पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन चर्चा मे क्यों ?
पश्चिम बंगाल सरकार ने ‘अपराजिता महिला और बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक, 2024′ नामक एक एंटी-रेप संशोधन विधेयक (anti-rape amendment bill) पारित किया है।
- उद्देश्य (Objective): यह विधेयक यौन अपराधों, जैसे कि बलात्कार, के लिए सजा में संशोधन करने और बलात्कार मामलों की जांच और सुनवाई को समयबद्ध सीमा में पूरा करने के लिए है।
- महिला और बाल सुरक्षा: विधेयक का उद्देश्य राज्य में महिलाओं और बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाना है।
- सजा को सख्त बनाना: यह विधेयक बलात्कार के लिए मौजूदा सजा को और सख्त करने का प्रस्ताव करता है, जिसमें दोषी पाए जाने पर मृत्युदंड की संभावना भी शामिल है।
प्रस्तावित संशोधन (Proposed Amendments):
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सजा में वृद्धि (Enhancement of punishment):
बलात्कार के लिए सजा (धारा 64, BNS): बलात्कार के अपराध के लिए सजा (punishment for the offence of rape) को बढ़ाकर आजीवन कारावास (अपराधी के प्राकृतिक जीवन की शेष अवधि के लिए) या मृत्यु दंड के साथ जुर्माना लगाने का प्रस्ताव है।
- वर्तमान में, इस अपराध के लिए कम से कम 10 साल की सख्त कैद की सजा निर्धारित है, जो जीवनकाल की सजा (कुछ मामलों में प्राकृतिक जीवन की शेष अवधि के लिए) तक बढ़ सकती है।
जब पीड़िता वेजिटेटिव अवस्था में या मृत्यु (vegetative state or dies ) को प्राप्त होती है (धारा 66, BNS): इस स्थिति में सजा को अनिवार्य रूप से मृत्युदंड के रूप में निर्धारित करने का प्रस्ताव है, साथ ही जुर्माना भी लगाया जाएगा।
- वर्तमान में, इस अपराध के लिए कम से कम 20 साल की सख्त कैद की सजा दी जाती है, जो जीवनकाल की सजा या मृत्यु दंड तक बढ़ सकती है।
- गैंग रेप (धारा 70(1) BNS): गैंग रेप (Gang rape) के लिए सजा के रूप में अपराधी के जीवन की शेष अवधि के लिए आजीवन कारावास या मृत्यु दंड के साथ जुर्माना लगाने का प्रस्ताव है।
- वर्तमान में, इस अपराध के लिए कम से कम 20 साल की सख्त कैद की सजा दी जाती है, जो जीवनकाल की सजा तक बढ़ सकती है।
बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर करने पर सजा (धारा 72, BNS): पीड़िता की पहचान उजागर करने पर सजा को बढ़ाकर 3-5 साल की कैद और जुर्माना लगाने का प्रस्ताव है। इसी तरह, अदालत की कार्यवाही को बिना अनुमति के प्रकाशित करने पर भी बढ़ी हुई सजा का प्रस्ताव है।
- वर्तमान में, इस अपराध के लिए 2 साल की कैद और जुर्माने की सजा निर्धारित है।
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जांच और सुनवाई की समय सीमा (Time limit for investigation and trial):
जांच की समय सीमा (धारा 193, BNS): बलात्कार मामलों में जांच को 21 दिनों के भीतर पूरा करने की समय सीमा निर्धारित करने का प्रस्ताव है (वर्तमान में 2 महीने का समय दिया गया है)।
- इस समय सीमा को अधिकतम 15 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है, जिसके लिए केस डायरी में लिखित रूप से कारण दर्ज करना आवश्यक होगा।
सुनवाई की समय सीमा (धारा 346(1), BNS): इस बिल में यह भी प्रस्ताव है कि ऐसे मामलों में चार्जशीट दाखिल होने की तिथि से 30 दिनों के भीतर जांच या सुनवाई पूरी कर ली जाए।
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विशेष अदालतें और टास्क फोर्स (Special Courts and Task Forces):
विशेष अदालतें (धारा 29A): विधेयक में BNSS में संशोधन के तहत एक नई धारा 29A के तहत विशेष अदालतें स्थापित करने का प्रस्ताव है।
- ये अदालतें बलात्कार और संबंधित मामलों की जांच या सुनवाई को तेजी से पूरा करने का कार्य करेंगी।
