Supreme Court on Free Speech on Social Media
Supreme Court on Free Speech on Social Media –
संदर्भ:
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग, विशेष रूप से सोशल मीडिया पर बढ़ती गैर-जिम्मेदार टिप्पणियों को लेकर गंभीर चिंता जताई है। अदालत ने कहा कि इस संवैधानिक अधिकार के साथ स्वनियंत्रण और जिम्मेदारी भी आवश्यक है, ताकि समाज में अराजकता और वैमनस्य को रोका जा सके। न्यायालय ने यह भी सुझाव दिया कि इस दिशा में ठोस दिशा-निर्देशों और नियमन की आवश्यकता है ताकि स्वतंत्रता और अनुशासन के बीच संतुलन बना रहे।
सुप्रीम कोर्ट के हालिया अवलोकन:
- अभिव्यक्ति और दुरुपयोग में अंतर: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “किसी मुद्दे पर राय रखना अलग बात है, लेकिन उसे जिस भाषा या शैली में कहा जाता है, वह अगर आपत्तिजनक हो, तो वह बोलने की स्वतंत्रता का दुरुपयोग है।” इससे अनावश्यक मुकदमेबाज़ी बढ़ती है और कानून व्यवस्था तंत्र पर बोझ भी।
- सोशल मीडिया पर आत्म–अनुशासन: नागरिकों को सोशल मीडिया पर स्वनियंत्रण बरतना चाहिए। अगर स्व-नियमन असफल रहता है, तो राज्य को हस्तक्षेप करना पड़ सकता है ताकि विभाजनकारी प्रवृत्तियों को रोका जा सके।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a)
- क्या कहता है ? अनुच्छेद 19(1)(a) नागरिकों को अभिव्यक्ति और वाक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार देता है।
- दो तरह की व्याख्या:
- Vertical Application – राज्य या सरकार के विरुद्ध लागू।
- Horizontal Application – अन्य नागरिकों के विरुद्ध भी यह अधिकार लागू हो सकता है।
केस संदर्भ: कौशल किशोर बनाम राज्य (2023)
- इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना: मौलिक अधिकार सिर्फ राज्य के खिलाफ नहीं, बल्कि निजी व्यक्तियों (citizens) के खिलाफ भी लागू हो सकते हैं।
यानी अगर कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है, तो भी संविधानिक संरक्षण मिल सकता है।
सोशल मीडिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रभाव
सकारात्मक प्रभाव (Positive Impacts):
- आवाज़ का लोकतंत्रीकरण: हाशिये पर पड़े समुदायों, आदिवासी, दलित, महिला व LGBTQ+ समूहों को अपनी बात रखने का मंच मिलता है।
- भागीदारीपूर्ण लोकतंत्र को मजबूती: नागरिक नीति, समाज और राजनीति जैसे मुद्दों पर खुलकर चर्चा कर सकते हैं।
- इससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में सक्रिय भागीदारी बढ़ती है।
- उत्तरदायित्व और पारदर्शिता:
- सोशल मीडिया एक जन मंच बन गया है जहाँ लोग सरकारी नीतियों, नेताओं और संस्थानों की आलोचना कर सकते हैं।
- जनहित के मुद्दे, भ्रष्टाचार, कुप्रशासन आदि को उजागर किया जाता है।
नकारात्मक प्रभाव (Negative Impacts):
- भ्रामक जानकारी और फेक न्यूज़ (Misinformation & Fake News)
- झूठी ख़बरें तेजी से फैलती हैं जिससे अफवाह, दंगे, या मानहानि की घटनाएँ हो सकती हैं।
- चुनावों को प्रभावित करना, सांप्रदायिक तनाव बढ़ाना इसके उदाहरण हैं।
- हेट स्पीच और ऑनलाइन उत्पीड़न (Hate Speech & Abuse)
- ट्रोलिंग, व्यक्तिगत हमले, धमकी और लैंगिक हिंसा के मामले बढ़े हैं।
- इसका मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
- एल्गोरिदमिक पूर्वाग्रह (Algorithmic Bias)
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के एल्गोरिदम सिर्फ उन्हीं विचारों को बढ़ावा देते हैं जो ज्यादा क्लिक योग्य या सनसनीखेज़ हों।
- इससे विचारों की विविधता खत्म होती है और इको चैंबर बनते हैं।
निष्कर्ष: सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति को सशक्त बनाया है लेकिन इसके दुरुपयोग और अनियंत्रित स्वरूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी खतरे में पड़ सकती है।
जरूरत है नागरिकों की डिजिटल साक्षरता, प्लेटफॉर्म की जवाबदेही और संतुलित नियमन की।