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सुप्रीम कोर्ट ने वोट देने के लिए रिश्वत लेने वाले सांसदों की छूट समाप्त की

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (SC) ने 4 मार्च 2024 को अपने एक अहम फैसले में ‘पीवी नरसिम्हा राव बनाम भारत गणराज्य’ (1998) मामले में दिए गए निर्णय को पलट दिया। सांसदों और विधायकों के विशेषाधिकार से जुड़े इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि संसद, विधानमंडल में भाषण या वोट के लिए रिश्वत लेना सदन के विशेषाधिकार के दायरे में नहीं आएगा।

विषय सूची:

  1. पीवी नरसिम्हा राव बनाम भारत गणराज्य‘ (1998) मामला
  2. सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में क्या फैसला सुनाया
  3. संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2)
  4. अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है?
  5. फिर से कैसे शुरू हुआ मामला?
  6. अब (4 मार्च, 2024) को सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया हैं?
  7. संसदीय विशेषाधिकार
  8. परीक्षाओं में पूछें गए प्रश्न

पीवी नरसिम्हा राव बनाम भारत गणराज्य‘ (1998) मामला :

  • पी.वी. नरसिम्हा राव मामला 1993 के झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) रिश्वतखोरी मामले को संदर्भित करता है।
  • 26 जुलाई, 1993 को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) के सांसद अजॉय मुखोपाध्याय ने प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया।
  • उस समय लोकसभा में 528 सदस्य थे, जिसमें कांग्रेस (आई) की संख्या 251 थी।
  • इसका मतलब था कि पार्टी के पास साधारण बहुमत के लिए 13 सदस्य कम थे।
  • अविश्वास प्रस्ताव पर तीन दिन तक बहस चलती रही। उस साल 28 जुलाई को जब अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई तब पक्ष में 251 और विपक्ष में 265 वोट पड़े। यानी अविश्वास प्रस्ताव 14 वोटों से गिर गया।
  • नरसिम्हा राव की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार इस अविश्वास प्रस्ताव से खुद को बचा ले गई।
  • इस मामले में शिबू सोरेन और उनकी पार्टी के कुछ सांसदों पर तत्कालीन पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध वोट करने के लिये रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में क्या फैसला सुनाया –

  • सुप्रीम कोर्ट ने तब 3-2 के बहुमत से फैसला सुनाया जिसका सारांश यह था कि संसदीय विशेषाधिकार के तहत विधायकों-सांसदों को संसद और विधानमंडल में अपने भाषण और वोटों के लिए रिश्वत लेने के मामले में आपराधिक मुकदमे से छूट होगी।
  • जस्टिस एसपी भरूचा ने जस्टिस राजेंद्र बाबू और जस्टिस जीएन राय के साथ मिलकर बहुमत का फैसला लिखा था।
  • जस्टिस भरूचा ने इसके लिए आर्टिकल 105 (2) का हवाला दिया था, जिसके मुताबिक, “संसद या राज्य के विधानमंडल का कोई भी सदस्य सदन में कही गई कोई बात, सदन में दिए गए वोट को लेकर किसी भी अदालत में जवाबदेह नहीं होगा। साथ ही संसद या विधानमंडल की किसी भी रिपोर्ट या पब्लिकेशन को लेकर भी किसी व्यक्ति की किसी भी अदालत में जवाबदेही नहीं होगी।”
  • आर्टिकल 105 (2) संसद के लिए प्रावधान करता है, वहीं 194 (2) राज्य विधानमंडलों के लिए होता है।

संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2):

अनुच्छेद 105(2):

  • संसद का कोई भी सदस्य प्रतिनिधि सभा या उसकी किसी समिति में कही गई किसी भी बात या दिये गए मत के संबंध में किसी भी न्यायालय में किसी भी कार्यवाही के अधीन नहीं होगा और कोई भी व्यक्ति संसद के किसी भी सदन द्वारा या उसके अधिकार के तहत कोई रिपोर्ट, पेपर, वोट या कार्यवाही के प्रकाशन के संबंध में इस तरह के दायित्व के अधीन नहीं होगा।
  • अनुच्छेद 105(2) का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संसद के सदस्य, परिणामों के डर के बिना अपने कर्त्तव्यों का पालन कर सकें।

अनुच्छेद 194(2):

  • किसी राज्य के विधानमंडल का कोई भी सदस्य विधानमंडल या उसकी किसी समिति में कही गई किसी बात या दिये गए वोट के संबंध में किसी भी न्यायालय में किसी भी कार्यवाही के लिये उत्तरदायी नहीं होगा और विधानमंडल के सदन के अधिकार के तहत कोई भी व्यक्ति किसी भी रिपोर्ट, पेपर, वोट या कार्यवाही के ऐसे प्रकाशन के संबंध में उत्तरदायी नहीं होगा।

अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है?

