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भारत का निर्वाचन आयोग

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने सुखबीर संधू और ज्ञानेश कुमार को निर्वाचन आयुक्त (Election Commissioner- EC) नियुक्त किया।

  • इससे पहले अनूप चंद्र पांडे 14 फरवरी, 2024 को रिटायर हो गए तथा 8 मार्च, 2024 को अरुण गोयल ने अचानक पद से इस्तीफा दे दिया।

भारत निर्वाचन आयोग (ECI) –

  • भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं के संचालन के लिये एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है।
  • इसकी स्थापना 25 जनवरी, 1950 को संविधान के अनुसार की गई थी। आयोग ने अपना स्वर्ण जयंती वर्ष 2001 में मनाया था। आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में स्थित है।
  • यह भारत में लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं, देश के राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के चुनावों का संचालन करता है।
  • इसका राज्यों में पंचायतों और नगरपालिकाओं के चुनावों से कोई संबंध नहीं है। भारत के संविधान में इसके लिये एक अलग राज्य निर्वाचन आयोग (State Election Commission) का प्रावधान है।
  • चुनाव आयोग का सबसे बड़ा अधिकारी मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) होता है और उनके बाद अन्य दो चुनाव आयुक्त (EC) होते हैं।
  • लोकसभा चुनाव या विधानसभा चुनाव का ऐलान होने के बाद आचार संहिता लागू होती है और फिर पूरे प्रशासनिक मशीनरी की जिम्मेदारी चुनाव आयोग के हाथों में आ जाती है।
  • ट्रांसफर से लेकर पोस्टिंग तक चुनाव आयोग के आदेश पर होती है।
  • राज्य में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं।

ECI की संरचना –

  • प्रारम्भ में, आयोग में केवल एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त थे।
  • 16 अक्तूबर, 1989 को पहली बार दो अतिरिक्त आयुक्तों की नियुक्ति की गई थी परन्तु उनका कार्यकाल बहुत कम था जो 01 जनवरी, 1990 तक चला।
  • तत्पश्चात, 01 अक्तूबर, 1993 को दो अतिरिक्त निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की गई थी।
  • तब से आयोग की बहु-सदस्यीय अवधारणा प्रचलन में है, जिसमें निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जाता है।
  • वर्तमान में इसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्त हैं।

संवैधानिक प्रावधान –

  • भारतीय संविधान का भाग XV (अनुच्छेद 324-329): यह चुनावों से संबंधित हैं, और यह इनसे संबंधित मामलों के लिये एक अलग आयोग की स्थापना करता है।
  • अनुच्छेद 324: निर्वाचन आयोग में चुनावों के संदर्भ में निहित दायित्व हैं- अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण।
  • अनुच्छेद 325: धर्म, जाति या लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति विशेष को मतदाता सूची में शामिल न करने और इनके आधार पर मतदान के लिये अयोग्य नहीं ठहराने का प्रावधान।
  • अनुच्छेद 326: लोकसभा एवं प्रत्येक राज्य की विधानसभा के लिये निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा।
  • अनुच्छेद 327: विधायिका द्वारा चुनाव के संबंध में संसद में कानून बनाने की शक्ति।
  • अनुच्छेद 328: किसी राज्य के विधानमंडल को उनके चुनाव के लिये कानून बनाने की शक्ति।
  • अनुच्छेद 329: निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन।

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति –

वर्तमान में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम 2023 के प्रावधानों के तहत की जाती है। इससे पहले इनकी नियुक्ति (चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तें और कार्य संचालन) एक्ट, 1991के तहत की जाती थी।

चुनाव आयोग –

  • संविधान के अनुच्छेद324 के अनुसार, चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और उतने ही अन्य चुनाव आयुक्त (EC ) होते हैं, जितने राष्ट्रपति तय करें।
  • CEC और अन्य EC की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • CEC और अन्य EC की नियुक्ति चयन समिति के सुझावों पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।

चयन समिति(सिलेक्शन कमिटी) –

  • चयन समिति में निम्नलिखित शामिल होंगे:
    1. अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री,
    2. सदस्य के रूप में लोकसभा में विपक्ष के नेता, और
    3. प्रधानमंत्री द्वारा सदस्य के रूप में नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री।
    4. अगर लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता नहीं दी गई है तो लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता इस भूमिका में होगा।

