Noise Pollution
संदर्भ:
भारतीय शहरों में शहरी शोर प्रदूषण एक उपेक्षित सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बनता जा रहा है। अधिकांश क्षेत्रों, खासकर स्कूलों और अस्पतालों जैसी संवेदनशील जगहों के पास, ध्वनि स्तर अक्सर अनुमेय सीमा से अधिक पाए जाते हैं। इसके मौन लेकिन गंभीर प्रभाव: जैसे तनाव, उच्च रक्तचाप और नींद में बाधा—लोगों के स्वास्थ्य के लिए एक छिपा हुआ खतरा बनकर उभर रहे हैं।
शोर प्रदूषण (Noise Pollution):
शोर प्रदूषण वह स्थिति है जब वातावरण में अत्यधिक या बाधित करने वाली ध्वनियाँ मौजूद होती हैं, जो मानव और पशु दोनों के स्वास्थ्य एवं कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
- यह पर्यावरण प्रदूषण का एक रूप है, जिसमें परिवहन, निर्माण कार्य और औद्योगिक गतिविधियों जैसी स्रोतों से उत्पन्न अनचाही, तेज़ और अनियमित ध्वनियाँ शामिल होती हैं।
- इसके परिणामस्वरूप मनुष्यों में सुनने की क्षमता में कमी, तनाव, और नींद संबंधी विकार देखने को मिलते हैं, जबकि वन्यजीवों के लिए यह उनकी संचार और प्रवासन प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करता है।
शहरी शोर के स्रोत:
- यातायात जाम:हॉर्न बजाना, इंजन की आवाज़ और रोड रेज।
- निर्माण कार्य:देर रात ड्रिलिंग, क्रेन संचालन और पाइल ड्राइविंग, नियमों के बावजूद जारी।
- सार्वजनिक आयोजन:धार्मिक और राजनीतिक सभाओं में लाउडस्पीकर का अति प्रयोग।
- पटाखे:त्योहारों और रैलियों में अनुमेय सीमा से अधिक शोर।
- डीजल जनरेटर:बिजली कटौती के समय उपयोग, जो उच्च डेसिबल स्तर का शोर पैदा करते हैं।
प्रभाव:
- स्वास्थ्य पर असर:
- उच्च रक्तचाप (Hypertension), नींद संबंधी विकार, सुनने की क्षमता में कमी और हृदय पर दबाव।
- लंबे समय तक शोर के संपर्क में रहने से चिंता, थकान और एकाग्रता में कमी।
- बच्चे और बुजुर्ग विशेष रूप से मानसिक और विकासात्मक समस्याओं के शिकार।
- पर्यावरण पर असर:
- जानवरों के व्यवहार, प्रजनन पैटर्न और शहरी हरित क्षेत्रों में आवास उपयोग में बदलाव।
भारत में शोर प्रदूषण रोकने के लिए उठाए गए कदम:
- कानूनी ढांचा (Legal Framework):
- Noise Pollution (Regulation and Control) Rules, 2000 कोEnvironment (Protection) Act, 1986 के तहत लागू किया गया।
- इसमें औद्योगिक, वाणिज्यिक, आवासीय और साइलेंस जोन के लिए अलग-अलग शोर की सीमा निर्धारित की गई है।
- राष्ट्रीय परिवेशी शोर निगरानी नेटवर्क:
- 2011 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने इसे शुरू किया।
- इसका उद्देश्य रियल-टाइम शोर डेटा इकट्ठा करना था।
- लेकिन यह ज़्यादातरडेटा स्टोरेज की तरह काम करता है, नीतिगत उपयोग कम होता है।
- सेंसर की गलत लोकेशन और जवाबदेही की कमी भी एक समस्या है।
- न्यायिक हस्तक्षेप:
- सर्वोच्च न्यायालय ने रात10 बजे के बाद लाउडस्पीकर के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया।
- पटना उच्च न्यायालय ने स्कूलों, अस्पतालों और कॉलेजों के आसपासहॉर्न–फ्री ज़ोन घोषित किए।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने त्योहारों के दौरानविशेष निगरानी के आदेश दिए।
आगे की राह (Way Forward)
- शहरों में शोर की स्थिति: दिल्ली, बेंगलुरु और मुंबई जैसे शहरों में परिवेशी शोर स्तर (Ambient Noise Levels) नियमित रूप से अनुमेय सीमा से अधिक पाए जाते हैं।
- कानून और प्रवर्तन को मज़बूत करना: प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कोरियल–टाइम डेटा और कानूनी अधिकार देकर प्रवर्तन (Enforcement) को प्रभावी बनाया जाए।
- शहरी नियोजन में सुधार: शोरगुल वाले और संवेदनशील क्षेत्रों (जैसे स्कूल, अस्पताल) के बीचबफ़र ज़ोन बनाए जाएं।
स्वास्थ्य खतरों और कानूनी दंड के बारे में जन–जागरूकता अभियान चलाए जाएं।