जब लोकसभा में किसी विपक्षी पार्टी को लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है या सदन में सरकार विश्वास खो चुकी है तो वह अविश्वास प्रस्ताव लाती है। इसे No Confidence Motion भी कहते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-75 में कहा गया है कि केंद्रीय मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति जवाबदेह है, अर्थात् इस सदन में बहुमत हासिल होने पर ही मंत्रिपरिषद बनी रह सकती है। इसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर प्रधानमंत्री सहित मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना होता है।

फिर से कैसे शुरू हुआ मामला?

  • दरअसल, नरसिम्हा राव मामले से ही मिलता-जुलता एक नया मामला तब सामने आया जब सुप्रीम कोर्ट झारखंड मुक्ति मोर्चा की विधायक सीता सोरेन के एक कथित घूसखोरी मामले की सुनवाई कर रहा था।
  • सीता सोरेन पर आरोप था कि उन्होंने साल 2012 में राज्यसभा के चुनाव में एक निर्दलीय उम्मीदवार को वोट देने के लिए घूस ली।
  • सोरेन की तरफ से इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के पीवी नरसिम्हा राव बनाम भारत सरकार केस (1998) के फैसले का हवाला दिया गया। जिसमें कहा गया था कि संसद या विधानमंडल में कोई भी सांसद-विधायक जो कहते हैं और जो भी करते हैं, उसे लेकर उन पर किसी भी अदालत में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
  • साल 2019 में तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई की अगुवाई में तीन जजों की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की और कहा कि नरसिम्हा राव मामले में दिया गया फैसला बिलकुल इसी तरह का है और वह यहां भी लागू होगा।
  • हालांकि बेंच ने तब कहा था कि पीवी नरसिम्हा राव मामले (1998) में बहुत ही कम अंतर (पांच जजों के बीच 3:2 के बहुमत) से फैसला हुआ था इसलिए मुद्दे को “बड़ी बेंच” को सौंपना चाहिए।
  • सितंबर, 2023 में सात जजों की बेंच को यह मामला सौंपा गया।
  • सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में इस बेंच में जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा थे।

अब (4 मार्च, 2024) को सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया हैं?

  • न्यायालय ने पीवी नरसिम्हा राव बनाम राज्य के मामले में 1998 में दिए गए एक विपरीत फैसले को भी खारिज कर दिया, जिसमें न्यायालय ने कहा था कि विधायकों को विधायी सदन में एक निश्चित तरीके से मतदान करने के लिए रिश्वत लेने के लिए मुकदमा चलाने से प्रतिरक्षा है।
  • उन्होंने कहा, ‘नरसिंह राव फैसले में बहुमत और अल्पमत के फैसले का विश्लेषण करते हुए हम इस फैसले से असहमत हैं और इसे खारिज करते हैं कि सांसद छूट का दावा कर सकते हैं… नरसिम्हा राव मामले में बहुमत का फैसला, जो विधायकों को प्रतिरक्षा प्रदान करता है, एक गंभीर खतरा है और इस तरह इसे खारिज कर दिया गया।
  • संसद या विधानसभा में कही गई या की गई किसी भी बात के संबंध में अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) के तहत विधायकों को प्रतिरक्षा तभी दी जाती है जब दो गुना परीक्षण संतुष्ट हो, यानी कार्रवाई (1) विधायी सदन के सामूहिक कामकाज से जुड़ी हो और (2) कार्रवाई का “विधायक के आवश्यक कर्तव्यों के निर्वहन के लिए” कार्यात्मक संबंध हो।
  • ये प्रावधान एक ऐसे वातावरण को बनाए रखने के लिए हैं जो मुक्त विचार-विमर्श की सुविधा प्रदान करता है। अगर किसी सदस्य को भाषण देने के लिए रिश्वत दी जाती है तो इससे माहौल खराब होगा। इसलिए, रिश्वत इस तरह के संसदीय विशेषाधिकार द्वारा संरक्षित नहीं है।
  • अनुच्छेद 105 और 194 के तहत प्रदत्त प्रतिरक्षा विधायकों को स्वतंत्र रूप से कहने और मतदान करने में मदद करने के लिए है। विधायी सदन के अंदर वोट या भाषण की ऐसी कार्रवाई निरपेक्ष है।
  • संविधान के अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) के तहत प्रतिरक्षा (जैसा कि आज न्यायालय द्वारा व्याख्या की गई है) राज्यसभा की कार्यवाही पर भी समान रूप से लागू होगी, जिसमें उपराष्ट्रपति का चुनाव भी शामिल है।

