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केंद्रीय पर्यावरण मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने छत्तीसगढ़ में गुरु घासीदास–तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व को भारत के 56वें टाइगर रिजर्व के रूप में अधिसूचित करने की घोषणा की है।
मुख्य बिंदु
- घोषणा की तारीख: केंद्र सरकार ने 18 नवंबर को इसे देश का 56वां बाघ अभ्यारण्य घोषित किया।
- नया बाघ अभ्यारण्य: गुरु घासीदास-तमोर पिंगला।
- क्षेत्रफल: यह अभ्यारण्य 2,829 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।
- स्थान: यह छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में स्थित है।
- नामकरण: इसका नाम सतनामी सुधारक गुरु घासीदास के नाम पर रखा गया है।
- पहले से मौजूद अभ्यारण्य: छत्तीसगढ़ में पहले से तीन बाघ अभ्यारण्य हैं—
- इंद्रावती (बीजापुर)।
- उदंती-सीतानदी (गरियाबंद)।
- अचानकमार (मुंगेली)।
- स्थलाकृति और जलवायु: इसकी स्थलाकृति लहरदार है।
अधिसूचना का महत्व
- प्रोजेक्ट टाइगर के तहत: यह अधिसूचना राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की सिफारिश के अनुरूप है।
- अंतिम मंजूरी: अक्टूबर 2021 में NTCA ने इसे अधिसूचित करने की अंतिम मंजूरी दी।
- बाघ अभयारण्यों की संख्या में वृद्धि: इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में बाघ अभयारण्यों की कुल संख्या चार हो गई है।
- बाघ संरक्षण में योगदान: यह अधिसूचना राज्य के बाघ संरक्षण प्रयासों को मजबूत बनाती है।
भारत के बाघ संरक्षण में गुरु घासीदास–तमोर पिंगला की भूमिका
- बाघ संरक्षण में प्रगति:
- भारत में विश्व की 70% से अधिक बाघ आबादी निवास करती है। देश ने बाघ संरक्षण में उल्लेखनीय प्रगति की है।
- प्रोजेक्ट टाइगर का समर्थन:
- यह रिजर्व प्रोजेक्ट टाइगर के लक्ष्यों को पूरा करने में सहायता करता है।
- बाघों और उनके आवासों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- मध्य भारत में बाघों की आबादी में वृद्धि:
- मध्य भारत में बाघों की संख्या बढ़ाकर मानव–वन्यजीव संघर्षों को कम करता है।
- क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण करता है।
गुरु घासीदास–तमोर पिंगला की प्रमुख विशेषताएँ
- भौगोलिक विशेषता: छोटा नागपुर पठार में स्थित यह क्षेत्र विविध भू-आकृति और समृद्ध वनस्पति के लिए जाना जाता है। यह बाघों और अन्य प्रजातियों के लिए उत्तम आवास प्रदान करता है।
- संरक्षण के लाभ: प्रोजेक्ट टाइगर के तहत एनटीसीए से तकनीकी और आर्थिक सहयोग मिलता है। इसका उद्देश्य बाघों और अन्य प्रजातियों के संरक्षण को सुदृढ़ करना है।
- सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्व: यह रिजर्व छत्तीसगढ़ में सतत विकास और जैव विविधता संरक्षण के बीच संतुलन बनाने में सहायक है। राज्य की पर्यावरणीय प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
भारत में बाघ अभयारण्य: प्रोजेक्ट टाइगर का योगदान
- प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत:
- प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत 1973 में बाघ संरक्षण के उद्देश्य से हुई थी।
- इन अभयारण्यों का प्रशासन राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा किया जाता है।
- वर्तमान स्थिति (2024 तक):
- भारत में अब तक 56 संरक्षित क्षेत्रों को बाघ अभयारण्य घोषित किया गया है।
- 2023 तक, भारत में 3,682 जंगली बाघ हैं, जो दुनिया की कुल जंगली बाघ आबादी का लगभग 75% है।
- बाघ अभयारण्य की संरचना:
- बाघ अभयारण्य में कोर क्षेत्र (राष्ट्रीय उद्यान या वन्यजीव अभयारण्य) और बफर ज़ोन (वन और गैर-वन भूमि का मिश्रण) शामिल होते हैं।
- कोर क्षेत्र बाघों की आबादी के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।
- बफर ज़ोन में इंसानों और जानवरों के सह-अस्तित्व को बढ़ावा दिया जाता है।
- प्रारंभिक प्रगति:
- 1973 में 9 बाघ अभयारण्य स्थापित किए गए थे।
- 1980 के दशक तक, संरक्षित क्षेत्र 9,115 वर्ग किमी से बढ़कर 24,700 वर्ग किमी हो गया।
- 1984 तक, इन क्षेत्रों में 1,100 बाघों की उपस्थिति दर्ज की गई।
- विस्तार और उपलब्धियां:
- 1997 तक, भारत में 23 बाघ अभयारण्यों का क्षेत्रफल 33,000 वर्ग किमी तक पहुंच गया।
- वर्तमान में, 56 बाघ अभयारण्य भारत के बाघ संरक्षण प्रयासों को मजबूत बना रहे हैं।
निष्कर्ष
भारत के बाघ अभयारण्य न केवल बाघों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं, बल्कि जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
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