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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर झारखंड के हज़ारीबाग़ से धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान की शुरुआत की। इस अभियान का कुल परिव्यय 79,156 करोड़ रुपये है, जिसमें केंद्रीय हिस्सा 56,333 करोड़ रुपये और राज्य का हिस्सा 22,823 करोड़ रुपये है।
धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान का उद्देश्य:
- यह अभियान 30 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के जनजातीय बहुल गांवों और आकांक्षी ब्लॉकों में फैला हुआ है, जो 549 जिलों और 2,911 ब्लॉकों में 5 करोड़ से अधिक जनजातीय लोगों को लाभान्वित करेगा।
- इसका उद्देश्य भारत सरकार के 17 मंत्रालयों द्वारा कार्यान्वित 25 प्रयासों के माध्यम से सामाजिक बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, शिक्षा, और आजीविका में कमियों को दूर करना है।
- यह जनजातीय क्षेत्रों और समुदायों के समग्र और सतत विकास को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है।
योजना का विवरण: इस योजना को 18 सितंबर 2024 को कैबिनेट की मंजूरी मिली थी। इसका विकास पीएम-जनमन योजना के अनुभव और सफलताओं के आधार पर किया गया है, जिसे प्रधानमंत्री ने 15 नवंबर 2023 को जनजातीय गौरव दिवस पर लॉन्च किया था। इस योजना का प्राथमिक लक्ष्य विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) की आबादी पर केंद्रित है।
प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महाअभियान : प्रधानमंत्री ने 40 एकलव्य विद्यालयों का उद्घाटन किया और 25 नए EMRS की आधारशिला रखी। इनकी कुल लागत लगभग 2,834 करोड़ रुपये है। इसके अतिरिक्त, पीएम-जनमन के तहत 1,365 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया गया है, जिसमें:
- 1,387 किलोमीटर सड़कें
- 120 आंगनवाड़ी केंद्र
- 250 बहुउद्देश्यीय केंद्र
- 10 स्कूल छात्रावास शामिल हैं।
EMRS की स्थापना:
- 40 नए EMRS के उद्घाटन के साथ, नई योजना के तहत कुल 74 नए EMRS पूरे हो गए हैं।
- यह योजना 2018 में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में शुरू की गई थी, जिसमें 440 एकलव्य स्कूलों की स्थापना का निर्णय लिया गया।
- इस योजना का उद्देश्य उन ब्लॉकों में EMRS स्थापित करना है जहां 50 प्रतिशत या उससे अधिक जनजातीय जनसंख्या है।
शिक्षण और वित्तीय आंकड़े: पिछले 10 वर्षों में इन स्कूलों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 2013-14 में 167 स्वीकृत स्कूल थे, जो 2024-25 में बढ़कर 708 हो गए हैं। वर्तमान में, कुल 1,23,847 छात्र नामांकित हैं, जबकि प्रति छात्र की वार्षिक लागत 1,09,000 रुपये है।
इस योजना से जुड़े विवरणों को देखकर यह स्पष्ट होता है कि सरकार जनजातीय समुदायों के समग्र विकास और शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा कदम उठा रही है।
झारखंड में आदिवासी:
झारखंड भारत के उन राज्यों में से एक है, जहाँ जनजातीय आबादी का महत्वपूर्ण योगदान है। यहाँ की 32 प्रमुख जनजातियों को चार सांस्कृतिक प्रकारों के आधार पर वर्गीकृत किया गया है, जो उनकी आजीविका, पारंपरिक पेशों और सांस्कृतिक विशेषताओं के अनुसार विभाजित हैं।
झारखंड की जनजातियों का वर्गीकरण:
- शिकारी-संग्राहक प्रकार:
- जनजातियाँ: बिरहोर, कोरवा, पहाड़ी खारिया
- विशेषता: ये जनजातियाँ पारंपरिक रूप से जंगलों में शिकार और संग्राहन करके जीवनयापन करती थीं। आधुनिक समय में इनके जीवन में काफी बदलाव आया है, लेकिन ये अब भी जंगल से जुड़ी आजीविका पर निर्भर रहती हैं।
- स्थानांतरित कृषि करने वाली जनजातियाँ:
- जनजातियाँ: सौरिया पहाड़िया
- विशेषता: ये जनजातियाँ एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अस्थायी कृषि करती हैं, जिसे झूम खेती के रूप में जाना जाता है। यह कृषि पद्धति पहाड़ी क्षेत्रों में प्रचलित है।
- साधारण कारीगर:
- जनजातियाँ: महली, लोहरा, करमाली, चिक बड़ाईक
- विशेषता: इन जनजातियों के लोग पारंपरिक रूप से कारीगरी और हस्तशिल्प में निपुण होते हैं। महली जनजाति बाँस से वस्तुएं बनाती है, लोहरा लोहारी का काम करते हैं, जबकि करमाली और चिक बड़ाईक काष्ठ शिल्प और अन्य कारीगरी में विशेषज्ञ होते हैं।
- बसे हुए कृषक:
- जनजातियाँ: संथाल, मुंडा, उराँव, हो, भूमिज
- विशेषता: ये जनजातियाँ कृषि के लिए स्थायी रूप से गाँवों में बसी हुई हैं। संथाल, मुंडा, उराँव और हो जैसी जनजातियाँ मुख्य रूप से खेती-बाड़ी और पशुपालन पर निर्भर हैं।
झारखंड में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या (2001 की जनगणना के अनुसार):
- कुल एसटी जनसंख्या: 7,087,068 (झारखंड की कुल जनसंख्या का 26.3%)
- ग्रामीण जनसंख्या: 91.7% अनुसूचित जनजातियों की आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है।
जिलेवार एसटी आबादी:
- गुमला जिला: सबसे अधिक एसटी जनसंख्या अनुपात (68.4%)
- लोहरदगा और पश्चिमी सिंहभूम: यहाँ की आधे से अधिक आबादी अनुसूचित जनजाति से है।
- रांची और पकौर जिले: यहाँ एसटी आबादी 41.8% से 44.6% तक है।
- कोडरमा: सबसे कम एसटी आबादी (0.8%)
- चतरा: एसटी आबादी का अनुपात (3.8%)
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