संसदीय विशेषाधिकार

संसदीय विशेषाधिकार का तात्पर्य ऐसे अधिकारों तथा उन्मुक्तियों से है, जो संसद या राज्य विधानमंडल के प्रत्येक सदन, उसके सदस्यों तथा समितियों को सामूहिक रूप से तथा व्यक्तिगत रूप से प्राप्त होता है। संसदीय विशेषाधिकार का उद्देश्य संसद या राज्य विधानमंडल की स्वतंत्रता, प्राधिकार तथा गरिमा की रक्षा करना है। संविधान के अनुच्छेद 105 तथा 194 में संसदीय विशेषाधिकार के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है । इन अनुच्छेदों के परिशीलन से प्रतीत होता है कि संसदीय विशेषाधिकार दो प्रकार के होते है-

सदस्यों द्वारा व्यक्तिगत रूप से प्रयोग किये जाने वाले अधिकार

संसद तथा राज्य विधानमंडलों के सदस्यों  को निम्न विशेषाधिकार प्राप्त हैं-

  • गिरफ्तारी से छूट- संसद या राज्य विधानमंडलों के सदस्यों को संसद या राज्य विधानमण्डल के अधिवेशन के दौरान तथा अधिवेशन के 40 दिन पहले या बाद की अवधि के दौरान गिरफ्तारी से छूट प्राप्त है, लेकिन यह छूट केवल सिविल मामलों में प्राप्त है न कि अपराधिक मामलों में। सदस्यों की गिरफ्तारी के पूर्व सम्बन्धित सदन के अध्यक्ष या सभापति को सूचना दी जाती है।
  • साक्षी के रूप में उपस्थिति से छूट- संसद या राज्य विधानमंडल के अधिवेशन के दौरान सदस्य को सम्बन्धित सदन के अध्यक्ष या सभापति की अनुमति के बिना किसी न्यायालय के समक्ष साक्षी के रूप में उपस्थित होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
  • भाषण की स्वतंत्रता- संसद या राज्य विधानमंडलों के सदस्यों को सम्बन्धित सदन तथा समितियों में भाषण करने की पूर्ण स्वतंत्रता है और ऐसे भाषण  के लिए उनके विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती, लेकिन सदस्य सदन में उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के विरूद्ध तब तक कोई टिप्पणी नहीं कर सकता, जब तक उनके विरूद्ध महाभियोग के प्रस्ताव पर विचार-विमर्श  न हो रहा हो।

सदस्यों का सामूहिक अधिकार

संसद या राज्य विधानमंडलों को निम्नलिखित विशेषाधिकार प्राप्त है, जिसका प्रयोग सामूहिक रूप से या सदन द्वारा किया जा सकता है-

  • सदन की कार्यवाहियों को प्रकाशित करने तथा अन्य को प्रकाशित करने से रोकने का अधिकार
  • जो व्यक्ति सदन का सदस्य न हो, उसे सदन से निकालने का अधिकार
  • सम्बद्ध सदन के अध्यक्ष की आज्ञा के बिना सदन के परिसर में गिरफ्तारी तथा किसी कानूनी आदेशिका की तामिली को रोकने का अधिकार
  • सदन की किसी गोपनीय बैठक की कार्यवाहियों तथा निर्णयों को प्रकट करने पर रोक संबंधी अधिकार
  • सदन के आंतरिक मामलों को विनियमित करने तथा सदन के भीतर उत्पन्न होने वाले मामलों को निपटाने का अधिकार
  • सदन के सदस्यों तथा बाहरी व्यक्तियों को सदन के विशेषाधिकारों को भंग करने के लिए दण्डित करने का अधिकार
  • साक्षियों को उपस्थिति होने के लिए बाध्य करने तथा पत्र एवं दस्तावेज मांगने का अधिकार
  • किसी संसदीय समिति के समक्ष दिये गये साक्ष्य और उसके प्रतिवेदन और कार्यवाहियों को तब तक प्रकाशित करने से रोकने का अधिकार, जब तक उन्हें सम्बद्ध सदन के पटल पर नहीं रख दिया जाता
  • सदन की कार्यवाही को न्यायालय द्वारा जांच किये जाने से रोकने का अधिकार
  • किसी सदस्य की गिरफ्तारी, नजरबंदी, दोषसिद्धि, कारावास तथा रिहाई के सम्बन्ध में सूचना प्राप्त करने का अधिकार

