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बीज विधेयक 2025 (Draft Seeds Bill 2025) | Apni Pathshala

Draft Seeds Bill 2025

Draft Seeds Bill 2025

संदर्भ:

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने वर्तमान कृषि एवं नियामक आवश्यकताओं के अनुरूप बीज विधेयक, 2025 का मसौदा तैयार किया है। जिस पर लोगों से फीडबैक मांगा गया है।

बीज विधेयक 2025 के मुख्य प्रावधान:

  • प्रस्तावित नियामक संरचना: नए बीज विधेयक में बीज मूल्य श्रृंखला के सभी सहभागी—किसान, डीलर, वितरक और उत्पादक—को स्पष्ट रूप से वर्गीकृत किया गया है। इससे उत्पादन, वितरण और बिक्री में नियामक जिम्मेदारियों का स्पष्ट विभाजन सुनिश्चित होता है। विधेयक के तहत दो प्रमुख संवैधानिक निकाय प्रस्तावित हैं:

  1. केंद्रीय बीज समिति (Central Seed Committee) – 27 सदस्यीय यह समिति बीजों के अंकुरण, आनुवंशिक और भौतिक शुद्धता, गुण प्रदर्शन और बीज स्वास्थ्य से संबंधित मानक निर्धारित करेगी।

  2. राज्य बीज समितियाँ (State Seed Committees) – 15 सदस्यीय ये समितियाँ राज्य सरकारों को बीज उत्पादकों, डीलरों, नर्सरी और प्रसंस्करण इकाइयों के पंजीकरण में सलाह देंगी।

  • पंजीकरण और गुणवत्ता नियंत्रण: विधेयक के अनुसार सभी बीज प्रसंस्करण इकाइयों का राज्य स्तर पर पंजीकरण अनिवार्य होगा। केंद्रीय बीज समिति के अंतर्गत एक राष्ट्रीय बीज विविधता पंजीयक (National Seed Variety Register) की स्थापना प्रस्तावित है, जो VCU (Value for Cultivation and Use) परीक्षणों के माध्यम से बीजों के प्रदर्शन और उपयुक्तता को मानकीकृत करेगा। साथ ही, बीज निरीक्षकों को सर्च और सीज़िंग अधिकार प्रदान किए जाएंगे।

  • अपराध और दंड प्रावधान: नए मसौदा विधेयक में अपराधों को तृतीयक, लघु और प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया गया है। बीज की गलत ब्रांडिंग, निम्न गुणवत्ता वाले बीज का वितरण और धोखाधड़ी जैसी गतिविधियों पर कड़ी दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी। 

  • किसानों के अधिकार और सुरक्षा: विधेयक किसानों के पारंपरिक अधिकारों को सुरक्षित करता है—कृषि बीज का संग्रहण, उपयोग, विनिमय और बिक्री (ब्रांड नाम के तहत नहीं)। यह PPV&FR Act 2001 के अनुरूप है, जिससे बीज गुणवत्ता मानक, पौध विविधता संरक्षण और किसानों के अधिकारों में सामंजस्य सुनिश्चित होता है। 

संबंधित चिंताएँ:

कई किसान संगठन, जैसे अखिल भारतीय किसान सभा, ने इस विधेयक पर आपत्तियाँ उठाई हैं। वे चिंतित हैं कि यह बड़ी बीज कंपनियों के बाजार वर्चस्व को बढ़ा सकता है, जिससे कीमतों में वृद्धि और छोटे उत्पादकों की कठिनाई हो सकती है। साथ ही, विधेयक में केंद्रीकरण अधिक होने से जैव विविधता और बीज संप्रभुता पर असर पड़ सकता है।

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