विशेष सार्वजनिक अभियोजक (धारा 29B): बलात्कार के मामलों की सुनवाई एक विशेष सार्वजनिक अभियोजक द्वारा की जाएगी, जिसे सरकारी अधिसूचना द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
- इस पद के लिए नियुक्त वकील के पास कम से कम सात साल का प्रैक्टिस अनुभव होना चाहिए।
- अपराजिता टास्क फोर्स (धारा 29C): नई धारा 29C के तहत जिला स्तर पर “अपराजिता टास्क फोर्स” बनाने का प्रस्ताव है।
- इस टास्क फोर्स की अध्यक्षता उप पुलिस अधीक्षक करेंगे और यह बलात्कार के मामलों को संभालने के लिए जिम्मेदार होगी।
महिला पुलिस अधिकारी: इस टास्क फोर्स के अंतर्गत जांच, संभवतः, महिला पुलिस अधिकारी द्वारा की जाएगी।
- ड्यूटी में लापरवाही: यदि कोई इस टास्क फोर्स की ड्यूटी में सहायता करने में विफल रहता है, तो उसे छह महीने की कैद या ₹5,000 तक जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
क्या राज्य सरकारों को आपराधिक कानूनों में संशोधन करने का अधिकार है (Do state governments have the right to amend criminal laws)?
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संविधान की व्यवस्था (Provisions of the Constitution):
- संविधान की सातवीं अनुसूची (Seventh Schedule of the Constitution): राज्य सरकारें आपराधिक कानूनों में संशोधन कर सकती हैं क्योंकि ये कानून संविधान की सातवीं अनुसूची के समवर्ती सूची (Concurrent List) के अंतर्गत आते हैं।
- केंद्र और राज्य कानून (Central and State Laws): यदि केंद्रीय और राज्य कानूनों में संघर्ष होता है, तो केंद्रीय कानून सर्वोपरि होगा।
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सातवीं अनुसूची का विवरण (Description of the Seventh Schedule):
- संघ सूची (Union List): ऐसे विषय जिन पर केवल संसद कानून बना सकती है।
- राज्य सूची (State List): ऐसे विषय जिन पर केवल राज्य सरकार कानून बना सकती है।
- संवर्ती सूची (Concurrent List): ऐसे विषय जिन पर संसद और राज्य विधानसभाएं दोनों कानून बना सकती हैं।
धारा 254 की व्यवस्था (Provisions of Section 254):
- धारा 254(1): यदि राज्य का कानून संसद के कानून से विरोधाभासी है, तो संसद का कानून लागू होगा और राज्य का कानून अस्वीकृत हो जाएगा।
- धारा 254(2): यदि राज्य का कानून पहले से पारित संसद के कानून से विरोधाभासी है और राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त कर चुका है, तो यह राज्य में लागू होगा।
- धारा 254(3): संसद को किसी भी समय उस मामले पर नया कानून बनाने का अधिकार है, जिसमें राज्य कानून को जोड़ना, संशोधित करना या रद्द करना शामिल है।
महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के मृत्यु दंड बिल राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार (Maharashtra and Andhra Pradesh death penalty bills await President’s assent):
आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र (Andhra Pradesh and Maharashtra) की विधानसभाओं ने बलात्कार और गैंग रेप मामलों में मृत्यु दंड की मांग करने वाले बिल पास किए थे। अब तक, इनमें से किसी भी बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली है।
भारत में बलात्कार के मामलों की संख्या (Number of rape cases in India)
- 2012 के हमले के समय के आसपास, पुलिस ने पूरे भारत में हर साल लगभग 25,000 बलात्कार मामलों को दर्ज किया, जैसा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों से पता चलता है।
- इसके बाद, सालाना संख्या आमतौर पर 30,000 से ऊपर बनी रही, केवल 2020 के COVID-19 महामारी वर्ष में इसमें तेज़ गिरावट देखी गई।