परीक्षाओं में पूछें गए प्रश्न:

Q. भारतीय संविधान के “संसदीय विशेषाधिकार” को निम्नलिखित में से किस से अपनाया गया था?
(अ) ब्रिटेन
(ब) आयरलैंड
(स) कनाडा
(द) ऑस्ट्रेलिया
उत्तर :- (अ) ब्रिटेन

Q. सांसदों के विशेषाधिकारों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?
1. भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) द्वारा विशेषाधिकार प्रदान नहीं किए गए थे।
2. विशेषाधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 20-22 और अनुच्छेद 32 के अधीन होने चाहिए।
3. नागरिक और आपराधिक अभियोजन दोनों के संबंध में प्रतिरक्षा उपलब्ध है।
4. अपनी निजी या व्यक्तिगत क्षमता में भी भाषण की स्वतंत्रता के संबंध में प्रतिरक्षा उपलब्ध है।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिए।
(अ) 1, 2 और 4
(ब) केवल 1 और 2
(स) 2 और 3
(द) केवल 1 और 4
उत्तर :- (ब) केवल 1 और 2

Q. _____सदन के अधिकार और विशेषाधिकार, उसकी समितियों और सदस्यों के अभिरक्षक होते हैं।
(अ) स्पीकर
(ब) राष्ट्रपति
(स) पीठासीन अधिकारी
(द) प्रधानमंत्री
उत्तर :- (अ) स्पीकर

Q. निम्नलिखित में से कौन सा संसद के सदस्यों का सामूहिक विशेषाधिकार नहीं है?
(अ) बहस और कार्यवाही की स्वतंत्रता
(ब) संसद के आंतरिक मामलों को विनियमित करने का अधिकार
(स) साक्ष(गवाह) के रूप में उपस्थिति से स्वतंत्रता
(द) अजनबियों को सदन से बाहर करने का विशेषाधिकार
उत्तर :- (स) साक्ष(गवाह) के रूप में उपस्थिति से स्वतंत्रता

Q. निम्नलिखित में से कौन सा अनुच्छेद संसद सदस्यों के विशेषाधिकार से संबंधित है?
(अ) अनुच्छेद 105
(ब) अनुच्छेद 129
(स) अनुच्छेद 170
(द) अनुच्छेद 194
उत्तर :- (अ) अनुच्छेद 105

Q. विशेषाधिकार संसदीय समिति में कितने सदस्य होते हैं?
(अ) पूरी लोकसभा से 15 सदस्य
(ब) पूरी राज्यसभा से 10 सदस्य
(स) 22 सदस्य, लोकसभा से 15 और राज्यसभा से 7 सदस्य
(द) 1 और 2 दोनों
उत्तर :- (द) 1 और 2 दोनों

Q. संसद के प्रत्येक सदन और प्रत्येक सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियों, विशेषाधिकारों और अधिकारों को _______ द्वारा समय-समय पर कानून द्वारा परिभाषित किया जाएगा।
(अ) संसद
(ब) सर्वोच्च न्यायालय
(स) राष्ट्रपति
(द) प्रधानमंत्री
उत्तर :- (अ) संसद

Q. निम्नलिखित में से कौन-सा भारत में निर्वाचित प्रतिनिधियों का एक संसदीय विशेषधिकार है?
A) संसद में बोलने की स्वतंत्रता
B) संसद में कुछ भी कहने या उनके द्वारा दिए हुए किसी मतदान के संबंध में गिरफ्तारी से मुक्ति
C) जब सदन चालू है तो एक गवाह के रूप में भाग लेने से छूट।
(अ) A और B
(ब) B और C
(स) A, B और C
(द) A और C
उत्तर :- (अ) A और B

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