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भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने आदित्य-एल1 मिशन पर लगे विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (VELC) पेलोड से प्राप्त पहले महत्वपूर्ण परिणामों की रिपोर्ट दी है। यह मिशन भारत का पहला सूर्य निरीक्षण मिशन है जो पृथ्वी से 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर से सूर्य का अध्ययन करेगा।
VELC के बारे में:
VELC आदित्य-एल1 मिशन का प्राथमिक पेलोड है और यह एक आंतरिक रूप से प्रच्छन्न सौर कोरोनाग्राफ है। यह पेलोड सौर खण्ड के निकट इमेजिंग, स्पेक्ट्रोस्कोपी और स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री करने में सक्षम है। इसका निर्माण भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) ने कर्नाटक के होसाकोटे स्थित CREST (विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं शिक्षा केंद्र) परिसर में किया है। इसमें कोरोनाग्राफ, स्पेक्ट्रोग्राफ, पोलरिमेट्री मॉड्यूल और डिटेक्टर जैसे सहायक प्रकाशिकी उपकरण शामिल हैं।
मुख्य उद्देश्य:
- सौर कोरोना का निरीक्षण: VELC का मुख्य उद्देश्य सूर्य के कोरोना की अध्ययन करना है, जो सूर्य का सबसे बाहरी, पतला और गर्म परत है। यह कोरोनल तापमान, प्लाज्मा वेग, घनत्व आदि का विश्लेषण करेगा।
- सौर त्रिज्या का चित्रण: VELC सौर त्रिज्या के 1.05 गुना तक का चित्र ले सकता है, जो किसी भी पेलोड द्वारा लिया गया सबसे निकटतम चित्र है।
- कोरोनल मास इजेक्शन (CME) और सौर हवा का अध्ययन: यह पेलोड कोरोनल मास इजेक्शन (CME) और सौर हवा के अध्ययन में भी सहायक होगा, जो सूर्य के ऊपरी वायुमंडल से संबंधित घटनाएँ हैं।
कोरोनाग्राफ क्या है?
- कोरोनाग्राफ एक विशेष उपकरण है जिसका उद्देश्य सूर्य के प्रकाश को अवरुद्ध करना है ताकि शोधकर्ता सूर्य के कोरोना, जो सूर्य का सबसे बाहरी और गर्म परत है, को देख सकें।
- इसका आविष्कार फ्रांसीसी खगोलशास्त्री बर्नार्ड ल्योट ने 1930 के दशक में किया था।
- सामान्यतः सूर्य का कोरोना केवल सूर्यग्रहण के दौरान दिखाई देता है, जब चंद्रमा की छाया सूर्य की केंद्रीय परतों को ढक लेती है और इसका मंद कोरोना दिखाई देता है।
- कोरोनाग्राफ इस प्राकृतिक घटना की नकल करता है और एक गोलाकार मास्क के माध्यम से सूर्य के प्रकाश के बड़े हिस्से को अवरुद्ध करता है, जिससे सूर्य के बाहरी परत को देखा जा सकता है।
निष्कर्ष: VELC पेलोड आदित्य-एल1 मिशन के माध्यम से सूर्य के कोरोना का विस्तृत अध्ययन करेगा, जिससे सूर्य की बाहरी परत, सौर हवा, कोरोनल मास इजेक्शन (CME) और अन्य सौर घटनाओं को समझने में मदद मिलेगी। यह मिशन न केवल भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, बल्कि वैश्विक खगोल विज्ञान समुदाय के लिए भी एक महत्वपूर्ण योगदान होगा।
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