में प्रभावी ढंग से भाग ले सकें।
- विधायी क्षमता: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मदरसा अधिनियम राज्य विधानमंडल की विधायी क्षमता में आता है, क्योंकि यह समवर्ती सूची की प्रविष्टि 25 (जिसमें शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा और विश्वविद्यालय शामिल हैं) से संबंधित है।
- आंशिक रूप से असंवैधानिक: अदालत ने मदरसा अधिनियम के कुछ प्रावधानों को आंशिक रूप से असंवैधानिक करार दिया, जो ‘फाज़िल’ (स्नातकोत्तर डिग्री) और ‘कामिल’ (स्नातकोत्तर डिग्री) जैसी उच्च शिक्षा डिग्रियों को विनियमित करते हैं, क्योंकि ये यूजीसी अधिनियम, 1956 की धारा 22 के विपरीत हैं, जो कि केवल यूजीसी द्वारा परिभाषित संस्थानों को ही डिग्री प्रदान करने की अनुमति देता है।
अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों का विनियमन:
- अनुच्छेद 29 और 30: ये अनुच्छेद अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की रक्षा करते हैं। अनुच्छेद 30(1) धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार प्रदान करता है।
- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग (एनसीएमईआई): एनसीएमईआई अधिनियम, 2004 के तहत स्थापित यह अर्ध-न्यायिक निकाय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम करता है। इसके पास न्यायिक, सलाहकारी और सिफारिशी शक्तियाँ हैं और यह सिविल न्यायालय की शक्तियों का उपयोग कर सकता है।
इस फैसले ने मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया है, जिसमें राज्य के शिक्षा संबंधी दायित्व और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का संतुलन बनाए रखा गया है।
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