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भारत का बाह्य प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (India Outward FDI) | Ankit Avasthi Sir

India Outward FDI

India Outward FDI

संदर्भ:

RBI के आंकड़ों के मुताबिक, 2024-25 में भारत का लगभग 56% outward FDI ऐसे देशों में निवेशित हुआ जहाँ कर दरें कम हैं। प्रमुख गंतव्य देशों में सिंगापुर, मॉरीशस, UAE, नीदरलैंड, यूके और स्विट्ज़रलैंड शामिल हैं।

बाहरी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Outward FDI) रुझान:

मुख्य आँकड़े (2023–24):

  • कुल ₹3,488.5 करोड़ के Outward FDI में से ₹1,946 करोड़ (56%) टैक्स हेवन्स (low-tax jurisdictions) में गया।
  • प्रमुख गंतव्य: सिंगापुर (22.6%), मॉरीशस (10.9%), और यूएई (9.1%) – तीनों मिलकर कुल निवेश का 40% से अधिक।

टैक्स हेवन्स की ओर रुझान के कारण:

  1. बीच का ठिकाना: ये देश Special Purpose Vehicles (SPVs) के रूप में काम करते हैं, जिससे कंपनियों का वैश्विक विस्तार आसान होता है।
  2. कर दक्षता: हिस्सेदारी (stake) कम करने या फंड ट्रांसफर के समय कम टैक्स देना पड़ता है।
  3. निवेशकों की पसंद: वैश्विक साझेदारों को सीधे भारत में निवेश कराने से आसान है सिंगापुर/मॉरीशस जैसे देशों के माध्यम से निवेश कराना।
  4. नियामकीय सुरक्षा: भारतीय पैरेंट कंपनी को घरेलू नियमों और अनुपालन (compliance) जोखिम से बचाता है।
  5. सुविधा: भारत की तुलना में इन देशों के कानून लचीले हैं और फंड का आवागमन तेज़ी से हो सकता है।
  6. पूंजी जुटाने का लाभ: ऐसे देशों में पूंजी जुटाना (capital raising) अपेक्षाकृत आसान होता है।
  7. वैश्विक प्रचलन: दुनिया की बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भी इन टैक्स हेवन्स का इसी तरह उपयोग करती हैं।

बाहरी FDI के प्रभाव:

सकारात्मक प्रभाव (Positive Implications)

  1. भारतीय कंपनियों का वैश्विक विस्तार (Global Expansion):
    • सिंगापुर या मॉरीशस के रास्ते निवेश करने से भारतीय कंपनियाँ Special Purpose Vehicles (SPVs) बनाकर अंतरराष्ट्रीय हब स्थापित कर सकती हैं।
    • उदाहरण: Infosys और Bharti Airtel ने एशिया-प्रशांत (Asia-Pacific) संचालन के लिए सिंगापुर स्थित सहायक कंपनियाँ बनाई हैं।
  2. साझेदारी और विदेशी पूंजी तक पहुँच (Joint Ventures & Foreign Capital):
    • टैक्स हेवन्स, जहाँ द्विपक्षीय निवेश संधियाँ और स्थिर कानूनी ढाँचा मौजूद होता है, वहाँ विदेशी साझेदार और वेंचर कैपिटल लाना आसान होता है।
    • उदाहरण: कई Indo–U.S. और Indo–European संयुक्त उपक्रम (Joint Ventures) सिंगापुर के माध्यम से संरचित किए जाते हैं क्योंकि वहाँ कानूनी प्रक्रियाएँ सरल हैं।
  1. विदेशी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धात्मक संतुलन:
  • चूँकि अन्य देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भी लो-टैक्स देशों का उपयोग करती हैं, इसलिए भारतीय कंपनियों को भी प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए ऐसा करना पड़ता है।

बाहरी FDI के प्रभाव (Implications):

  1. टैक्स नीति संबंधी चिंताएँ:
  • टैक्स हेवन्स के उपयोग से राउंडट्रिपिंग (भारतीय पैसा वापस भारत में निवेश बनकर लौटना) और बेस इरोशन (कर आधार का क्षरण) जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • इससे कर राजस्व पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
  1. पूंजी की दक्षता (Capital Efficiency):
  • वैश्विक पूंजी बाज़ारों तक पहुँच आसान होती है।
  • कंपनियाँ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रॉसबॉर्डर डील्स और अधिग्रहण (acquisitions) आसानी से कर पाती हैं।
  1. नियामकीय प्रभाव (Regulatory Impact):
  • यह प्रवृत्ति भारत के FDI नियमों और टैक्स संधियों (tax treaties) को और स्पष्ट तथा कड़ा बनाने की ज़रूरत को दर्शाती है।
  • सही ढाँचा न होने पर दुरुपयोग (misuse) की संभावना बढ़ जाती है।
  1. प्रतिस्पर्धात्मकता (Competitiveness):
  • टैक्स हेवन्स भारतीय कंपनियों को उच्च टैरिफ और जटिल नियमों से बचने का विकल्प देते हैं।
  • इससे वे वैश्विक बाज़ार में अपनी मौजूदगी और प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति मज़बूत बना पाती हैं।

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