- आंकड़े (2022): राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने 2022 में महिलाओं के खिलाफ 4,45,256 अपराधों की रिपोर्ट की।
- 2018 से 2022 तक: महिलाओं के खिलाफ रिपोर्ट किए गए अपराधों में 12.9% की वृद्धि हुई है, जो घटनाओं की बढ़ती संख्या और बेहतर रिपोर्टिंग को दर्शाती है।
- महिलाएँ और पुरुष भारत में 2023 रिपोर्ट: 2017 में 3,59,849 मामलों से बढ़कर 2022 में 4,45,000 से अधिक मामले हो गए, जो रोजाना औसतन 1,220 मामले और हर घंटे 51 प्राथमिकी (FIRs) का औसत है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (National Family Health Survey-5): इसने पाया कि भारत में 15-49 साल की उम्र की लगभग एक तिहाई महिलाओं ने किसी न किसी रूप की हिंसा का अनुभव किया है।
कार्यस्थल पर उत्पीड़न (Harassment at Workplace):
POSH अधिनियम, 2013:
- यौन उत्पीड़न के खिलाफ सुरक्षा देने के बावजूद, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न चिंता का विषय बना हुआ है।
- 2018 में 402 मामलों से बढ़कर 2022 में 422 मामले दर्ज किए गए हैं।
- इन आंकड़ों के कम होने की संभावना है, क्योंकि समाजिक पूर्वाग्रह और प्रतिशोध का डर मामलों की रिपोर्टिंग को प्रभावित करता है।
महिलाओं की सुरक्षा पर सूचकांक:
- जॉर्जटाउन इंस्टीट्यूट 2023 के महिला शांति और सुरक्षा सूचकांक के अनुसार, भारत ने 1 में से 595 अंक प्राप्त किए हैं।
- यह भारत को 177 देशों में 128वें स्थान पर रखता है, महिलाओं की भागीदारी, न्याय, और सुरक्षा के संदर्भ में।
महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कानूनी कदम (Legal steps taken by the government to prevent crimes against women):
बच्चों के खिलाफ हिंसा के खिलाफ (Against violence against children):
- बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006: बाल विवाह को रोकता है।
- जुवेनाइल जस्टिस (देखरेख और बच्चों की सुरक्षा) अधिनियम, 2015: बच्चों की देखरेख और सुरक्षा के लिए कानून।
- बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम: बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए आयोग का गठन।
- चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंस (POCSO) अधिनियम, 2012: बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए कानून।
महिलाओं के वस्तुवादीकरण के खिलाफ (Against objectification of women):
- अश्लील प्रतिनिधित्व (महिलाएं) अधिनियम, 1986: महिलाओं का अश्लील चित्रण विज्ञापनों और प्रकाशनों में रोकता है।
यौन अपराधों के खिलाफ (Against sexual offences):
- कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए कानून।
- अपराधी कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013: यौन अपराधों के खिलाफ कड़ी सजा सुनिश्चित करने के लिए कानून।
- अपराधी कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018: 12 साल से कम उम्र की लड़की के बलात्कार पर मौत की सजा सहित कड़ी सजा की व्यवस्था।
घरेलू हिंसा के खिलाफ:
- दहेज निषेध अधिनियम, 1961: दहेज के लिए हिंसा को रोकता है।
- गृह हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005: घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को सुरक्षा और सहायता प्रदान करता है।
महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ (Challenges in ensuring safety of women):
- विलंबित न्याय (Delayed justice): न्याय प्रणाली की अक्षमताएँ, जैसे लंबे कानूनी प्रक्रियाएँ और यौन अपराधियों के लिए नरम सजा, कानून प्रवर्तन पर जनता का विश्वास कमजोर कर देती हैं।