खोजबीन समिति (सर्च कमिटी) –

  • चयन समिति पर विचार करने के लिए खोजबीनसमिति पांच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करेगी।
  • खोजबीन समिति की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे।
  • इसमें दो अन्य सदस्य होंगे जो केंद्र सरकार के सचिव स्तर से नीचे के नहीं होंगे।
  • उनके पास चुनाव से संबंधित मामलों का ज्ञान और अनुभव होना चाहिए।
  • चयन समिति उन उम्मीदवारों पर भी विचार कर सकती है जिन्हें खोजबीन समिति द्वारा तैयार पैनल में शामिल नहीं किया गया है।

CEC और EC की योग्यता –

  • जो व्यक्ति केंद्र सरकार के सचिव के पद के बराबर पद पर हैं या ऐसे पद पर रह चुके हैं,वे CEC और EC के रूप में नियुक्त होने के पात्र होंगे।
  • ऐसे व्यक्तियों के पास चुनाव प्रबंधन और संचालन में विशेषज्ञता होनी चाहिए।

वेतन और भत्ते –

  • CEC और अन्य EC का वेतन, भत्ते और सेवा शर्तें कैबिनेट सचिव के समान होंगी।
  • इससे पहले 1991 के एक्टके अनुसार EC का वेतन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होता था।

कार्यावधि –

  • CEC और अन्य EC छह वर्ष की अवधि के लिए या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, पद पर बने रहेंगे।
  • अगर किसी EC को CEC नियुक्त किया जाता है तो उसका कुल कार्यकाल छह वर्ष से अधिक नहीं हो सकता।
  • इसके अलावा CEC और अन्य EC पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होंगे।

कार्य संचालन –

  • चुनाव आयोग के सभी कार्यों को सर्वसम्मति से संचालित किया जाएगा।
  • किसी भी मामले पर CEC और अन्य EC के बीच मतभेद की स्थिति में उसका निर्णय बहुमत के माध्यम से किया जाएगा।

पद से हटाना और त्यागपत्र –

  • संविधान के अनुच्छेद324 के तहत CEC को केवल सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान तरीके से ही उसके कार्यालय से हटाया जा सकता है।
  • यह राष्ट्रपति के एक आदेश के माध्यम से किया जाता है जो एक ही सत्र में संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव पर आधारित होता है।
  • CEC को पद से हटाए जाने के प्रस्ताव को निम्नलिखित के साथ अपनाया जाना चाहिए:
    • (i) प्रत्येक सदन की कुल सदस्यता का बहुमत समर्थन और
    • (ii) उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का कम से कम दो-तिहाई समर्थन।
  • किसी EC को केवल CEC के सुझावों पर ही पद से हटाया जा सकता है।
  • CEC और अन्य EC राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र सौंप सकते हैं।

निर्वाचन आयोग के कार्य –

  • चुनाव आयोग भारत में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव की संपूर्ण प्रक्रिया का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण करता है।
  • इसका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य आम चुनाव या उप-चुनाव कराने के लिये समय-समय पर चुनाव कार्यक्रम तय करना है।
  • यह निर्वाचक नामावली (Voter List) तैयार करता है तथा मतदाता पहचान पत्र (EPIC) जारी करता है।
  • यह मतदान एवं मतगणना केंद्रों के लिये स्थान, मतदाताओं के लिये मतदान केंद्र तय करना, मतदान एवं मतगणना केंद्रों में सभी प्रकार की आवश्यक व्यवस्थाएँ और अन्य संबद्ध कार्यों का प्रबंधन करता है।
  • यह राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करता है उनसे संबंधित विवादों को निपटाने के साथ ही उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित करता है।
  • निर्वाचन के बाद अयोग्य ठहराए जाने के मामले में आयोग के पास संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों की बैठक हेतु सलाहकार क्षेत्राधिकार भी है।
  • यह राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिये चुनाव में ‘आदर्श आचार संहिता’ जारी करता है, ताकि कोई अनुचित कार्य न करे या सत्ता में मौजूद लोगों द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग न किया जाए।
  • यह सभी राजनीतिक दलों के लिये प्रति उम्मीदवार चुनाव अभियान खर्च की सीमा निर्धारित करता है और उसकी निगरानी भी करता है।

