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भारत के समावेशी विकास में महिलाओं की भूमिका

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संदर्भ:

भारत के समावेशी विकास में महिलाओं की भूमिका: NITI आयोग ने उधारकर्ता से निर्माता तक: भारत की वित्तीय विकास गाथा में महिलाओं की भूमिका रिपोर्ट लॉन्च की, जो महिलाओं की बढ़ती वित्तीय भागीदारी को दर्शाती है।

  • यह रिपोर्ट TransUnion CIBIL, Women Entrepreneurship Platform (WEP), और MicroSave Consulting (MSC) द्वारा प्रकाशित की गई है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर 2024 तक महिलाओं द्वारा अपने क्रेडिट की निगरानी में 42% की वृद्धि देखी गई है।

भारत के समावेशी विकास में महिलाओं की भूमिका

महिला उधारकर्ताओं में वृद्धि: प्रमुख निष्कर्ष:

  1. महिलाओं द्वारा ऋण लेने में निरंतर वृद्धि: 2019 से 2024 के बीच महिलाओं द्वारा क्रेडिट मांग तीन गुना बढ़ी, जो महिलाओं के बीच वित्तीय समावेशन (financial inclusion) को दर्शाती है।
  2. महिला उधारकर्ताओं की जनसांख्यिकी (Demographics):
    • 60% महिला उधारकर्ता अर्ध-शहरी (semi-urban) या ग्रामीण क्षेत्रों से हैं।
    • 30 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं द्वारा लिए गए खुदरा ऋण (retail credit) की हिस्सेदारी मात्र 27% है, जबकि पुरुषों के लिए यह 40% है।
  3. क्रेडिट आपूर्ति प्रवृत्तियाँ (Credit Supply Trends):
    • 2019 के बाद से महिलाओं की बिज़नेस लोन (Business Loans) में हिस्सेदारी 14% और गोल्ड लोन (Gold Loans) में 6% बढ़ी।
    • 2024 में महिलाओं द्वारा लिए गए 42% ऋण व्यक्तिगत वित्त (Personal Finance) के लिए थे, जो 2019 में 39% थे।
    • गोल्ड लोन महिलाओं के बीच सबसे अधिक लोकप्रिय रहा – 2024 में 36% महिलाएँ गोल्ड लोन ले रही हैं, जबकि 2019 में यह सिर्फ 19% था।
  4. क्रेडिट मॉनिटरिंग और जागरूकता में वृद्धि: दिसंबर 2024 तक, 2.7 करोड़ महिलाओं ने CIBIL के माध्यम से अपना क्रेडिट स्कोर और रिपोर्ट मॉनिटर किया, जो क्रेडिट जागरूकता में सुधार को दर्शाता है।

महिलाओं के बढ़ते वित्तीय समावेशन का महत्व

  1. आर्थिक विकास:
    • भारत की आबादी में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 50% है, लेकिन वे GDP में केवल 18% योगदान देती हैं।
    • IMF के अनुसार, महिला उद्यमियों को प्रोत्साहित करने से भारत का GDP 27% तक बढ़ सकता है।
  2. रोजगार सृजन: महिला-स्वामित्व वाले MSMEs स्थानीय स्तर पररोजगार और कौशल विकासमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  3. सामाजिक सशक्तिकरण:
    • महिलाओं के नेतृत्व में उद्यमिता (entrepreneurship) से लैंगिक समानता (gender equality) को बढ़ावा मिलता है।
    • यह महिलाओं की नेतृत्व क्षमता और प्रबंधन कौशल को सिद्ध करता है, जिससे समाज में उनकी स्थिति मजबूत होती है।

महिलाओं को वित्तीय पहुंच में आने वाली चुनौतियाँ

  1. ऋण लेने में झिझक: कर्ज चुकाने का डर और आर्थिक अस्थिरता के कारण कई महिलाएँ ऋण लेने से बचती हैं।
  2. संपार्श्विक और गारंटर की समस्या: 79% महिला-स्वामित्व वाले व्यवसायस्वयं-वित्त पोषित (self-financed) होते हैं और उन्हें औपचारिक ऋण प्राप्त करने में कठिनाई होती है।
  3. खराब बैंकिंग अनुभव: वित्तीय संस्थानों में महिलाओं कोब्यूरोक्रेटिक बाधाओं और सलाहकारी समर्थन की कमी का सामना करना पड़ता है।
  4. महिलाओं के लिए सीमित वित्तीय उत्पाद: कठोर ऋण संरचनाएँ:महिलाओं की विशिष्ट वित्तीय जरूरतों को पूरा नहीं करतीं।
  5. ऋण के लिए तैयारी की कमी: 30% महिला उद्यमियों के पास आवश्यक दस्तावेज और वित्तीय रिकॉर्ड नहीं होते, जिससे उन्हें औपचारिक ऋण मिलने में परेशानी होती है।

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