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आवेदन के बिना क्षमा

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संदर्भ:

आवेदन के बिना क्षमा: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिया है कि वे क्षमा नीति (remission policy) के तहत कैदियों की समयपूर्व रिहाई (premature release) पर विचार करें, भले ही उन्होंने इसके लिए आवेदन न किया हो। यह फैसला पहले के निर्णयों से अलग है, जिनमें कैदियों को रिहाई के लिए आवेदन करना आवश्यक था।

आवेदन के बिना क्षमा के बारे में:

रिहाई (Remission) क्या है?

  • अर्थ: रिहाई (Remission) का मतलब किसी दोषी व्यक्ति की सजा की अवधि को कम करने की शक्ति है।
  • कानूनी प्रावधान: BNSS, 2023 की धारा 473 और CrPC, 1973 की धारा 432 के तहत यह नियम लागू होता है।
  • राज्य सरकार की शक्ति:
    • राज्य सरकार किसी भी समय सशर्त या बिना शर्त रिहाई (Remission) देने का अधिकार रखती है।
    • यदि दोषी व्यक्ति शर्तों का पालन नहीं करता है, तो रिहाई रद्द की जा सकती है, और उसे बिना वारंट फिर से गिरफ्तार किया जा सकता है।
  • अन्य संवैधानिक प्रावधानों से भिन्न: यह राष्ट्रपति (अनुच्छेद 72) और राज्यपाल (अनुच्छेद 161) की क्षमादान (Clemency) शक्ति से अलग होती है।

न्यायिक दृष्टिकोण में बदलाव:

महत्वपूर्ण फैसले (2013):

  • Sangeet बनाम हरियाणा और Mohinder Singh बनाम पंजाब मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि रिहाई (Remission) केवल दोषी के आवेदन पर ही दी जा सकती है, राज्य सरकार स्वेच्छा से (suo motu) इसे नहीं दे सकती
  • इस फैसले का उद्देश्य त्योहारों या अन्य अवसरों पर मनमाने ढंग से सामूहिक रिहाई को रोकना था।

नया दृष्टिकोण:

  • अब सुप्रीम कोर्ट का मत है कियदि किसी राज्य की रिहाई नीति (Remission Policy) में स्पष्ट पात्रता मानदंड (Eligibility Criteria) हैं, तो सभी पात्र दोषियों पर विचार किया जाना चाहिए, भले ही उन्होंने आवेदन न किया हो।
  • ऐसा न करना अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन होगा, क्योंकि इससे उन लोगों के साथ भेदभाव होगा जो अपने अधिकारों से अनजान हैं।

सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख निर्देश:

  1. नीति निर्माण अनिवार्य: जिन राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के पास रिहाई नीति (Remission Policy) नहीं है, उन्हें दो महीने के भीतर इसे लागू करना होगा
  2. उचित शर्तें:
    • रिहाई की शर्तें न्यायसंगत, गैर-दमनकारी और लागू करने योग्य होनी चाहिए।
    • पुनर्वास (Rehabilitation) और सार्वजनिक सुरक्षा (Public Safety) को प्राथमिकता दी जानी चाहिए (संदर्भ: Mafabhai Motibhai Sagar बनाम गुजरात, 2024)।
  3. रद्द करने की प्रक्रिया:
    • बिना कारण बताए रिहाई रद्द नहीं की जा सकती।
    • रद्द करने से पहले दोषी को नोटिस और सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए।
    • छोटी-मोटी गलतियों को रिहाई रद्द करने का आधार नहीं बनाया जा सकता।
  4. पारदर्शिता:
    • रिहाई या अस्वीकृति का स्पष्ट कारण दिया जाना चाहिए।
    • यह जानकारी दोषियों को दी जानी चाहिए, ताकि वे कानूनी सहायता लेकर निर्णय को चुनौती दे सकें।

भारत में जेलों की स्थिति:

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) डेटा, 2022

  • कुल कैदी: 5,73,220
  • जेलों की क्षमता: 4,36,266
  • अधिभोग दर (Occupancy Rate): 131.4% (अर्थात्, जेलों में निर्धारित क्षमता से अधिक कैदी हैं)।
  • अंडरट्रायल कैदी: 75.8% (यानी, तीन-चौथाई से अधिक कैदी वे हैं जिनका मामला अभी अदालत में लंबित है)।

रिहाई के कारण समय से पहले जेल से छूटे कैदी

  • 2020: 2,321 कैदी
  • 2021: 2,350 कैदी
  • 2022: 5,035 कैदी (तेजी से वृद्धि)

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