- सजा प्रक्रिया में ढिलाई (Slowness in sentencing process): 39% अधिकारी मानते हैं कि लिंग आधारित हिंसा की शिकायतें आधारहीन होती हैं। FIRs की शीघ्र पंजीकरण की संस्कृति, समय सीमा के भीतर जांच की कमी और यौन उत्पीड़न मामलों में कमजोर फोरेंसिक सबूत एकत्रित करने की प्रक्रिया के कारण दोषियों को सजा मिलने में अत्यधिक देरी होती है।
आधा-अधूरा कार्यान्वयन (Half-hearted implementation): सर्वोच्च न्यायालय ने ‘प्राधिकृत/प्रबंधन/नियोक्ता’ को महिलाओं के लिए “सुरक्षित और सुरक्षित कार्यस्थल” सुनिश्चित करने में विफल रहने के लिए आलोचना की है। कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 का कार्यान्वयन आधा-अधूरा रहा है।
भविष्य के उपाय (Future Measures):
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पुलिस सुधार (Police Reforms):
- लिंग-आधारित भर्ती और प्रशिक्षण (Gender-based recruitment and training): पुलिस में महिलाओं की भर्ती और प्रशिक्षण बढ़ाने की जरूरत है।
- महिला पुलिस स्टेशन (Women Police Stations): महिला पुलिस स्टेशनों की स्थापना की जानी चाहिए।
- महिला पुलिस स्वयंसेवक (Women police volunteers): महिला पुलिस स्वयंसेवकों की सहभागिता बढ़ानी चाहिए।
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न्यायिक सुधार (Judicial Reforms):
- फास्ट ट्रैक कोर्ट्स (Fast track courts): गंभीर मामलों जैसे बलात्कार के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट्स स्थापित किए जाने चाहिए।
- सजा में वृद्धि (Increase in punishment): बलात्कार के मामलों में सजा को और कड़ा किया जाना चाहिए, जैसा कि जस्टिस वर्मा कमेटी ने सिफारिश की है।
- महिला प्रतिनिधित्व (Women representation): न्यायपालिका में महिलाओं की संख्या बढ़ानी चाहिए।
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प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण (Training and capacity building):
- मनोबल प्रशिक्षण (Morale training): जांच अधिकारियों, अभियोजन अधिकारियों और चिकित्सा अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रमों को बढ़ाना चाहिए।
- लिंग-संवेदनशील प्रशिक्षण (Gender-sensitive training): अपराध कानून प्रक्रियाओं में लिंग-संवेदनशील प्रशिक्षण और निगरानी को बढ़ावा देना चाहिए ताकि कर्मचारी मामलों को समझदारी से संभाल सकें।
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बलात्कार संकट केंद्रों की स्थापना (Establishment of rape crisis centers):
- केंद्रों की स्थापना (Establishment of centers): ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम आदि देशों की तरह भारत में बलात्कार संकट केंद्र स्थापित किए जा सकते हैं।
- सहायता प्रदान करना (Providing support): ये केंद्र पीड़ितों को चिकित्सा सहायता, परामर्श, और वित्तीय सहायता (जॉब अवसरों के रूप में) प्रदान कर सकते हैं।
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मीडिया की संवेदनशीलता (Media sensitivity):
- पीड़ित की पहचान से बचाव (Avoiding victim identity): मीडिया को बलात्कार पीड़ितों की पहचान उजागर करने से बचना चाहिए।
- सजा पर प्रकाश डालना (Highlighting punishment): मीडिया को उन मामलों पर ध्यान देना चाहिए जहां अपराधी को सजा मिली हो, ताकि दूसरों में निवारण की भावना पैदा हो सके।
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सिविल सोसाइटी की भागीदारी (Active participation of civil society):
- सक्रिय भागीदारी: सिविल सोसाइटी की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है ताकि अपराधों के खिलाफ संघर्ष किया जा सके और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की मदद की जा सके।
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