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पृथ्वी को ठंडा करने के लिए हीरे के चूर्ण का छिड़काव: अध्ययन का प्रस्ताव

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हालिया अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि वैश्विक तापमान को कम करने और ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में प्रतिवर्ष लाखों टन हीरे का चूर्ण छिड़का जाना चाहिए। इसके साथ ही, अन्य यौगिक जैसे सल्फर, कैल्शियम, एल्युमीनियम और सिलिकॉन भी सौर विकिरण को परावर्तित करने के लिए प्रस्तावित किए गए हैं। एक वैकल्पिक प्रस्ताव के तहत, सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करने के लिए अंतरिक्ष में दर्पण स्थापित करने की बात की गई है।

जियोइंजीनियरिंग की परिभाषा: जियोइंजीनियरिंग का मतलब है वैश्विक तापमान वृद्धि को कम करने के लिए पृथ्वी की जलवायु में बड़े पैमाने पर परिवर्तन करना। इसके दो मुख्य प्रकार हैं:

  1. सौर विकिरण प्रबंधन (एसआरएम): यह सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी से दूर परावर्तित करता है।
  2. कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (सीडीआर): यह वायुमंडल से CO₂ को हटाने की प्रक्रिया है।

वर्तमान भू-इंजीनियरिंग प्रयास:

  • सौर विकिरण प्रबंधन (एसआरएम): यह प्रयास ज्वालामुखी विस्फोटों से प्रेरित हैं, जैसे कि 1991 में माउंट पिनातुबो के विस्फोट से निकलने वाले सल्फर डाइऑक्साइड से होने वाले प्रभावों की नकल करना।
  • अध्ययन में पाया गया है कि हीरे का चूरा एसआरएम में अन्य सामग्रियों की तुलना में अधिक प्रभावी हो सकता है।
  • तापमान को 1.6°C तक कम करने के लिए प्रतिवर्ष लगभग 5 मिलियन टन हीरे का छिड़काव करना आवश्यक होगा।

अन्य जियोइंजीनियरिंग तकनीकें:

  1. कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS): यह तकनीक CO₂ को स्रोत पर कैप्चर कर भूमिगत रूप से संग्रहीत करती है।
  2. प्रत्यक्ष वायु संग्रहण (DAC): यह “कृत्रिम पेड़” तकनीक है, जो परिवेशी वायु से CO₂ को निकालकर उसे संग्रहीत या उपयोग करती है।
  3. महासागर निषेचन: महासागरीय खाद्य उत्पादन बढ़ाने और वायुमंडल से CO₂ को हटाने के लिए महासागरों में पोषक तत्वों को डालने का कार्य।
  4. स्ट्रेटोस्फेरिक एरोसोल इंजेक्शन (SAI): यह तकनीक सूर्य की ऊष्मा को परावर्तित करने के लिए समताप मंडल में गैसों को पंप करती है।
  5. समुद्री बादल चमकाना (MCB): समुद्री नमक या अन्य कणों को समुद्री बादलों में छिड़ककर उन्हें अधिक परावर्तक बनाना।

चुनौतियाँ एवं चिंताएँ:

तकनीकी एवं वित्तीय चुनौतियाँ

  1. उच्च लागत: सौर विकिरण प्रबंधन (एसआरएम) की तकनीकी और वित्तीय मांगें बहुत अधिक हैं।
    • अनुमानित है कि नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता को प्राथमिकता देने की तुलना में कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (सीसीएस) का व्यापक रूप से उपयोग करने पर 2050 तक लगभग 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर अधिक खर्च हो सकता है।
  2. संरचनात्मक अवसंरचना: सीसीएस की सफलता के लिए सुरक्षित और पर्याप्त संख्या में भूमिगत भंडारण स्थलों की आवश्यकता होती है। यदि ये स्थलों की उपलब्धता कम है, तो अकेले सीसीएस पर भारी निर्भरता टिकाऊ नहीं हो सकेगी।

संभावित जोखिम:

  1. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: एसआरएम तकनीकों के उपयोग से अनजाने में मौसम के पैटर्न में बदलाव आ सकता है, जिससे:
    • वर्षा के वितरण में परिवर्तन हो सकता है।
    • कृषि उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • जैव विविधता को हानि हो सकती है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो सकता है।
  2. विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अस्थिरता: नए तकनीकी समाधान अपनाने में अनुसंधान एवं विकास की उच्च लागत और समय लग सकता है, जिससे तत्काल प्रभावी समाधान प्रदान करने में देरी हो सकती है।

तात्कालिकता और उत्सर्जन लक्ष्य:

  1. वैश्विक तापमान वृद्धि:
    • प्रयासों के बावजूद, वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.2°C अधिक है।
    • 2023 तक, यह वृद्धि लगभग 1.45°C तक पहुँचने की संभावना है।
  2. पेरिस समझौते का लक्ष्य:
    • पेरिस समझौते के अनुसार, तापमान को 1.5°C से नीचे सीमित करना आवश्यक है।
    • इसे प्राप्त करने के लिए 2030 तक उत्सर्जन में 43% की कटौती करनी होगी, जबकि वर्तमान कार्यवाही से केवल 2% की कटौती ही संभव हो पा रही है।
  3. सीसीएस/सीडीआर की भूमिका:
    • कार्बन कैप्चर और डायरेक्ट एयर कैप्चर (सीडीआर) जैसी प्रौद्योगिकियाँ 1.5°C या 2°C के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक मानी जाती हैं।
    • इनके बिना, वैश्विक तापमान को नियंत्रित करना और जलवायु परिवर्तन से निपटना अत्यंत कठिन हो जाएगा।

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