बजट एवं व्यय –

  • आयोग सचिवालय का अपना एक स्वतंत्र बजट होता है जिसे आयोग और संघ सरकार के वित्त मंत्रालय के परामर्श से अंतिम रूप दिया जाता है।
  • वित्त मंत्रालय सामान्य रूप से आयोग के बजट हेतु इसकी संस्तुतियों को स्वीकार कर लेता है।
  • तथापि, निर्वाचनों के वास्तविक संचालन पर मुख्य व्यय, संघ राज्यों तथा संघ शासित क्षेत्रों की संबंधित घटक इकाइयों के बजट में शामिल किया जाता है।
  • यदि निर्वाचन केवल लोक सभा के लिए ही करवाए जाते हैं तो व्यय समग्र रूप से संघ सरकार द्वारा वहन किया जाता है जबकि केवल राज्य विधान मंडल के लिए करवाए जाने वाले निर्वाचनों के लिए सारा व्यय संबंधित राज्य द्वारा वहन किया जाता है।
  • संसदीय एवं राज्य विधान मंडल के निर्वाचन साथ-साथ होने की स्थिति में, केन्द्र एवं राज्य सरकार के बीच व्यय की समान रूप से हिस्सेदारी होती है।
  • पूंजीगत उपस्कर, निर्वाचक नामावलियों को तैयार करने संबंधी व्यय तथा निर्वाचकों के पहचान पत्रों संबंधी योजना का व्यय भी समान रूप से बांट लिया जाता है।

कार्यकारी हस्तक्षेप से मुक्त –

  • अपने कार्यों के निष्‍पादन में, निर्वाचन आयोग कार्यकारी हस्तक्षेप से मुक्त है।
  • आयोग ही निर्वाचनों के संचालन के लिए निर्वाचन कार्यक्रम के बारे में निर्णय लेता है चाहे वह साधारण निर्वाचन हो या उप निर्वाचन।
  • पुनः, आयोग ही मतदान केन्द्रों की अवस्थिति, मतदान केन्द्रों के अनुसार मतदाताओं का आबंटन, मतगणना केन्द्रों की अवस्थिति, मतदान केन्द्रों एवं उसके आस-पास किए जाने वाले प्रबंधों और मतगणना केंद्रों तथा सभी संबंधित मामलों पर निर्णय लेता है।

राजनीतिक दल एवं आयोग –

  • राजनीतिक दल विधि के अधीन निर्वाचन आयोग के साथ पंजीकृत हैं।
  • आयोग उन पर सामयिक अंतरालों पर संगठन संबंधी निर्वाचन करवाने हेतु जोर देकर उनके कामकाज में आंतरिक दलीय लोकतंत्र सुनिश्चित करता है।
  • निर्वाचन आयोग के साथ इस प्रकार पंजीकृत राजनैतिक दलों को निर्वाचन आयोग, अपने द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुसार, साधारण निर्वाचनों में राजनैतिक दलों के मतदान प्रदर्शन के आधार पर राज्यीय एवं राष्‍ट्रीय स्तर की मान्यता प्रदान करता है।
  • आयोग, अपने अर्ध-न्यायिक अधिकार क्षेत्र के भाग के रूप में, ऐसे मान्यता प्राप्त दलों से अलग हुए दलों के बीच के विवादों का भी निपटान करता है।
  • निर्वाचन आयोग, राजनीतिक दलों की सहमति से तैयार की गई आदर्श आचार संहिता का उनके द्वारा कड़ाई से अनुपालन करवाकर निर्वाचन मैदान में राजनीतिक दलों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करता है।
  • आयोग राजनीतिक दलों के साथ आवधिक रूप से निर्वाचनों के संचालन संबंधी मामलों एवं आदर्श आचार संहिता के अनुपालन और आयोग द्वारा निर्वाचन संबंधी मामलों पर प्रस्तावित नए उपायों को लागू करने पर विचार विमर्श करता है।

भारत निर्वाचन आयोग का महत्त्व –

  • यह वर्ष 1952 से राष्ट्रीय और राज्य स्तर के चुनावों का सफलतापूर्वक संचालन कर रहा है। मतदान में लोगों की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये सक्रिय भूमिका निभाता है।
  • राजनीतिक दलों को अनुशासित करने का कार्य करता है।
  • संविधान में निहित मूल्यों को मानता है अर्थात चुनाव में समानता, निष्पक्षता, स्वतंत्रता स्थापित करता है।
  • विश्वसनीयता, निष्पक्षता, पारदर्शिता, अखंडता, जवाबदेही, स्वायत्तता और कुशलता के उच्चतम स्तर के साथ चुनाव आयोजित/संचालित करता है।
  • मतदाता-केंद्रित और मतदाता-अनुकूल वातावरण की चुनावी प्रक्रिया में सभी पात्र नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करता है।
  • चुनावी प्रक्रिया में राजनीतिक दलों और सभी हितधारकों के साथ संलग्न रहता है।
  • हितधारकों, मतदाताओं, राजनीतिक दलों, चुनाव अधिकारियों, उम्मीदवारों के बीच चुनावी प्रक्रिया और चुनावी शासन के बारे में जागरूकता पैदा करता है तथा देश की चुनाव प्रणाली के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ाने और उसे मज़बूती प्रदान करने का कार्य करता है।

Disclaimer: The article may contain information pertaining to prior academic years; for further information, visit the exam’s official or concerned website.

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